भारत के चीफ (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार (29 जून) को कहा कि जजों की तुलना भगवान से करने की परंपरा खतरनाक है, क्योंकि जजों की जिम्मेदारी आम लोगों के हित में काम करने की है. सीजेआई चंद्रचूड़ ने नेशनल ज्यूडिशियल एकेडमी के क्षेत्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, “अक्सर हमें ऑनर या लॉर्डशिप या लेडीशिप कहकर संबोधित किया जाता है. जब लोग अदालत को न्याय का मंदिर बताते हैं तो इसमें एक बड़ा खतरा है. बड़ा खतरा है कि हम खुद को उन मंदिरों में बैठे भगवान मान बैठें.”
"Grave Danger…": CJI Chandrachud on equating Court with Temple, Judge with God
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— ANI Digital (@ani_digital) June 29, 2024
‘जजों की तुलना भगवान से करना खतरनाक ‘
सीजेआई ने कहा कि जब उनसे कहा जाता है कि कोर्ट न्याय का मंदिर होता है, तो वह कुछ बोल नहीं पाते हैं, क्योंकि मंदिर का मतलब है कि जज भगवान की जगह हैं. उन्होंने कहा, “मैं कहना चाहूंगा कि जजों का काम लोगों की सेवा करना है और जब आप खुद को ऐसे व्यक्ति के रूप में देखेंगे जिनका काम लोगों की सेवा करना है तो आपके अंदर दूसरे के प्रति संवेदना और पूर्वाग्रह मुक्त न्याय करने का भाव पैदा होगा.
सीजेआई संवैधानिक नैतिकता का जिक्र किया
चीफ जस्टिस ने कहा कि किसी क्रिमिनल केस में भी सजा सुनाते समय जज संवेदना के साथ ऐसा करते हैं, क्योंकि अंततः किसी इंसान को सजा सुनाई जा रही है. उन्होंने कहा, “इस वजह मेरा मानना है कि संवैधानिक नैतिकता की ये अवधारणाएं महत्वपूर्ण हैं, न सिर्फ सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों के लिए, बल्कि जिला स्तर के जजों के लिए भी यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि न्यायपालिका के साथ आम लोगों का पहला संपर्क जिले की न्याय व्यवस्था के साथ ही शुरू होता है.”
न्यायपालिका में टेक्नोलॉजी की बात कही
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ न्यायपालिका के कामकाज में टेक्नोलॉजी के महत्व पर भी जोर दिया. सीजेआई चंद्रचूड़ के अनुसार, आम लोगों द्वारा फैसले तक पहुंच और इसे समझने में भाषा सबसे बड़ी बाधा है. उन्होंने कहा, “टेक्नोलॉजी कुछ चीजों का समाधान प्रदान कर सकता है. ज्यादातर फैसले अंग्रेजी में लिखे जाते हैं. टेक्नोलॉजी ने हमें उनका अनुवाद करने में सक्षम बनाया है. हम 51 हजार फैसलों का दूसरी भाषाओं में अनुवाद कर रहे हैं.”