उत्तर प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था में व्यापक सुधार की दिशा में योगी सरकार द्वारा लिए गए प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों के विलय (मर्जर) के निर्णय को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 7 जुलाई 2025 को अपनी मंजूरी दे दी है। हाई कोर्ट ने सीतापुर जिले के 51 छात्रों द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि राज्य सरकार का यह निर्णय दूरदर्शिता से लिया गया है और इसका उद्देश्य शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ बनाना है। कोर्ट ने माना कि यह कदम छात्रों के व्यापक हित में है और इसे अवरुद्ध नहीं किया जा सकता। इस निर्णय से राज्य के लगभग 5000 विद्यालय प्रभावित होंगे, जिससे हजारों बच्चों और शिक्षकों की कार्यप्रणाली में बदलाव आएगा।
योगी सरकार का यह निर्णय ऐसे समय पर सामने आया है जब राज्य में 1.3 लाख से अधिक प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय कार्यरत हैं, जिनमें 6 लाख से अधिक शिक्षक तैनात हैं। सरकार का तर्क है कि राज्य के कई स्कूलों में मात्र 20–30 बच्चे ही पढ़ते हैं, जबकि ऐसे विद्यालयों में सरकार को पूरे बजट, शिक्षक, संसाधन और अधोसंरचना उपलब्ध करानी होती है, जो एकतरफा व्यय है। वहीं दूसरी ओर कुछ विद्यालयों में 100 से अधिक बच्चे पढ़ते हैं लेकिन शिक्षकों की संख्या कम होने से वहाँ पढ़ाई प्रभावित होती है। इस विसंगति को दूर करने हेतु सरकार ने तय किया है कि जिन विद्यालयों में छात्रों की संख्या 50 से कम है, उन्हें पास के बड़े विद्यालयों में विलीन कर दिया जाएगा।
सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि बच्चों को विद्यालय पहुँचने में कोई असुविधा न हो, इसके लिए कड़े दिशानिर्देश जारी किए गए हैं। कोई विलय उस स्थिति में ही किया जाएगा जब दूसरा स्कूल पास ही हो और रास्ते में कोई प्राकृतिक बाधा — जैसे नदी, पहाड़, रेलवे ट्रैक — न आती हो। साथ ही, यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि स्थानांतरण पड़ोसी गाँव में ही किया जाए और बच्चों की सुरक्षा व सुविधा को प्राथमिकता दी जाए।
हालाँकि इस फैसले को लेकर राज्य के कई शिक्षक संगठनों ने विरोध जताया है। शिक्षकों का कहना है कि इस फैसले से न केवल उनका प्रमोशन प्रभावित होगा, बल्कि स्कूलों के घटने से नई शिक्षक भर्तियाँ भी रुक जाएँगी। उनका दावा है कि विलय के बाद एक ही स्कूल के दो प्रधानाचार्य नहीं हो सकते, ऐसे में पद घटेंगे और वरिष्ठता के आधार पर प्रमोशन की संभावना क्षीण हो जाएगी। इसके अलावा, शिक्षकों को आशंका है कि भविष्य में सरकार स्क्रीनिंग के माध्यम से अतिरिक्त शिक्षकों को हटाने का रास्ता भी निकाल सकती है, जिससे उनका भविष्य संकट में पड़ सकता है। बच्चों की दूरी, ट्रांसपोर्ट की दिक्कत और स्थानीय रोजगार के अवसरों में कमी भी विरोध के मुख्य कारणों में शामिल हैं।
हालाँकि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इन सभी तर्कों को खारिज करते हुए सरकार की मंशा को सही ठहराया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि सरकार एक नियोजित और उद्देश्यपरक नीति के तहत यह बदलाव कर रही है, तो उसे रोका नहीं जा सकता, विशेष रूप से जब यह बच्चों के समग्र शैक्षिक हित में है। कोर्ट के फैसले के बाद अब राज्य सरकार का यह निर्णय प्रभाव में आएगा, जिससे शिक्षा व्यवस्था में संसाधनों का बेहतर प्रबंधन, शिक्षक–छात्र अनुपात का संतुलन और बजट का कुशल उपयोग सुनिश्चित हो सकेगा। यह कदम राज्य में शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ी संरचनात्मक नीति परिवर्तन के रूप में देखा जा रहा है।