आपने यदि आमिर खान की फिल्म देख होगी तो आपको याद आ गया होगा कि किस तरह गांव वाले फिरंगियों से एक क्रिकेट मैच जीतकर लगान की लड़ाई जीत लेते हैं और फिरंगी लौट जाते हैं। फिल्म का नाम लगान था जिसमें पटकथा में क्रिकेट की छौंक ने फिल्म को हिट करा दिया। लगान को लेकर ऐसी ही एक लड़ाई ओडिशा के बहादुर वनवासियों ने लड़ी और 25 अप्रैल 1939 को निर्मल मुंडा की अगुवायी में जमीन पर अधिकार की मांग को लेकर सुंदरगढ़ जिले के रायबोगा थाना क्षेत्र में अम्को सिमको (वनवासियों के गांव) में सभा की जहां पर अंग्रेजों ने अंधाधुंध फायरिंग झोंककर जमीन के अधिकार की मांग और लगान का विरोध कर रहे 49 (मृतकों की संख्या ज्यादा भी बतायी जाती है) वनवासियों को मौत के घाट उतार दिया इस गोलीबारी में 90 से ज्यादा घायल हो गए थे। इसे ओडिशा का जलियांवाला बाग कांड कहा गया।
काश क्रिकेट के शौकिया फिरंगी अम्कोसिमको में भी क्रिकेट मैच रख लेते तो इतने लोगों की जान बच जाती। कोई आमिरखान अम्कोसिमको पर पटकथा लिखवाकर फिल्म बनाने अब तक तो नहीं आया। नतीजतन हुकूमत के विरुद्ध वनवासियों की इस जंग को इतिहास ने भी भुला दिया। वीरान पड़ा इस क्षेत्र की सुध पहली बार में 2018 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री सुंदरगढ़ से सांसद जुएल ओरम और नवीन पटनायक की सरकार ने इस क्षेत्र को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित कराया। शहीद स्तंभ लगे। शहीदों के नाम उसमें अंकित किए गए।
कहानी कुछ इस तरह है कि सुंदरगढ़ जिले के जमीन के टैक्स के विरुद्ध खुंटकटी आंदोलन चलाने वाले 39 वनवासियों को अंग्रेजों ने गोली से उड़ा दिया था। अनाधिकारिक तौर पर यह संख्या 50 बताई जाती है। बीरमित्रपुर में अम्कोसिमको नामक स्थल को पर्यटन स्थल की शक्ल देने की कोशिशें की गयी पर वहां पर स्वतंत्रता दिवस पर नेता लोग श्रृद्धांजलि देने भर चले जाते हैं। यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि देश में इन बलिदानियों को याद भी किया गया तो आजादी के इतने साल बाद। फिरंगियों के विरुद्ध इस विद्रोह कथा पर बताया जाता है कि वनवासियों का नेतृत्व करने वाले निर्मल मुंडा ने 36 गांवों को टैक्स मुक्त रखने की मांग की थी। फिरंगियों ने मुंडा की अध्यक्षता में कमेटी बनाई। डाहीजीरा के मानसिद गुडिया, टिकली पाडा़ के एलियाजर मुंडा, झरियाडीपा के तिंतुष गुडिया, बोंडाकाटा के दानियल मुंडा समेद अन्य लोगों को कमेटी में शामिल किया गया था। लखराजी व खुंटकटी का अधिकार के लिए छोटानागपवुर टेनेंसी एक्ट के तहत मिले अधिकारों को बहाल करने, जंगल जमीन पर रैयतों का अधिकार देने समेत अन्य मांगें वायसराय को भेजी गयीं थी।
23 अप्रैल 1939 को इस पर रानी जानकी रत्ना फैसला सुनाने वाली थी और लोग फैसला सुनने आएं, इसके लिए 36 मौजों में ढोल पीटा गया था। फैसला सुनने के लिए लोग आमको सिमको में जमा हुए थे। गांगपुर की रानी जानकी रत्ना के पोलिटिकल एजेंट ले.ईडब्ल्यूएम मर्गर एवं कैप्टन विस्को भी यहां पहुंचे थे। फैसला सुनाने से पहले रानी ने पूछा कि आप लोगों में से निर्मल मुंडा कौन है, इस हर कोई बताने लगा कि वही निर्मल मुंडा है। इस पर पुलिस ने निर्मल मुंडा की तलाश शुरू कर दी। निर्मल मुंडा के घर में घुसने के दौरान एक लड़के ने विरोध किया तो उसे वहीं पर मार दिया गया। इसी बीच निर्मल मुंडा के घर घुसने वाले अफसर की छप्पर से टकराकर टोपी गिर गई। तमतमाए अफसर ने गोलीबारी के आदेश दे दिए। इस आंदोलन में 39 लोग शहीद हुए एवं 90 से अधिक लोगों को गोली लगी थी। बताते हैं वर्षों बीतने के बाद भी गोलीकांड में बलिदान व घायलों को अब तक स्वाधीनता सेनानी की मान्यता नहीं मिली। 15 अगस्त 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शहीदों को सम्मान देते हुए उनके परिजनों को ताम्रपत्र प्रदान किया पर सरकार इसे स्वाधीनता संग्राम नहीं बल्कि एक कृषक आंदोलन बता रही है।
हालांकि अम्कोसिमको नरसंहार कांड को ओडिशा का जलियावाला बाग कांड कहा जाता है। जलियावाला बाग जैसी फिरंगी हुकूमत के जुल्म की यह दूसरी बड़ी घटना थी। वनवासियों के क्षेत्र में होने के कारण चाटुकार इतिहासकारों ने इसे इतिहास के पन्नों में स्थान देने लायक न समझा। ओडिशा गजेटियर ने इस पूरी घटना को एक किसान विद्रोह करार दिया। यही कारण रहा कि अम्कोसिमको जैसा एक विद्रोह समय की गर्त में कहीं खो चुका है। सुंदरगढ़ से जितने भी वनवासी नेता निर्वाचित होकर सदन में पहुंचे वो सिर्फ भाषणबाजी तक ही सीमित रहे। सन 1996 में यहां से लोकसभा पहुंचे फ्रीदे तोलना ने अम्कोसिमको का मुद्दा सदन में उठाया पर कामयाब नहीं हुए।
निर्मल मुंडा के वंशज साईंहुन डांग और विनती डांग का कहना है कि उन्होंने आमकोसिमको में पांच एकड़ जमीन भी दान में दे दी है ताकि स्मारक बन जाए। अब यह काम हो चुका है। सांसद जुएल ओरम कहते हैं कि ओडिशा विधान सभा इस आशय का प्रस्ताव केंद्र सरकार को अग्रसारित करे तो यह काम और बेहतर ढंग से हो सकता है।