बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर हुई भगदड़ की घटना, जिसमें 11 लोगों की मौत और 33 घायल हुए, बेहद दर्दनाक और चिंताजनक है। यह हादसा कई सवाल खड़े करता है — प्रशासनिक लापरवाही, आयोजन प्रबंधन की विफलता, और राजनीतिक प्राथमिकताओं की दिशा को लेकर।
घटना का सार
- स्थान: बेंगलुरु का एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम, गेट नंबर 6
- मौका: RCB की IPL में जीत के जश्न के दौरान
- भीड़: अनुमानित 2-3 लाख लोग, जबकि स्टेडियम की क्षमता केवल 35,000
- स्थिति: गेट तोड़कर अंदर घुसने की कोशिश के दौरान मची भगदड़
- मृतक: 11 (6 बॉरिंग अस्पताल, 4 वैदेही, 1 मणिपाल)
- घायल: 33, अलग-अलग अस्पतालों में इलाज जारी
कर्नाटक सरकार की प्रतिक्रिया
- CM सिद्धारमैया:
- हादसे की न्यायिक जांच के आदेश दिए, रिपोर्ट 15 दिन में मांगी।
- कहा: “स्टेडियम कार्यक्रम की हमें जानकारी नहीं थी, यह क्रिकेट एसोसिएशन का आयोजन था।”
- मीडिया के तीखे सवालों पर कहा: “ऐसी घटनाएं कुंभ जैसे आयोजनों में भी होती हैं, तब हमने आलोचना नहीं की थी।”
- आर्थिक सहायता: मृतकों के परिजनों को ₹10 लाख की घोषणा
विपक्ष का आरोप
- भाजपा का आरोप:
- हादसे के बावजूद सरकार RCB खिलाड़ियों संग जश्न में व्यस्त रही
- डिप्टी सीएम सेल्फी में लगे रहे
- सवाल: “क्या RCB की जीत को भुनाने के चक्कर में कर्नाटक सरकार ने जनसुरक्षा की अनदेखी कर दी?”
IPL और BCCI की प्रतिक्रिया
- IPL चेयरमैन अरुण धूमल:
- कहा: “आगे इस तरह के आयोजनों में बेहतर सुरक्षा इंतजाम किए जाएंगे।”
जिम्मेदारी का सवाल
- क्या यह घटना आयोजकों की लापरवाही थी?
- आयोजन की जानकारी राज्य प्रशासन से साझा नहीं की गई — यह अगर सही है, तो BCCI/क्रिकेट एसोसिएशन की बड़ी चूक है।
- क्या पुलिस बल अपर्याप्त था?
- मुख्यमंत्री के अनुसार, “बेंगलुरु में उपलब्ध पूरी पुलिस फोर्स तैनात थी,” लेकिन भीड़ की अनुमानित संख्या 3 लाख तक थी — स्पष्ट तौर पर crowd control असफल रहा।
- क्या सरकार ने पहले से खतरे को भांपा नहीं?
- RCB की जीत का जश्न सार्वजनिक रूप से तय था, ऐसे में भीड़ नियंत्रण की पूरी तैयारी जरूरी थी। इस विफलता की जिम्मेदारी टाली नहीं जा सकती।
राजनीतिक बयानबाज़ी बनाम ज़िम्मेदारी
- विपक्षी हमले और मुख्यमंत्री का “कुंभ में भी हुआ था” जैसा जवाब नैतिक जिम्मेदारी से बचने की कोशिश के रूप में देखा जा सकता है।
- यह बात सही है कि भगदड़ कई बड़े आयोजनों में हो जाती है, लेकिन इससे वर्तमान चूकें जायज नहीं हो जातीं।
अब ज़रूरत किस चीज़ की है?
- निष्पक्ष जांच — ताकि जिम्मेदारी तय हो।
- भीड़ प्रबंधन SOPs का पुनर्मूल्यांकन
- राजनीतिक चुप्पी नहीं, पारदर्शिता और माफी — यह जनता के लिए भरोसेमंद कदम होगा।
- आयोजनों के लिए प्रशासनिक अनुमति और संवाद अनिवार्य बनाना