सुप्रीम कोर्ट की तरफ से हाल में इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन (EVM) और वीवीपैट को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनिया गया. कोर्ट का ये फैसला पूरी तरह से देशहित में है. इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि ईवीएम को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला उन लोगों के मुंह पर एक जोरदार तमाचा है, जो दिन भर ईवीएम का रोना रोते रहते थे. ईवीएम का नाम लेकर विपक्ष के लोग दिन रात देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोसते रहते थे. विपक्ष को ईवीएम से कोई भी लेना देना नहीं है बल्कि ईवीएम का बहाना या कोई अन्य बहाना चाहिए, जिससे कि वो प्रधानमंत्री को कोस सके.
विपक्ष अक्सर झूठे बहानों के जरिये पीएम मोदी को अपमानित करने, उन्हें गाली देने की कोशिश हमेशा से करता रहा है. ईवीएम का जो मुद्दा था, जो संदेश जताया जा रहा था, उसको देश के सर्वोच्च न्यायालय ने खत्म कर दिया है. इस फैसले के बाद देश की जनता को एक नई आशा किरण लोकतंत्र में दिखाई दे रही है.
ऐसा नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद अब आगे कभी भी ईवीएम पर सवाल नहीं उठाया जाएगा, बल्कि विपक्ष को सुप्रीम कोर्ट पर भी भरोसा नहीं है. चुनाव आयोग के अलावा किसी भी संवैधानिक संस्था पर विपक्ष का भरोसा नहीं है. दरअसल, विपक्ष आज सत्ता के लिए फ्रस्ट्रेट हो गई है, उनको किसी भी हाल में देश की सत्ता चाहिए.
फ्रस्ट्रेशन में विपक्ष
सत्ता के लिए ये लोग कुछ भी करने को तैयार है और इन्हें सिद्धांतों से दूर-दूर तक कोई भी लेना-देना नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद सभी विपक्ष मिलकर एक फिर से ईवीएम पर सवाल उठाएंगे, जबकि फैसला आने के बाद कोई सवाल नहीं उठने चाहिए थे. ईवीएम में कोई समस्या नहीं है, बल्कि इनके दिमाग में समस्या ईवीएम को लेकर बन चुकी है.
2024 लोकसभा चुनाव के नतीजे जब आएंगे तो विपक्ष का फ्रस्ट्रेशन जरूर फिर से दिखेगा. ईवीएम पर विपक्ष और कांग्रेस का आज जिस तरह से रोना रो रही है, ऐसे में कर्नाटक-हिमाचल प्रदेश में कैसे कांग्रेस की सरकार बन गई? फिर तो वहां पर इस्तीफा दे देना चाहिए.
सवाल उठता है कि ईवीएम अगर खराब होती तो वायनाड से राहुल गांधी कैसे जीतते या फिर तेलंगाना में विपक्षी कांग्रेस पार्टी की सरकार कैसे बन जाती? विपक्ष जहां सरकार बनाने में कामयाब हो जाती है, वहां वे ईवीएम पर चुप हो जाते हैं. जहां हार होती है, वहां पर सारा ठीकरा EVM पर फोड़ दिया जाता है. लोकतंत्र को कलंकित किया जाता है. देश के लोकतंत्र पर सवाल खड़े किए जाते हैं. इसलिए ईवीएम में कोई खराबी नहीं है, बल्कि खराबी दिमाग में है और उसे ईलाज कराए जाने की जरूरत है.
सवाल उठाने का नहीं कोई लॉजिक
सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने के बाद अलग-अलग मैसेज सामने आए. सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिकाकर्ता को अलग और चुनाव आयोग को अलग नोटिस दिया गया. लोकतंत्र में सबको सवाल पूछने का अधिकार है. इसको ध्यान में रखकर ईवीएम पर सवाल उठाना तो ठीक है, लेकिन दो बातें एक साथ तो नहीं चल सकती है.
जब सरकार बनती है या चुनाव जीतते हैं तो ईवीएम ठीक हो जाती है और जब चुनाव हारता हैं तो ईवीएम खराब हो जाती है. किसी एक बयान पर टिके रहने की जरूरत है.
सवाल उठाने के बाद भी कोई लॉजिक नहीं दिखता. बिना लॉजिक के सवाल उठाए जाने की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनकर सभी तरह के संशय को खत्म करने की कोशिश की है. इसके बावजूद EVM पर सवाल आगे भी उठते रहेंगे और कहा जाएगा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं.
विपक्ष लगातार लगाते रहा है आरोप
भले ही चुनाव में ईवीएम के प्रयोग को लेकर एक वक्त बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आड़वाणी भी सवाल उठा चुके है, लेकिन शुरुआत में उस समय प्रमाणिकता देश की जनता के पास नहीं पहुंच पाई थी. EVM पर सवाल उठाना तो ठीक है, लेकिन उसका कोई लॉजिक तो होना चाहिए.
चुनाव आयोग तो साफतौर पर कह रहा है कि अगर ईवीएम हैक हो जाता है तो उसे कर के दिखाया जाए, ताकि उस पर काम किया जा सके. राजस्थान में अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की पूर्ण बहुमत की सरकार थी. लेकिन बाद में कैसे चुनाव के नतीजे उनके पक्ष में नहीं रहे.
इससे पहले भी, ईवीएम से ही तो इन दोनों राज्यों में चुनाव कराए गए थे और सरकार उनकी बनी थी. विपक्ष ने हार के बाद ईवीएम पर हमेशा से सवाल उठाया है. देश में लोकतंत्र के चार स्तंभ है. लोकतंत्र के चारों स्तंभ तो गलत नहीं हो सकते. विपक्ष तो मीडिया पर भी आरोप लगाती रही है, लेकिन ऐसा नहीं है. लोकतंत्र के चार स्तंभ है और चारों कार्य कर रहे हैं.