कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार के मंदिरों की कमाई पर अधिक टैक्स वसूलने के मंसूबों पर पानी फिर गया है। इस सम्बन्ध में लाया गया विधेयक कर्नाटक के विधान परिषद में पारित नहीं हो पाया। भाजपा और जेडीएस के गठबंधन ने इस विधेयक को संयुक्त रूप से विधान परिषद में गिरा दिया।
75 सदस्यों वाली कर्नाटक विधान परिषद में मन्दिरों की कमाई पर टैक्स लगाने वाले इस विधेयक को ध्वनि मत से खारिज कर दिया गया। कर्नाटक विधान परिषद में कॉन्ग्रेस सरकार अल्पमत में है। कर्नाटक के इस उच्च सदन में भाजपा के पास 35 और जेडीएस के पास 8 सदस्य हैं। एक सदस्य निर्दलीय भी है जबकि कॉन्ग्रेस के पास यहाँ मात्र 30 ही सदस्य हैं। एक पद अभी रिक्त है।
ऐसे में कॉन्ग्रेस सरकार का ‘कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती विधेयक 2024’ विधान परिषद में पारित नहीं हो सका। कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार इस विधेयक के जरिए वार्षिक ₹1 करोड़ से अधिक दान पाने वाले मंदिरों से उनकी कमाई का 10% जबकि ₹10 लाख से ₹1 करोड़ तक दान पाने वाले मंदिरों से 5% टैक्स वसूलना चाहती थी।
इससे पहले यह विधेयक कर्नाटक विधानसभा में लाया गया था। सत्ता में होने के चलते विधानसभा में कॉन्ग्रेस सरकार को बहुमत है, इसलिए यहाँ यह विधेयक बिना किसी समस्या के पारित हो गया था। 224 सदस्यों वाली इस विधानसभा में इसे 135 कॉन्ग्रेस विधायकों का समर्थन हासिल हुआ था। इसके बाद इसे विधान परिषद के समक्ष रखा गया, जहाँ यह पारित नहीं हुआ।
विधान परिषद में इस विधेयक के समर्थन में सत्ता पक्ष के 7 सदस्यों ने ‘हाँ’ कहा, जबकि 18 विपक्षी सदस्यों ने ‘ना’ कहा। इसके बाद भाजपा विधान परिषद सदस्यों ने सदन में जय श्री राम के नारे भी लगाए। हालाँकि, इस विधेयक को सरकार दोबारा इस सदन में पेश कर सकती है, लेकिन इसकी संभावना कम मानी जा रही है। यह भी कयास लग रहे हैं कि इसे अब लोकसभा चुनावों के बाद ही लाया जाएगा।
मंदिरों की कमाई से सबंधित इस विधेयक का राज्य की विपक्षी पार्टी भाजपा और जेडीएस लगातार विरोध कर रहे थे। उन्होंने सरकार पर हिन्दू विरोधी होने का आरोप लगाया था। कर्नाटक भाजपा के अध्यक्ष बी वाई विजयेन्द्र ने इस मामले में कहा था कि सरकार हिन्दू मंदिरों के दान से अपना खजाना भरना चाहती है।
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के बड़े नेता बीएस येदियुरप्पा ने भी इस विधेयक को लेकर कहा था कि आखिर हिन्दू मंदिर ही टैक्स के दायरे में क्यों लाए जा रहे हैं और बाकी मजहबों के पाक स्थलों को इस दायरे में क्यों नहीं लाया जा रहा।