मणिपुर में एक महीने से भी ज्यादा समय से हिंसा जारी है. बीच में थोड़ी शांति भी हुई लेकिन इसके बाद फिर कई हिस्सों में हिंसा-आगजनी देखी गई. इस बीच राज्यभर में इंटरनेट सेवा पर बैन 15 जून तक के लिए बढ़ा दिया गया है. यह आदेश तब आया है जब सुप्रीम कोर्ट ने मामले में दायर याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया. इस बीच पता चला है कि 50 हजार से ज्यादा लोग हिंसा की वजह से विस्थापित हुए हैं.
मणिपुर सरकार ने रविवार को बताया कि हिंसा पीड़ितों के लिए राज्यभर में 349 राहत शिविर स्थापित किए गए हैं. अलग-अलग शिविरों में 50,000 से ज्यादा लोग रह रहे हैं. इनके अलावा महिलाओं, बूढ़े और बच्चों के लिए भी अलग से राहत शिविर की व्यवस्था की गई है. नोडल अधिकारियों को यहां देखभाल की जिम्मेदारी दी गई है.
मणिपुर में 3 मई को हिंसा के मद्देनजर इंटरनेट सेवा पर प्रतिबंध लगाया गया था. इसके बाद कई बार प्रतिबंधों को बढ़ाया गया. 10 जून को मणिपुर गृह विभाग की तरफ से जारी नोटिफिकेशन में बैन को 15 जून तक बढ़ाया गया है. कमिश्नर द्वारा जारी आदेश में आशंका जताई गई है कि इंटरनेट का इस्तेमाल कर असामाजिक तत्व सोशल मीडिया पर नफरत फैला सकते हैं. सोशल मीडिया पर नफरती भाषण, नफरती वीडियो के संभावित सर्कुलेशन को ध्यान में रखते हुए बैन को आगे बढ़ाया गया है.
3 मई को ट्रायबल सॉलिडरिटी मार्च के बाद मैतेई और कूकी समुदायों के बीच हिंसा भड़क गई थी. मैतेई की एसटी में शामिल किए जाने की मांगों के खिलाफ कूकी समुदाय से संबंधित संगठनों ने पहाड़ी इलाके में मार्च निकाला था, जो बताया जाता है कि बाद में हिंसक हो गया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, हिंसाओं में कम से कम 100 लोगों की मौत हुई है और 300 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं.
मणिपुर हिंसा मामले की जांच सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन द्वारा गठित 10 सदस्यीय एसआईटी टीम कर रही है. इस टीम में डीआईजी रैंक के अधिकारियों को शामिल किया गया है. मामले में 6 एफआईआर दर्ज की गई है. इनमें पांच आपराधिक साजिश और एक सामान्य साजिश से संबंधित है. सीबीआई की जांच की निगरानी की जिम्मेदारी कमिश्नर ऑफ इन्क्वायरी को दी गई है, जिसकी अध्यक्षता गुवाहाटी हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस अजय लांबा रहे हैं.