सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन को लेकर महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और सरकारी तंत्र की जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु 5 अहम आदेश जारी किए हैं। ये आदेश जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ द्वारा ‘वी द वुमन’ नामक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए गए।
सुप्रीम कोर्ट के 5 अहम आदेश:
1. संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति (Protection Officers)
- सभी राज्य व केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया गया है कि वे जिला व तालुका स्तर पर अधिकारियों की पहचान कर उन्हें प्रोटेक्शन ऑफिसर के रूप में नामित करें।
- ये अधिकारी घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 9 के तहत अपने कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे।
2. समन्वय और जागरूकता अभियान
- मुख्य सचिवों और महिला/बाल कल्याण विभागों के सचिवों को निर्देश:
- अधिनियम के प्रावधानों के प्रचार-प्रसार और जागरूकता के लिए मीडिया अभियान चलाएं।
- 6 हफ्तों में उन क्षेत्रों में प्रोटेक्शन ऑफिसर तैनात करें जहां अब तक नियुक्त नहीं हुए हैं।
- शेल्टर होम्स, सहायता समूहों और सेवा प्रदाताओं की उपलब्धता सुनिश्चित करें।
- जरूरत पड़ने पर महिलाओं को आश्रय गृहों में सुरक्षित स्थान दिया जाए।
3. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC)
- फिलहाल PHCs सभी के लिए उपलब्ध हैं, इसलिए अदालत ने इस मुद्दे पर कोई अतिरिक्त निर्देश जारी नहीं किए हैं।
4. केंद्र सरकार की जिम्मेदारी
- धारा 11 के तहत केंद्र सरकार को भी महिलाओं के अधिकारों के प्रचार और संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभाने को कहा गया है।
5. मुफ्त कानूनी सहायता
- NALSA (राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण) को निर्देश:
- सभी राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों (SLSA) को सूचित करें कि वे जिला व तालुका स्तर पर यह सुनिश्चित करें कि हर महिला को घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मुफ्त कानूनी सहायता मिले।
- इसका वृहद प्रचार-प्रसार हो और जब भी कोई महिला संपर्क करे, तो उसे तत्काल सहायता प्रदान की जाए।
महत्वपूर्ण पृष्ठभूमि
- यह आदेश ऐसे समय में आया है जब घरेलू हिंसा के मामलों में लगातार वृद्धि देखी जा रही है।
- कई राज्यों में प्रोटेक्शन ऑफिसर की नियुक्ति नहीं हुई है या उनकी संख्या बेहद कम है।
- पीड़ित महिलाएं अक्सर कानूनी अधिकारों और मदद के साधनों की जानकारी से वंचित रहती हैं।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को न्याय दिलाने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। इससे केंद्र और राज्य सरकारों पर जवाबदेही तय होगी और पीड़ित महिलाओं को सुरक्षा, आश्रय और न्यायिक सहायता मिलने का रास्ता साफ होगा।