जीएन साईबाबा को बरी करने के मामले में महाराष्ट्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली है. साईबाबा जेल से बाहर ही रहेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के साईबाबा को बरी करने के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि पहली नजर में हाईकोर्ट का बरी करने का फैसला उचित कारणों वाला. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की अपील मंजूर की, लेकिन जल्द सुनवाई से इनकार कर दिया. जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि दो बार बरी किए जाने के मामले की सुनवाई में जल्दबाजी नहीं दिखाई जा सकती. जस्टिस संदीप मेहता ने कहा कि ये बरी करने का आदेश कितने साल जेल में रहने के बाद मशक्कत से आया है.
बता दें कि महाराष्ट्र सरकार जीएन साईबाबा को बॉम्बे हाईकोर्ट से बरी किए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची है. बरी करने का आदेश मंगलवार सुबह बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने पारित किया है
जस्टिस मेहता ने कहाकि यह बड़ी मुश्किल से बरी किए जाने का मामला है। सामान्य तौर पर, इस अदालत को यह अपील खारिज कर देनी चाहिए थी। बंबई हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने पांच मार्च को साईबाबा (54) को बरी कर दिया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ आरोपों को साबित करने में विफल रहा। कोर्ट ने साईबाबा को सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को रह कर दिया था और यूएपीए के तहत अभियोजन की मंजूरी को अमान्य ठहराया था। उसने मामले में पांच अन्य आरोपियों को भी बरी कर दिया था।
शारीरिक असमर्थता के कारण व्हीलचेयर का इस्तेमाल करने वाले साईबाबा 2014 में मामले में गिरफ्तारी के बाद से नागपुर केंद्रीय कारागार में बंद थे। मार्च 2017 में, महाराष्ट्र के गढ़चिरोली जिले की एक सत्र अदालत ने कथित माओवादी संबंधों और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसी गतिविधियों में शामिल होने के लिए साईबाबा, एक पत्रकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के एक छात्र सहित पांच अन्य लोगों को दोषी ठहराया था।
कथित माओवादी लिंक मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और पांच अन्य आरोपियों को बरी करने के कुछ घंटों बाद महाराष्ट्र सरकार ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने सत्र न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया, जिसने 2017 में साईबाबा और अन्य को दोषी ठहराया था.