शेख अब्दुल्ला का जन्म 1905 में श्रीनगर में हुआ था। शेख ने इंटर तक पढ़ाई श्रीनगर के श्रीप्रताप कॉलेज में की और बाद में लाहौर के पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने 1928 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और 1930 में रसायन विज्ञान में एमएससी की डिग्री प्राप्त की। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से लौटकर उन्होंने श्रीनगर हाई स्कूल में शिक्षक की नौकरी की। महाराजा हरि सिंह ने एक सिविल सेवा रोजगार बोर्ड बनाया था, जहां प्रवेशकतार्ओं का चयन उनकी योग्यता के आधार पर किया जाता था। शेख अब्दुल्ला ने इस नीति का विरोध किया और सरकारी स्कूल की नौकरी से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने मुसलमानों को पास की मस्जिद में इकट्ठा किया और उत्तेजक भाषण दिए। उन्होंने महाराजा पर मुसलमानों को सरकारी नौकरियों से दूर रखने का आरोप लगाया। उन्होंने गोहत्या के लिए मुसलमानों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की नीति की आलोचना की। शेख अब्दुल्ला बहुत कुशल भाषणकर्ता थे। अंग्रेजों ने उनकी प्रतिभा और रुझान को ताड़ लिया, और शेख अब्दुल्ला ने ब्रिटिश पोलिटिकल सर्विस के पूर्ण संरक्षण में अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत की। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय कट्टरपंथी विचारों का केंद्र था।
विश्वविद्यालय के ठीक बाहर, इन छात्रों ने ‘मुस्लिम रीडिंग रूम’ में बैठकों की परंपरा शुरू की। इसी रीडिंग रूम ग्रुप ने जुलाई 1931 में महाराजा हरि सिंह के खिलाफ आंदोलन भड़काया। उसके पहले तक आम हिंदुओं और मुसलमानों के बीच संकट और अशांति की शायद ही कोई घटना होती थी, लेकिन अब हिंदुओं की दुकानें जलाईं और लूटी गईं। कुछ हिंदुओं की हत्या भी की गई। मुस्लिम रीडिंग रूम के विद्रोह को भी अंग्रेजों का पूर्ण समर्थन प्राप्त था। यहां तक कि महाराजा हरिसिंह का ‘भरोसेमंद’ प्रधान मंत्री जी.ई.सी. वेकफील्ड भी इसका समर्थन कर रहा था। ब्रिटिश पोलिटिकल सर्विस की मदद से कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस के नाम से एक संगठन लाहौर में स्थापित किया गया और इसे धार्मिक विद्रोह भड़काने का सौंपा गया।
महाराजा को अंग्रेजों के इस षड़यंत्र का अंदाज हुआ और उन्होंने तुरंत वेकफील्ड को पद से हटाकर उसके स्थान पर प्रसिद्ध प्रशासक हरि कृष्ण कौल को नियुक्त किया। कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस ने अपनी हरकतें लाहौर से पुन: प्रारम्भ कीं। उन्होंने लोगों को फिर से विद्रोह के लिए उकसाया। पंजाब से भड़काने वाला साहित्य बड़े पैमाने पर कश्मीर लाया गया। शेख अब्दुल्ला ने फिर से महाराजा पर मुस्लिम विरोधी होने का आरोप लगाते हुए जहरीले भाषण देना शुरू किया। 24 सितंबर 1931 को राज्य पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। अंग्रेज तुरंत मध्यस्थता करने आ गए। अंग्रेज रीजेंट ने महाराजा को एक अल्टीमेटम जारी किया और चौबीस घंटे के भीतर इसे स्वीकार करने और लागू करने को कहा।
जून 1939 में आल जम्मू एंड कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस का नाम बदलकर आल जम्मू एंड कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस कर दिया गया। सितम्बर 1951 में राज्य में हुए चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जम्मू-कश्मीर में संविधान सभा की सभी 75 सीटों पर जीत हासिल की, जिनमें से अधिकांश चुनाव निर्विरोध हुए, कांग्रेस एक दो सीटों पर दिखावे के लिए लड़ी। अगस्त 1953 में अपनी बर्खास्तगी तक शेख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के ‘प्रधानमंत्री’ बने रहे थे।
एक खास वंशवादी पार्टी के नाते नेशनल कॉन्फ्रेंस का शीर्ष नेतृत्व इसकी स्थापना के समय से ही शेख अब्दुल्ला और उनके परिवार तक सीमित रहा है। पहले कमान शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के हाथ में थी। राज्य के ‘प्रधानमंत्री’ पद से 1953 में केन्द्र सरकार द्वारा बर्खास्त किए जाने के बाद उनके पुत्र फारुख अब्दुल्ला ने पार्टी की बागडोर संभाली। साल 2002 में फारुख के पुत्र उमर अब्दुल्ला प्रधान बने, वे भी 2009 में राज्य के मुख्यमंत्री बने थे।
इसी नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 1965 में कांग्रेस का दामन थामा और खुद को उसमें विलीन कर दिया था। लेकिन 1977 के चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने राज्य में 76 में से 47 सीटें तथा 1983 में 46 सीटें जीतकर अपनी स्वतंत्र पहचान पुन: हासिल कर ली। अनेक बार आरोप लगा कि अब्दुल्लाओं के शासन तले जिहादी तत्व कश्मीर में अपनी जड़ें जमा रहे हैं, लेकिन केन्द्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने उनकी अनसुनी करती गई।