तेलंगाना राज्य आंदोलन के दौरान संघर्ष की प्रमुख पहचान मानी जाने वाली ‘तेलंगाना थल्ली’ को कॉन्ग्रेस की रेवंत रेड्डी सरकार ने बदल दिया। तेलंगाना थल्ली की सचिवालय में नई मूर्ति लगाई गई जिसमें पहले की तुलना में कई बदलाव थे। पहले की मूर्ति जहाँ तेलंगाना की हिन्दू संस्कृति और त्यौहारों से मेल खाने वाली थी तो वहीं नई मूर्ति में कई निशानियों को बदल दिया गया है। कॉन्ग्रेस के सरकार के इस कदम के चलते काफी लोग नाराज हैं। उन्होंने इसे तेलंगाना की पहचान मिटाने का प्रयास बताया है।
कौन हैं ‘तेलंगाना थल्ली’?
तेलंगाना यानी तेलुगु बोलने वालों का राज्य और थल्ली का मतलब माँ। यानि तेलंगाना थल्ली का मतलब राज्य की माँ हैं। तेलंगाना थल्ली को सबसे पहले 2003 में सामने लाया गया था। एक रिपोर्ट बताती है कि 2003 में सबसे पहले तेलंगाना थल्ली की परिकल्पना की गई थी। तब तेलंगाना राज्य के लिए आंदोलन तेजी पर था।
निर्मल जिले के रहने वाले एक कलाकार ने तेलंगाना थल्ली की कल्पना की थी। तेलंगाना राज्य के लिए लड़ाई के दौरान आंदोलनकारियों ने अपनी पहचान के अलग निशान बनाने चालू कर दिए थे। 2003 में लाई गई तेलंगाना थल्ली की छवि में जिन देवी की कल्पना की गई थी, उन्होंने एक गुलाबी रंग की रेशम की साड़ी पहनी हुई थी।
गुलाबी रंग भी तेलंगाना राज्य आंदोलन के साथ जुड़ा रहा है। थल्ली के एक हाथ में मक्के की एक बाली थी। उनके हाथ में एक बर्तन है, जिसमें फूल रखे हैं। दरअसल, यह फूलों वाला बर्तन तेलंगाना के एक त्यौहार से संबंध रखता है। इसे बथुकम्मा त्यौहार कहते हैं।
यह त्यौहार तेलंगाना में नवरात्रि के साथ ही मनाया जाता है, जिसमें शक्ति और प्रकृति की पूजा की जाती है। इसी त्यौहार के दौरान, फूलों की पूजा भी होती है। तेलंगाना थल्ली के सर पर मुकुट भी दिखाया गया है। उनके कमर से लेकर शरीर के बाकी अंग पर भी कई सोने के जेवर हैं।
कुल मिलाकर, इन तेलंगाना थल्ली को एक हिन्दू देवी के तौर पर दिखाया गया था। तेलंगाना थल्ली को राज्य बनने के बाद एक प्रमुख पहचान के तौर पर जानी जाती थीं।
कॉन्ग्रेस सरकार ने क्या बदला?
जहाँ अब तक तेलंगाना थल्ली धनधान्य और संस्कृति को दर्शाने वाली देवी के तौर पर दिखती थीं वहीं नई लगाई गई मूर्ति में कई पुराने फीचर गायब हैं। नई मूर्ति में साड़ी का रंग बदल कर हरा कर दिया गया है। उनके अधिकांश जेवर भी मूर्ति पर से हटा दिए गए हैं।
उनके बाएँ हाथ की मक्के की बाली को दाएँ हाथ में दे दिया गया है और इसमें दिखने वाला बथुकम्मा का बर्तन भी गायब है। यानि कॉन्ग्रेस सरकार द्वारा बनाई गई नई डिजाइन में तेलंगाना के बड़े हिन्दू त्यौहार के लिए कोई जगह नहीं है। सबसे हास्यास्पद है कि उनके सर पर दिखने वाला मुकुट भी हटा दिया गया है। नई मूर्ति में चूड़ियों का रंग भी बदल कर हरा कर दिया गया है।
उनका जो एक हाथ खाली है, वह कॉन्ग्रेस के निशान की मुद्रा की तरह दिखता है। इसके अलावा तेलंगाना थल्ली के चेहरे में कुछ बदलाव भी किए गए हैं। इस मूर्ति को सोमवार (9 दिसम्बर , 2024) को तेलंगाना सचिवालय के बाहर लगाया गया है। इस प्रतिमा का अनावरण कॉन्ग्रेस सरकार के मुखिया रेवंत रेड्डी ने किया है।
मूर्ति का अनावरण उस दिन किया गया, जिस दिन कॉन्ग्रेस की मुखिया सोनिया गाँधी का जन्मदिन था। गौर करने वाली बात यह है कि कॉन्ग्रेस नेता सोनिया गाँधी को ही तेलंगाना की माँ बताते आए हैं। इसके पीछे तर्क है कि कॉन्ग्रेस सरकार में ही तेलंगाना राज्य बना था और सोनिया गाँधी ने इसको लेकर काफी प्रयास किए थे।
क्या संस्कृति से किनारा करने की कोशिश?
तेलंगाना की कॉन्ग्रेस सरकार का थल्ली की मूर्ति का डिजाइन बदलना राज्य की भव्य हिन्दू विरासत से किनारा करने के एक प्रयास के तौर पर देखा गया है। इसके पीछे तर्क भी दिए गए हैं। ऐसा दावा करने वालों ने प्रश्न उठाया है कि आखिर साड़ी का रंग का हरा करना क्या सेक्युलरिज्म से सम्बन्धित है।
इसी के साथ ही उनके हाथ से जो हिन्दू त्यौहार से सम्बन्धित बर्तन हटाया गया, वह भी संस्कृति छोड़ने के प्रयास के तौर पर देखा गया है। नई मूर्ति में कोई भी ऐसी सांस्कृतिक पहचान नहीं जोड़ी गई है। देवी के मुकुट को हटाना भी उनके गौरव को कम करने के तौर पर देखा गया है। हिन्दू परंपरा में अधिकांश देवियों के सर पर मुकुट रहता है।
संभवत: कॉन्ग्रेस सरकार शायद इसी हिन्दू पहचान से दूरी बनाना चाहती हो। वहीं उनके हाथ को खाली करके उसे कॉन्ग्रेस के चुनाव चिन्ह पंजे की तरह दिखाने को लेकर भी चिंता जताई गई है। तेलंगाना थल्ली का रूप बदलने को लेकर राजनीतिक लड़ाई भी चालू हो गई है। कॉन्ग्रेस का दावा है कि यह तेलंगाना की एक सामान्य महिला को प्रदर्शित करती हैं। राज्य की विपक्षी पार्टियों ने कॉन्ग्रेस सरकार के इस कदम पर प्रश्न उठाए हैं।
BRS ने कॉन्ग्रेस के इस कदम को तेलंगाना की संस्कृति का अपमान बताया है। BRS नेता के कविता ने कहा, “यह प्रतिमा दशकों से हमारे संघर्ष, बलिदान और पहचान का प्रतीक रही है। इसे केवल सरकारी आदेश के आधार पर नहीं बदला जा सकता। मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी, जिनकी तेलंगाना आंदोलन में कोई भूमिका नहीं है और जो ऐतिहासिक रूप से एकीकृत आंध्र प्रदेश का समर्थन करते आए हैं, वे मनमाने ढंग से इस मूर्ति को अपनी सोच से नहीं बदल सकते।”