माँ तो माँ होती है, संतान दुनिया से चली जाए, परंतु माँ के मन से नहीं जाती। 24 साल पहले कारगिल की लड़ाई में पंजाब का एक जवान बलिदान हुआ, लेकिन माँ उसे मरा हुआ नहीं मानती। आज भी उसके लिए तीन टाइम का उसकी पसंद का खाना बनाती है, कमरा साफ करती है और हर रोज वर्दी धो कर बेटे की फोटो के पास चढ़ाती है।
पंजाब के जिला होशियारपुर के तलवाड़ा खण्ड के गांव रेपुर के बलिदानी नौजवान राजेश कुमार देश की सेवा करने के लिए भारतीय सेना में सन 1995 में 16 डोगरा रेजिमेंट में तैनात हुआ। सेना 4 साल की सेवा के दौरान 1999 में हुए कारगिल युद्ध में राजेश ने देश की खातिर अपनी जान कुर्बान कर दी। बलिदानी राजेश की माता महिंदर कौर आज भी मानती हैं कि उसका बेटा जिंदा है और उसके साथ है।
रोजाना बेटे के कमरे में जाकर बेटे को तीन टाइम का खाना रखने के साथ-साथ बिस्तर साफ करती है। उसकी वर्दी जूते हर चीज हर रोज साफ कर तैयार करती है। साथ ही गर्मियों और सर्दियों के मौसम के अनुसार कमरे में हर वो सुविधा प्रदान की जाती है जो एक जिंदा आदमी के लिए जरूरी हो। मां ने अपने बेटे को खुद की नजरों में जिंदा रखने के लिए राजेश के कमरे को मंदिर की तरह सजा दिया। जहां मां द्वारा दो वक्त की पूजा-अर्चना कर बेटे की फोटो पर रोजाना तिलक लगाया जा रहा। यह सारा कार्यक्रम बेटे की बलिदान के कुछ दिनों बाद ही शुरू कर दिया गया था।
पांच बहनों और मां के इकलौते बेटे की इस बलिदान को आज 24 साल बाद भी याद कर इस मां का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। बलिदानी राजेश कुमार की माता महिंदर कौर ने बताया कि राजेश उनका इकलौता बेटा था। चाचा आर्मी में होने के कारण वह भी आर्मी में जाना चाहता था। लेकिन हमारा पूरा परिवार इसके लिए तैयार नहीं था। उसकी जिद के आगे हमारी एक न चली और उसने आर्मी जॉइन कर ली। कुछ सालों बाद कारगिल का युद्ध शुरू हुआ।
बेटे की यूनिट की तैनाती भी कारगिल में कर दी गई। युद्ध के कुछ दिनों बाद ही हमारे घर दो आर्मी के जवान आए, जिन्होंने बेटे के एक्सीडेंट हो जाने की बात बताई। धीरे-धीरे गांव के लोगों का घर में एकत्रित होना कुछ हद तक उसकी बलिदान हो जाने की समझ आ गई थी। अगले ही दिन बेटे का पार्थिव शरीर तिरंगे से लिपटा घर पहुंचा। उन्होंने बताया उसके पिता की मौत के बाद राजेश ही उनका सहारा था। आज पूरा इलाका राजेश कुमार के बलिदान पर गर्व महसूस करता है।