रतन टाटा की दूरदृष्टि और उनकी ड्रीम कार “Tata Nano” से जुड़ी उस यात्रा की गवाही देता है, जिसे उन्होंने एक आम आदमी की कार से एक भविष्य की इलेक्ट्रिक कार में बदलने का सपना देखा था। हालांकि रतन टाटा अब हमारे बीच नहीं हैं (आपका लेख यही संकेत देता है), लेकिन उनके सपने, सोच और प्रयास आज भी प्रेरणा देने वाले हैं।
रतन टाटा और Tata Nano: एक अधूरा लेकिन प्रेरणादायक सपना
1. Tata Nano: आम आदमी की कार से भविष्य की कार तक
- रतन टाटा ने Tata Nano को हर भारतीय का सपना मानकर बनाया था — एक ऐसी कार जो दोपहिया वाहन से कार में अपग्रेड करने की आकांक्षा को पूरा कर सके।
- वह इस कार को एक कम्युटर व्हीकल मानते थे, खासकर भीड़भाड़ वाले शहरों के लिए, और इसे आगे चलकर इलेक्ट्रिक कार में बदलने का सपना देखते थे।
2. Neo EV प्रोजेक्ट: नैनो को इलेक्ट्रिक में बदलने की कोशिश
- 2015 के आसपास उन्होंने इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की और इसका नाम रखा “Neo EV”।
- उनका प्लान था दो वैरिएंट पेश करने का:
- सिटी टूर वैरिएंट (छोटी बैटरी, कम रेंज)
- लॉन्ग रूट वैरिएंट (बड़ी बैटरी, लंबी दूरी की क्षमता)
- इसके लिए वे कोयंबटूर के एक स्टार्टअप के साथ मिलकर काम कर रहे थे।
3. भाविश अग्रवाल और OLA Electric का कनेक्शन
- रतन टाटा ने ओला इलेक्ट्रिक के फाउंडर भाविश अग्रवाल से 2015 में मुलाकात की और उनकी कंपनी में निवेश किया।
- 2017 में एक दिन उन्होंने भाविश को कॉल कर मुंबई बुलाया और अपने पर्सनल जेट में कोयंबटूर ले गए, जहाँ Nano EV प्रोजेक्ट पर काम चल रहा था।
- भाविश के अनुसार, Ola Electric की असल शुरुआत उसी दिन से हुई थी — एक तरह से रतन टाटा की प्रेरणा और विजन का ही विस्तार।
निष्कर्ष:
रतन टाटा का Tata Nano को इलेक्ट्रिक कार में बदलने का सपना, Neo EV, भले ही पूरी तरह साकार नहीं हो पाया, लेकिन यह भविष्य की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के लिए एक बीज रूपी प्रेरणा बन गया।
उनकी सोच सिर्फ बिजनेस तक सीमित नहीं थी — वह समाज के अंतिम व्यक्ति तक टेक्नोलॉजी पहुंचाना चाहते थे। यही कारण है कि वह Jaguar जैसी लक्ज़री कार होते हुए भी आखिरी दिनों में Nano EV प्रोटोटाइप में घूमना पसंद करते थे।
यह सपना अधूरा जरूर है, लेकिन इससे जुड़े बीज आज भारत के इलेक्ट्रिक वाहन क्षेत्र में फल-फूल रहे हैं — और शायद एक दिन Tata Nano EV को हम सड़कों पर फिर से देखेंगे, एक सच्चे श्रद्धांजलि के रूप में रतन टाटा के विजन को।