मराठा आरक्षण को लेकर आमरण अनशन पर बैठे मनोज जरांगे पाटिल की तबीयत बिगड़ गई है. अनशन का आज 5वां दिन है. साथ ही मराठा आरक्षण के लिए बुधवार को सकल मराठा समुदाय ने महाराष्ट्र बंद बुलाया. मांगें नहीं माने जाने तक वो ना अनशन तोड़ेंगे और ना ही अपना इलाज करवाएंगे. तीखे शब्दों में चेतावनी दी है कि अगर इस दौरान उनकी “मौत हुई तो महाराष्ट्र लंका की तरह जलेगा.”
जरांगे के समर्थन में महाराष्ट्र के कई जिले बंद
मनोज जरांगे पाटिल की हालत खराब है. खबरों की मानें तो उनकी नाक से ब्लड आ रहा है लेकिन उन्होंने इलाज करवाने से इंकार कर दिया है. इधर मनोज जरांगे पाटिल के समर्थन में मराठा आंदोलनकारी ने महाराष्ट्र के कई जिलों में बंद बुलाया है, बीड़, हिंगोली और मनमाड़ में बंद का असर दिखने लगा है. जालना-जलगांव रोड पर मराठा आंदोलनकारियों ने टायर जला दिए. बंद की वजह से जगह-जगह पुलिस बल की तैनाती कर दी गई है. 13 फरवरी की आधी रात से बीड में 27 फरवरी तक धारा 144 लगा दी गई है. हर जिले के चप्पे-चप्पे पर पुलिस के जवानों को तैनात किया गया है. मराठा लोग प्रशाशन से काफी नाराज हैं और उनपर लापरवाही बरतने का आरोप लगा रहे हैं.
समर्थकों ने बुलाया बंद
जारंगे के साथ एकजुटता दिखाते हुए, विभिन्न मराठा संगठनों ने जालना, बीड, सोलापुर और नासिक के कई गांवों में बंद का आह्वान किया है. विशेष रूप से, उत्तरी सोलापुर और सोलापुर के कोंडी गांव में समुदाय एकजुट है, इस मुद्दे के समर्थन में दुकानें बंद हैं, जबकि दूध सहित आवश्यक सेवाएं चालू हैं.
भूख हड़ताल पर डटे रहने के कारण जरांगे का स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता जा रहा है. ग्रामीणों, दोस्तों और सहकर्मियों की गुहार के बावजूद, वो भोजन करने, पानी पीने और चिकित्सा सहायता लेने से भी मना कर दिया है. यहां तक कि जालना कलेक्टर कृष्णनाथ पांचाल और पुलिस अधीक्षक अजय कुमार बंसल ने भी उनसे पानी की पेशकश करते हुए नरम होने का अनुरोध किया है, फिर भी जारंगे मांग पूरी होने तक पानी लेने से इनकार कर देते हैं.
जरांगे की प्रमुख मांगों में मराठा आरक्षण से संबंधित सरकार के अध्यादेश को तत्काल लागू करना, इसके बाद अध्यादेश को कानून में बदलने के लिए एक विशेष विधायी सत्र बुलाना शामिल है. इसके अलावा, वह राज्य भर में मराठा प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सभी पुलिस मामलों को वापस लेने पर जोर दे रहे हैं.
चार दिनों से भूख हड़ताल पर हैं जरांगे
सरकारी अधिकारी जारांगे से मिल रहे हैं और उन्हें मनाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, जारांगे ने कड़ा रुख अपनाते हुए साफ कहा है कि जबतक मांगे पूरी नहीं की जाएगी तबतक कोई समझौता नहीं होगा, सरकार पहले मांगें पूरी करें और फिर मेरे पास आएं. बता दें, मनोज जारांगे ने भोजन और पानी का त्याग कर दिया है. उन्होंने डॉक्टरों से किसी भी तरह का इलाज कराने से भी इनकार कर दिया. मराठा आरक्षण अधिसूचना लागू हो यह सुनिश्चित करने के लिए मराठा कार्यकर्ता मनोज जारांगे पाटिल ने फिर से अनशन की शुरूआत कर दी है. कुनबी रिकार्ड ढूंढने वालों को प्रमाण पत्र दिया जाए. साथ ही जारांगे पाटिल की मांग है कि ‘सज्ञसोराय’ को लेकर और अधिक स्पष्टता लाई जानी चाहिए. मराठा आरक्षण के मुद्दे और उस पर काम को लेकर मनोज जारांगे पाटिल चौथी बार भूख हड़ताल पर हैं.
मराठा आरक्षण की मांग कब शुरू हुई?
महाराष्ट्र में मराठा राज्य की आबादी का लगभग 33 प्रतिशत हिस्सा हैं. यह समुदाय शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग कर रहा है. सन 1981 में राज्य में मथाडी मजदूर संघ के नेता अन्नासाहेब पाटिल के नेतृत्व में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर पहला विरोध प्रदर्शन किया गया था.
यह समुदाय मराठों के लिए कुनबी जाति के प्रमाण पत्र की मांग कर रहा है जिससे वे ओबीसी श्रेणी में शामिल होकर आरक्षण पा सकेंगे. कृषि से जुड़े कुनबी जाति के लोगों को महाराष्ट्र में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) श्रेणी में रखा गया है.
साल 2014 में कांग्रेस राज्य में सत्ता में थी. कांग्रेस सरकार तब मराठों को 16 प्रतिशत आरक्षण देने का अध्यादेश लाई थी. महाराष्ट्र सरकार ने 2018 में एक विशेष प्रावधान- सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग अधिनियम के तहत मराठा आरक्षण को मंजूरी दे दी.
साल 2019 का हाई कोर्ट का फैसला
बॉम्बे हाई कोर्ट ने जून 2019 में मराठा आरक्षण की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा. कोर्ट ने इसे घटाकर शिक्षा में 12 फीसदी और सरकारी नौकरियों में 13 फीसदी कर दिया. दो साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा का उल्लंघन करने के लिए मराठा समुदाय को आरक्षण देने वाले महाराष्ट्र कानून के प्रावधानों को रद्द कर दिया.
साल 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 फीसदी आरक्षण बरकरार रखा. इसी साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की रिव्यू पिटीशन खारिज कर दी थी.