किसान नेता जयंत चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल एनडीए में शामिल हो गई है. सोमवार को एनडीए का हिस्सा बनने के बाद आरएलडी चीफ जयंत चौधरी ने कहा कि उन्होंने यह फैसला सभी की भलाई को देखते हुए लिआ है. हालांकि, बहुत कम समय में हमें यह फैसला लेना पड़ा. हम लोगों के लिए कुछ अच्छा करना चाहते हैं.
एनडीए में शामिल होने के लेकर विधायकों की नाराजगी के सवाल पर जयंत चौधरी ने कहा, मैंने अपनी पार्टी के सभी एमएलए और कार्यकर्ताओं से बात करने के बाद यह फैसला लिया. इस फैसले के पीछे कोई बड़ी प्लानिंग नहीं थी. हमें थोड़े समय में ही यह फैसला लेना पड़ा. हम लोगों के लिए कुछ अच्छा करना चाहते हैं.
उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि एनडीए में शामिल होने के फैसले के पीछे कोई बड़ी प्लानिंग रही हो या फिर हम तैयार बैठे थे. चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से नवाजा गया तो हम सभी खुश हैं. बहुत बड़ा सम्मान है जो कि केवल हमारे परिवार और दल तक ही सीमित नहीं है. देश के कोने-कोने में रहने वाले हमारे जो किसान भाई है, नौजवान हैं, गरीब लोग हैं उनका भी सम्मान है.
जयंत ने क्या कहा?
जयंत ने ये भी कहा है कि चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से नवाजा जाना मेरे और मेरे परिवार समेत किसान समुदाय के लिए बहुत बड़ा सम्मान है। विधायकों की नाराजगी पर जयंत ने कहा कि सभी से बातचीत के बाद ये फैसला लिया गया है।
सियासत के जानकारों का कहना है कि जयंत की पार्टी के एनडीए के साथ आने से पश्चिमी यूपी में चुनावी समीकरणों पर बड़ा असर पड़ेगा।
पश्चिमी यूपी का क्या है सियासी गणित?
पश्चिमी यूपी में किसान, जाट और मुस्लिम वोट बैंक काफी ज्यादा है। यहां लोकसभा की कुल 27 सीटें हैं, जिसमें 2019 के चुनाव में आरएलडी को एक भी सीट हासिल नहीं हुई थी लेकिन बीजेपी ने 19 सीटों पर जीत पाई थी। सपा और बसपा के खाते में 4-4 सीटें आई थीं। अगर 2014 के लोकसभा चुनावों की बात करें तो उस दौरान भी आरएलडी को एक भी सीट नहीं मिली थी।
पिछले चुनाव में किसी सीट पर नहीं मिली जीत
पश्चिमी यूपी को जाट, किसान और मुस्लिम बाहुल्य इलाका माना जाता है. यहां लोकसभा की कुल 27 सीटें हैं और 2019 के चुनाव में बीजेपी ने 19 सीटों पर जीत हासिल की थी. जबकि 8 सीटों पर विपक्षी गठबंधन ने कब्जा किया था. इनमें 4 सपा और 4 बसपा के खाते में आई थी. लेकिन, आरएलडी को किसी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई थी. यहां तक कि जयंत को पश्चिमी यूपी में जाट समाज का भी साथ नहीं मिला था. यही नहीं, 2014 के चुनाव में भी जयंत को निराशा हाथ लगी थी और एक भी सीट नहीं मिली थी.