चुनाव आयोग ने संकेत दिया है कि दिल्ली की तर्ज पर जम्मू-कश्मीर में भी विधानसभा चुनाव होंगे. जम्मू-कश्मीर फिलहाल केंद्र शासित प्रदेश है. विधानसभा चुनावों के बाद स्थितियों को देखने के बाद राज्य का दर्जा देने पर कदम बढ़ाया जाएगा. चुनाव आयोग केंद्र ने केंद्र सरकार के गठन के बाद इस माह के अंत तक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने का संकेत दिया है. चुनाव के मुद्दे पर गृह मंत्रालय के साथ चुनाव आयोग के साथ बैठक करेगा. गृह मंत्रालय के साथ बैठक के बाद विधानसभा चुनाव में शामिल होने वाले राजनीतिक दलों के साथ भी आयोग बैठक करेगा.
चुनाव आयोग के मुताबिक इस बैठक में सुरक्षा संबंधी बंदोबस्त समेत अन्य पहलुओं पर चर्चा की जाएगी. राजनीतिक दलों से बैठक के बाद विधानसभा चुनावों की घोषणा की जाएगी. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का अनुपालन करते हुए चुनाव आयोग सितंबर, 2024 तक विस चुनावों की प्रक्रिया संपन्न कराएगा.
सूत्रों का कहना है कि चुनाव आयोग ने जम्मू-कश्मीर में चुनाव चिह्न (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश, 1968 के पैरा 10बी के तहत तत्काल प्रभाव से चुनाव चिह्नों के आवंटन की मांग करने की अपील की घोषणा की है.
चुनाव चिह्न के लिए मांगा आवेदन
बता दें कि मान्यता प्राप्त राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक पार्टियों के अपने आरक्षित चिह्न हैं, जैसे भाजपा का चुनाव चिह्न कमल और कांग्रेस का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा है, जबकि पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को चुनाव में उम्मीदवार उतारने के लिए चुनाव चिह्न के लिए उन्हें आवेदन करना होता है. नियम के अनुसार कोई भी पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त पार्टी सदन के कार्यकाल की समाप्ति से छह महीने पहले चुनाव चिह्न के लिए आवेदन कर सकता है.
हालांकि, चूंकि जम्मू-कश्मीर में अभी तक कोई विधानसभा नहीं है, इसलिए चुनाव आयोग आवेदन आमंत्रित कर रहा है. विधानसभा चुनाव की तिथि अभी घोषित नहीं की गई है, लेकिन चुनाव आयोग ने संकेत दिया है कि जल्द ही चुनाव कराए जाएंगे.
जल्द जम्मू-कश्मीर में होंगे चुनाव
उल्लेखनीय हैं कि लोकसभा चुनाव के दौरान जम्मू-कश्मीर की सीटों पर भी मतदान हुए थे. मतदान के दौरान भारी संख्या में मतदाताओं ने मतदान प्रक्रिया में हिस्सा लिया था. उसके बाद ही मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर में जल्द ही विधानसभा चुनाव कराए जाएंगे और अब चुनाव कराने की प्रक्रिया चुनाव आयोग ने शुरू कर दी है. लोकसभा चुनाव में जम्मू-कश्मीर में पिछले चार दशकों में सबसे अधिक 58.58 प्रतिशत वोट हुआ था, जबकि घाटी में 51.05 प्रतिशत पोलिंग हुई थी.