मध्य प्रदेश के दमोह जिले के दोनी गांव में प्राचीन शिवलिंग, जलाधारी, और नागदेव की प्रतिमा की खोज ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह खोज न केवल स्थानीय धार्मिक आस्था को मजबूती देती है, बल्कि क्षेत्र के पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व को भी उजागर करती है।
खोज का महत्व:
- कलचुरी काल का संकेत:
विशेषज्ञों द्वारा इन अवशेषों को कलचुरी काल (9वीं से 12वीं शताब्दी) का होने की संभावना जताई जा रही है। यह काल मध्य भारत में स्थापत्य और मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध रहा है। - स्थानीय धार्मिक स्थल का उभार:
शिवलिंग और नागदेव की प्रतिमाओं के मिलने से यह क्षेत्र धार्मिक पर्यटन का केंद्र बन सकता है। ग्रामीणों द्वारा मंदिर बनाने की मांग इस धार्मिक आस्था को और अधिक मजबूती प्रदान करती है। - हनुमान मंदिर और सास-बहू कुंड:
इस क्षेत्र में पहले से ही प्रसिद्ध हनुमान मंदिर और सास-बहू कुंड जैसे प्राचीन स्थल मौजूद हैं। इनकी ऐतिहासिकता भी कलचुरी काल से जुड़ी होने की संभावना है। - पुरातात्विक महत्व:
खुदाई में प्राप्त भग्नावशेष, मूर्तियां और नागदेव की आकृतियां मध्य भारत के प्राचीन स्थापत्य और धार्मिक परंपराओं पर रोशनी डालती हैं।
संभावित प्रभाव:
- धार्मिक पर्यटन का विकास:
इस खोज से दमोह जिले का दोनी गांव धार्मिक पर्यटन का केंद्र बन सकता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। - सांस्कृतिक जागरूकता:
इन अवशेषों के संरक्षण और उनके इतिहास को समझने के प्रयास स्थानीय निवासियों और आगंतुकों के बीच सांस्कृतिक जागरूकता को बढ़ाएंगे। - आर्कियोलॉजिकल रिसर्च:
यह खोज मध्यकालीन भारत के कलचुरी शासन और उनकी स्थापत्य शैली पर नए शोध के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकती है।
आगे की योजना:
- पुरातत्व विभाग की आयुक्त उर्मिला शुक्ला के अनुसार, खुदाई कार्य अभी जारी है और इसके आगे के परिणामों का इंतजार है।
- जिला प्रशासन को इन खोजों का उचित संरक्षण सुनिश्चित करना होगा।
- धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए यहां एक संग्रहालय या व्याख्यान केंद्र बनाने का सुझाव दिया जा सकता है।
इस प्रकार, यह खोज न केवल दमोह जिले की ऐतिहासिक धरोहर को पुनर्जीवित करती है, बल्कि आने वाले समय में इसे एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक स्थल के रूप में स्थापित कर सकती है।