कावेरी जल के बंटवारे को लेकर अभी कर्नाटक में विरोध चल ही रहा था कि इसी के बीच बुधवार को तमिलनाडु में भी कई ट्रेड यूनियनों ने डेल्टा जिले में बंद का आह्वान किया है। ट्रेड यूनियन विरोध करते हुए इस मामले में केंद्र सरकार द्वारा हस्तक्षेप करने की मांग कर रहे हैं। उनकी मांग इस बात को लेकर है कि कर्नाटक, तमिलनाडु के लिए कावेरी से पर्याप्त मात्रा में जल छोड़े ताकि उनकी कुरुवई धान की फसल बच सके और इसके साथ ही वे सांबा की खेती शुरू कर सकें।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने क्या कहा?
राज्य के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने कहा कि, हमारी सरकार ने 12 जून को कुरुवई फसल के लिए मेट्टूर बांध को खोल दिया था। हमारे किसानों ने फसल से संबंधित कार्य जब शुरू कर दिए तब कर्नाटक सरकार ने इसमे संकट उत्पन्न की। कर्नाटक ने कावेरी नदी से पर्याप्त जल नहीं छोड़ा जितना शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया है।
#WATCH | Cauvery water issue | Thiruvarur, Tamil Nadu: Cauvery Delta Protection Movement calls for a bandh to protest against the Karnataka government's failure to release adequate water for irrigation. pic.twitter.com/nZ4j1vAmrd
— ANI (@ANI) October 11, 2023
बता दें कि सोमवार को तमिलनाडु विधानसभा में भी सर्वस्म्मत के साथ एक प्रस्ताव पास किया गया था। इस प्रस्ताव में मांग की गई थी कि केंद्र सरकार इस मामले में हस्तक्षेप करे और कर्नाटक को यह निर्देश दे कि वे कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण के आदेशों के मुताबिक नदी से पानी छोड़े।
क्या है कावेरी विवाद?
कावेरी जल विवाद 140 साल से भी अधिक पुराना है। इस विवाद की शुरूआत 1881 में शुरू हुआ जब कर्नाटक(तब मैसूर के नाम से जाना जाता था) ने इस नदी पर बांध बनाने की मांग उठाई थी। इस मांग का तमिलनाडु ने विरोध किया था। यह विवाद तब से चलता रहा करीब 44 साल बाद ब्रिटिश ने दोनों राज्यों के बीच एक समझौता कराया। इस समझौते में तमिलनाडु के लिए 556 हजार मिलियन कयूबिक फीट पानी और कर्नाटक के लिए 177 हजार मिलियन कयूबिक फीट पानी का करार हुआ। मगर यह विवाद एक बार फिर उठा जब पुडुचेरी और केरल ने भी इसपर अधिकार जताया। इस विवाद को सुलटाने के लिए 1972 में बनाई गई कमेटी ने 1976 में चारों राज्यों के बीच एक करार कराया। मगर इससे भी विवाद नहीं खत्म हुआ। इसके बाद 1990 में गठित ट्रिब्यूनल ने फैसला सुनाया कि ब्रिटिश शासन के दौरान हुए करार के तहत तमिलनाडु को पानी दिया जाएगा। मगर कर्नाटक इस समझौते को सही नहीं मानता है। इस वजह से इन दोनों राज्यों के बीच कावेरी जल को लेकर विवाद चलता रहता है।