मणिपुर में दो समूहों के बीच हुई हिंसा में ना जाने कितने परिवार उजड़ गए, हिंसा में करीब 175 लोगों ने अपनी जान गंवा दी, जिनमें करीब 100 लाशें ऐसी है जो मुर्दा घर में लावारिस पड़ी है, जिन्हें ले जाने वाला कोई नहीं आया, जिसकी वजह से इन लाशों का अभी तक अंतिम संस्कार नहीं हो सका.
इस मामले में पूर्व न्यायाधीशों की तीन सदस्यीय समिति ने राज्य सरकार को एक सुझाव दिया है. समिति का कहना है कि सरकार सभी मृतकों की एक लिस्ट जारी करे, ताकि उनके सगे संबंधियों की पहचान कर उसने संपर्क किया जा सके और शव को उन्हें सौंप दिया जाए . समिति ने कहा कि अगर किसी मृतक का रिश्तेदार नहीं नहीं आता तो सरकार उन शवों का पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कराए.
दरअसल मणिपुर हिंसा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी, जिसमें उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों को शामिल किया गया था. जो हिंसा के मानवीय पहलुओं की जांच कर रही है.
समिति ने दिए कई सुझाव
बीते शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा पेश किया गया, जिसमें समिति की तरफ से कई सुझाव दिए गए थे, जिसमें एक सुझाव यह भी था कि राज्य सरकार हिंसा में मारे गए लोगों की एक लिस्ट तैयार कर उसे जारी करे, जिससे मृतकों के परिजनों की पहचान की जा सके और जल्द से जल्द मुर्दा घर में पड़े शवों का अंतिम संस्कार किया जा सके. इसके साथ ही समिति का कहना है कि अगर किसी मृतक की पहचान नहीं होती तो जिला अधिकारी पूरे सम्मान के साथ शवों का अंतिम संस्कार कराएं.
तीन मुर्दा घर में रखे हैं शव
इंफाल में JNIMS, रिम्स और चुराचांदपुर जिला अस्पताल के मुर्दा घरों में मृतकों के शव रखे हुए हैं, जिनकी अब तक पहचान नहीं हो सकी है. मुर्दा घर में पड़े शवों का अंतिम संस्कार ना होना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है, साथ ही यह एक बेहद संवेदनशील मुद्दा भी है.
एक दूसरे के इलाके में नहीं जाते लोग
अब तक शवों की पहचान ना होने की एक बड़ी वजह यह भी है कि एक समुदाय दूसरे समुदाय के प्रभुत्व वाले इलाके में नहीं जा सकता. आपको बता दें कि इम्फाल और घाटी इलाकों में मैतेई समुदाय की आबादी ज्यादा है, वहीं पहाड़ी इलाकों में कुकी समुदाय का दबदबा है. ऐसे में दोनों समुदाय के लो शवों की पहचान करने के लिए एक दूसरे के इलाकों में नहीं जा सकते.
ITLF ने परिजनों को शवों की पहचान ना करने को कहा
इधर चुराचांदपुर के मुर्दा घर में 35 शव कुकी-ज़ोमी समुदाय के लोगों के हैं, क्षेत्र में इनका दबदबा भी है, बावजूद इसके इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम यानी ITLF ने मृतकों के परिजनों को शवों की पहचान ना करने को कहा था. वहीं नेताओं का कहना है एक समारोह आयोजित कर सभी मृतकों का सम्मानजनक अंतिम संस्कार करना चाहते थे.
ITLF की घोषणा से मचा था बवाल
बीते दिनों ITLF ने घोषणा की थी कि 3 अगस्त को 35 शवों टोरबंग में दफनाए जाएंगे. टोरबंग कुकी-ज़ोमी के वर्चस्व वाले इलाके चुराचांदपुर जिले का हिस्सा है. ITLF की इस घोषणा के बाद बवाल मच गया था. मामले ने इतना तूल पकड़ लिया था कि गृह मंत्रालय को हस्ताक्षेप करना पड़ा था. जिसके बाद कार्यक्रम रद्द कर दिया गया था. हालांकि इसके चलते काफी तनाव पैदा हो गया, जिसके बाद बिष्णुपुर और चुराचांदपुर जिलों में हिंसा की वारदातें और भी बढ़ गई थी.
आपको बता दें कि कुछ दिन पहले ही पुलिस ने जानकारी दी थी कि मणिपुर हिंसा में करीब 175 लोग मारे गए हैं, वहीं अभी भी 96 शव ऐसे हैं जो मुर्दा घर में पड़े हैं जिनका अंतिम संस्कार नहीं हुआ है.