मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले की अपनी खास पहचान है. जिले के तहत 5 विधानसभा सीटें आती हैं जिसमें एक सीट ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, बाकी सीटें सामान्य वर्ग के लिए हैं, इन्हीं में नरसिंहगढ़ विधानसभा सीट भी शामिल है. जिले की 5 सीटों में से 3 पर कांग्रेस का कब्जा है तो 2 सीटों पर बीजेपी की पकड़ है. प्रदेश की चर्चित नरसिंहगढ़ विधानसभा सीट पर पिछले चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी. इस सीट पर शाही परिवार का दबदबा रहा है.
साल 2018 के चुनाव में नरसिंहगढ़ सीट पर यहां के राजघराने से ताल्लुक रखने वाले राज्यवर्धन सिंह ने कांग्रेस के प्रत्याशी गिरीश भंडारी को कड़े मुकाबले में 9,534 मतों के अंतर से हराकर चुनाव जीता था. वैसे राज्यवर्धन सिंह पहले कांग्रेस में ही थे और 1985 से 1990 तक कांग्रेस से विधायक रहे. बाद में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से अनबन होने के चलते वे बीजेपी में शामिल हो गए. राज्यवर्धन के पिता स्वर्गीय भानू प्रताप सिह साल 1962 में विधानसभा और लोकसभा दोनों का चुनाव लड़े और दोनों ही चुनाव में जीत हासिल की. बाद में वह लोकसभा चले गए.
कितने वोटर, कितनी आबादी
नरसिंहगढ़ सीट पर पिछले चुनाव में 11 उम्मीदवारों के बीच मुकाबला था जिसमें बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला था. बीजेपी के राज्यवर्धन सिंह ने 85,335 वोट हासिल किए जबकि कांग्रेस के गिरिश भंडारी के खाते में 75,801 वोट आए. राज्यवर्धन ने कड़े मुकाबले में जीत हासिल की. नोटा के पक्ष में 1,581 (0.8%) वोट आए थे. नरसिहगढ़ सीट पर फिलहाल 2,39,262 मतदाता हैं जिसमें 1,21,155 पुरुष और 1,18,105 महिला मतदाता हैं.
नरसिहगढ़ सीट के राजनीतिक इतिहास की बात की जाए तो साल 1957 से लेकर 2018 तक 16 चुनाव हुए हैं जिसमें 8 चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली तो 7 चुनाव में जनसंघ और बीजेपी जीती जबकि एक बार निर्दलीय उम्मीदवार विजयी रहा. साल 1957 में यहां कांग्रेस के भंवरलाल चुनाव जीते, 1962 में यहां के राजघराने के भानू प्रकाश सिंह निर्दलीय चुनाव जीते थे जो उस समय राजगढ़ लोकसभा और विधानसभा दोनों ही सीटों पर चुनाव लड़े थे. दोनों ही सीटों पर उन्होंने जीत हासिल की थी.
कैसा रहा राजनीतिक इतिहास
भानू प्रकाश सिंह ने विधानसभा सीट छोड़ दी. फिर उपचुनाव में कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश नाथ काटजू जो रतलाम जिले की जावरा विधानसभा सीट से हार गए थे यहां से चुने गए. भानू प्रकाश सिंह केंद्र की राजनीति में चले गए. साल 1967 में जनसंघ से कृष्ण मोहन सक्सेना यहां से विधायक बने जिनकी चुनाव के ढाई तीन साल बाद ही एक सड़क हादसे में मौत के बाद उपचुनाव हुए जिसमें कांग्रेस के भगवान ग्रोवर चुनाव जीते.
1972 के चुनाव में यहां से कांग्रेस से मांगीलाल भंडारी ने चुनाव जीता. साल 1977 और 1982 दोनों चुनाव में बीजेपी के सिद्धूमल लगातार दो बार चुनाव जीत गए. 1985 में कांग्रेस से राज्यवर्धन सिंह ने चुनाव जीत सीट को कांग्रेस के कब्जे में किया. 1990 में यहां से बीजेपी के हनुमान गर्ग ने जीत दर्ज कर वापस बीजेपी के कब्जे में सीट दिला दी. 1993 में कांग्रेस ने मांगीलाल भंडारी को प्रत्याशी बनाकर इस सीट पर कब्जा किया. 1998 के चुनाव में भी कांग्रेस के धूलसिह यादव ने चुनाव जीतकर सीट कांग्रेस के कब्जे में रखी. 2003 और 2008 के दोनों चुनाव में बीजेपी के मोहन शर्मा चुनाव जीते. 2013 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी गिरीश भंडारी ने बीजेपी के प्रत्याशी मोहन शर्मा को करीब 23 हजार वोट से हराकर सीट कांग्रेस के कब्जे में की.
सामाजिक-आर्थिक ताना बाना
इस विधानसभा सीट पर अब तक चुनाव में ब्राह्मण, महाजन, क्षत्रिय, यादव, सक्सेना और गर्ग समेत समाज के अन्य प्रत्याशी भी चुनाव जीत चुके है. जातिगत समीकरण देखें तो इस विधानसभा क्षेत्र में किसी समाज की बाहुलता नहीं है. सभी समाज के लगभग बराबर बराबर मतदाता हैं.