कांग्रेस ने सूरत लोकसभा सीट पर पर्चा रद होने से लेकर कई उम्मीदवारों के नाम वापस लेने की वजह से भाजपा प्रत्याशी के निर्विरोध निर्वाचित होने पर गंभीर सवाल उठाते हुए चुनाव आयोग से सूरत का चुनाव रद कर नए सिरे से चुनाव कराने की मांग की है।
चुनाव आयोग ने रद किया कांग्रेस उम्मीदवार का नामांकन
लोकसभा चुनाव के परिणाम चार जून को आने वाले हैं। हालांकि, रिजल्ट आने से पहले ही सूरत के भाजपा उम्मीदवार मुकेश दलाल को विजेता घोषित कर दिया गया है। दरअसल, कांग्रेस की ओर से नीलेश कुंभानी को इस लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया गया था।
चुनाव आयोग ने उनकी उम्मीदवारी खारिज कर दिया क्योंकि जिला रिटर्निंग अधिकारी ने उनका नामांकन फॉर्म रद कर दिया। वहीं, इस सीट से अन्य सभी उम्मीदवारों ने भी अपना नामांकन वापस ले लिया।
इन नेताओं ने भी हासिल की थी निर्विरोध जीत
पेमा खांडू तीन बार निर्विरोध जीते
निर्वाचन आयोग ने जब 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों की घोषणा की थी, तो उसके दो हफ्ते बाद ही अरुणाचल प्रदेश विधानसभा के लिए 10 भाजपा उम्मीदवार चुनावों से पहले ही निर्विरोध चुन लिए गए. इनमें मुख्यमंत्री पेमा खांडू भी शामिल थे. इससे पहले खांडू 2014 के अरुणाचल प्रदेश विधान सभा चुनाव में भी निर्विरोध चुने गए थे. जून 2011 में भी पेमा खांडू ने कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में मुक्तो विधानसभा क्षेत्र से निर्विरोध उपचुनाव जीता था.
डिंपल यादव भी कन्नौज से निर्विरोध जीतीं
2012 में उत्तर प्रदेश की कन्नौज लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव निर्विरोध सांसद निर्वाचित हुई थीं. अखिलेख यादव के इस्तीफे के बाद खाली हुई इस सीट पर हुए उपचुनाव में डिंपल यादव के सामने किसी ने चुनाव नहीं लड़ा था. बीएसपी और कांग्रेस ने कोई प्रत्याशी खड़ा नहीं किया था. बीजेपी उम्मीदवार समय पर पर्चा दाखिल नहीं कर पाया और दो निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपने नाम वापस ले लिए थे.
अब तक 28 सांसद निर्विरोध चुने गए
1952 के पहले लोकसभा चुनाव से लेकर अबतक 28 सांसद और 298 विधायक चुनाव लड़े बिना ही संसद या विधानसभा पहुंच चुके हैं.
नागालैंड विधानसभा इस मामले में सबसे आगे है. यहां 77 विधायक निर्विरोध चुने जा चुके हैं. नागालैंड के जम्मू-कश्मीर में 63 और अरुणाचल प्रदेस में 40 विधायक निर्विरोध चुनाव जीतकर सदन में पहुंच चुके हैं.
1962 में हुए विधानसभा चुनावों में आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और जम्मू-कश्मीर से 47 विधायक बिना संघर्ष के ही नेता चुने लिए गए. इसके बाद 1998 में 45 और 1967 तथा 1972 में 33-33 विधायक चुने गए थे.
संसदीय चुनाव में निर्विरोध जीत हासिल करने वाले अन्य प्रमुख नेताओं में वाईबी चव्हाण, फारूक अब्दुल्ला, हरे कृष्ण महताब, टीटी कृष्णामाचारी, पीएम सईद और एससी जमीर शामिल हैं। बिना किसी मुकाबले के लोकसभा पहुंचने वालों में सबसे अधिक कांग्रेस के उम्मीदवार हैं।
मुकेश दलाल की जीत पर भड़के राहुल गांधी
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सोशल मीडिया हैंडल ‘एक्स’ पर लिखा,”तानाशाह की असली ‘सूरत’ एक बार फिर देश के सामने है। जनता से अपना नेता चुनने का अधिकार छीन लेना बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान को खत्म करने की तरफ बढ़ाया एक और कदम है। मैं एक बार फिर कह रहा हूं-यह सिर्फ सरकार बनाने का चुनाव नहीं है, यह देश को बचाने का चुनाव है, संविधान की रक्षा का चुनाव है।”
तानाशाह की असली 'सूरत’ एक बार फिर देश के सामने है!
जनता से अपना नेता चुनने का अधिकार छीन लेना बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान को खत्म करने की तरफ बढ़ाया एक और कदम है।
मैं एक बार फिर कह रहा हूं – यह सिर्फ सरकार बनाने का चुनाव नहीं है, यह देश को बचाने का चुनाव है, संविधान की…
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) April 22, 2024
कांग्रेस पार्टी के पार्टी के वरिष्ठ नेता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि सूरत के कांग्रेस उम्मीदवार पहले कुछ घंटों के लिए गायब हो जाते हैं और फिर जब प्रकट होते हैं तो उनके चारों प्रस्तावक एक साथ पर्चा पर हस्ताक्षर होने की बात से मुकर जाते हैं। इसके बाद दूसरे दल और निर्दलीय सभी अन्य प्रत्याशी नाम वापस लेते हैं और भाजपा प्रत्याशी मुकेश दलाल को विजेता घोषित कर दिया जाता है।
इसके पीछे जो खेल हुआ है वह सबको मालूम है और इसलिए चुनाव आयोग से पार्टी ने आग्रह किया है कि वह स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव की मर्यादा कायम रखने के लिए सूरत के चुनाव को खारिज कर फिर से चुनाव कराए।