बागपत के राजपुर खामपुर गांव में 50-60 साल पहले तालाब की जमीन पर बनी अवैध मस्जिद को हटाने का आदेश जारी किया गया है। यह आदेश तहसीलदार की अदालत में सुनवाई के बाद लिया गया, जिसमें मस्जिद के मुतवल्ली (धार्मिक अधिकारी) पर 4.12 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है।
इस निर्णय के बाद, प्रशासन ने मस्जिद के अवैध कब्जे को हटाने की प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी की है। तहसीलदार की अदालत ने यह माना कि मस्जिद की स्थापना उस भूमि पर की गई थी जो पहले तालाब के रूप में थी, और इसे अवैध रूप से कब्जा किया गया था।
इस कार्रवाई को लेकर स्थानीय प्रशासन ने यह निर्णय लिया है कि सार्वजनिक संपत्ति और जल स्रोतों को बचाने के लिए इस तरह के कब्जों को हटाया जाना चाहिए। जुर्माना भी इसलिए लगाया गया ताकि भूमि का अवैध कब्जा करने वालों पर कानूनी दबाव बनाया जा सके।
यह निर्णय एक बड़े प्रशासनिक कदम के रूप में देखा जा रहा है, जो अवैध कब्जे और सार्वजनिक संसाधनों की रक्षा के लिए उठाया गया है। हालांकि, यह निर्णय सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से संवेदनशील हो सकता है, और स्थानीय समुदाय में इस पर विभिन्न प्रतिक्रियाएं आ सकती हैं।
विवाद कैसे शुरू हुआ?
गांव के निवासी गुलशार ने जुलाई में हाईकोर्ट में एक विशेष याचिका दाखिल की थी, जिसमें उन्होंने मुतवल्ली (मस्जिद के प्रबंधक) पर आरोप लगाया कि उसने गांव के तालाब की जमीन पर अवैध रूप से मस्जिद का निर्माण किया है। गुलशार का कहना था कि तालाब की जमीन, जो सार्वजनिक संपत्ति है, पर मस्जिद का निर्माण करके मुतवल्ली ने सरकारी संपत्ति का अतिक्रमण किया है, और इसलिए यह अवैध निर्माण हटाया जाना चाहिए।
गुलशार की याचिका के बाद, मामले की सुनवाई तहसीलदार की अदालत में हुई, जिसमें यह पाया गया कि मस्जिद का निर्माण उस सार्वजनिक भूमि पर हुआ था जो पहले तालाब के रूप में इस्तेमाल हो रही थी। अदालत ने इसके बाद मुतवल्ली पर 4.12 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया और मस्जिद को हटाने का आदेश दिया।
यह मामला सरकारी संपत्ति के अतिक्रमण और सार्वजनिक जल स्रोतों की सुरक्षा के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है। इसके साथ ही यह भी दर्शाता है कि न्यायिक व्यवस्था अवैध कब्जों को लेकर गंभीर है, चाहे वह किसी धार्मिक स्थल से जुड़ा हो या अन्य किसी प्रकार का।
कोर्ट की सुनवाई और फैसला
हाईकोर्ट ने गुलशार की याचिका पर सुनवाई करते हुए राजस्व संहिता के आधार पर कार्रवाई करने का आदेश दिया था। अदालत ने 90 दिन के अंदर मामले का निपटारा करने का निर्देश दिया, ताकि उचित समय में न्यायिक प्रक्रिया पूरी की जा सके और अवैध कब्जे को हटाने की कार्रवाई की जा सके।
इसके बाद, जिलाधिकारी (डीएम) के आदेश पर तहसीलदार ने मस्जिद की जमीन का माप कराया। मापने के बाद यह स्पष्ट हुआ कि मस्जिद वास्तव में तालाब की जमीन पर बनी थी, जो पहले सार्वजनिक जल स्रोत के रूप में उपयोग हो रही थी। यह निष्कर्ष इस बात को साबित करता है कि मस्जिद का निर्माण अवैध तरीके से उस सरकारी संपत्ति पर हुआ था।
इस प्रक्रिया ने साबित कर दिया कि मस्जिद का निर्माण नियमों और कानूनों का उल्लंघन करते हुए सार्वजनिक संपत्ति पर किया गया था, जिसके कारण तहसीलदार की अदालत ने इसे हटाने का आदेश दिया और मुतवल्ली पर 4.12 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।
यह पूरी प्रक्रिया सरकारी भूमि के अतिक्रमण से संबंधित एक महत्वपूर्ण कदम है, जो यह भी दर्शाता है कि न्यायिक व्यवस्था अवैध कब्जों के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई कर रही है।
तहसीलदार अभिषेक कुमार सिंह की अदालत में हुई सुनवाई के दौरान राजस्व जिला शासकीय अधिवक्ता रविंद्र सिंह राठी और अपर जिला शासकीय अधिवक्ता नागेश कुमार ने सरकारी पक्ष रखा। सुनवाई के बाद, तहसीलदार ने मस्जिद को अवैध निर्माण घोषित कर दिया और मुतवल्ली फरियाद पर 4.12 लाख रुपये का जुर्माना लगाने का आदेश दिया। इसके अतिरिक्त, निष्पादन व्यय के रूप में 5,000 रुपये अदा करने का भी आदेश दिया गया।
यह आदेश, मस्जिद के निर्माण को अवैध बताते हुए, सरकारी संपत्ति पर अतिक्रमण करने की गंभीरता को सामने लाता है। तहसीलदार ने इस आदेश के जरिए सरकारी भूमि का संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए यह कदम उठाया है। जुर्माना और निष्पादन व्यय के भुगतान से यह संदेश भी दिया गया है कि अवैध कब्जों पर सख्ती से कार्रवाई की जाएगी और कानून का पालन किया जाएगा।
यह पूरी प्रक्रिया सरकारी भूमि के संरक्षण और अवैध निर्माणों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
गांव में तनाव का माहौल
कोर्ट के इस फैसले के बाद गांव के लोगों में आक्रोश देखा जा रहा है। मस्जिद गिराने के आदेश से गांव में अशांति का माहौल बना हुआ है, और लोग इस निर्णय के खिलाफ अपनी नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं। कई लोग इसे धार्मिक भावनाओं से जुड़ा मामला मानते हुए इस पर विरोध कर रहे हैं।
मस्जिद को गिराने के लिए राजस्व अधिकारियों की एक समिति का गठन किया जाएगा, जो इस कार्यवाही के समय और तरीके का निर्धारण करेगी। यह समिति गांव में जाकर मस्जिद को हटाने की कार्रवाई को अमल में लाएगी। यह कार्रवाई, जो न्यायिक आदेश के तहत की जाएगी, सार्वजनिक संपत्ति के संरक्षण और सरकारी भूमि पर कब्जे को हटाने के लिए जरूरी मानी जा रही है।
हालांकि, यह कदम सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से संवेदनशील हो सकता है, और इसका विरोध हो सकता है। कुछ लोग इसे एक धार्मिक विवाद के रूप में देख रहे हैं, जबकि प्रशासन इसे कानून और व्यवस्था के लिहाज से जरूरी कदम मान रहा है।
समिति का गठन और कार्यवाही की प्रक्रिया को लेकर गांव में तनाव बढ़ सकता है, और यह देखना होगा कि इस मुद्दे को सुलझाने के लिए स्थानीय प्रशासन और सभी पक्षों के बीच किस तरह की बातचीत और समन्वय होता है।