उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी जिले में हाल ही में एक बड़ा भूमि विवाद सुलझाया गया, जिसमें प्रशासन ने 96 बीघा जमीन को वक्फ बोर्ड के कब्जे से मुक्त करवा लिया। यह जमीन हिन्दुओं के एक प्रसिद्ध और पौराणिक धर्मस्थल, कड़ा धाम मंदिर के पास स्थित थी। भूमि विवाद कई दशकों से चला आ रहा था, जिसमें जमीन पर कब्जा अलाउद्दीन खिलजी के नाम पर दावा किया गया था।
इस प्रकरण में कोर्ट की सुनवाई और कानूनी प्रक्रियाओं के बाद अंततः प्रशासन ने जमीन को ग्राम समाज के नाम पर दर्ज कर दिया। इस फैसले के बाद शासकीय अधिवक्ता ने शासन को 4 बिंदुओं पर सुझाव भेजा है। इसमें से अधिकतर सुझावों को शासन ने स्वीकार भी कर लिया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मामला कौशाम्बी जिले के कड़ा धाम इलाके का है। कड़ा धाम हिन्दुओं का एक प्रसिद्ध और पौराणिक धर्मस्थल है। इसी मंदिर के पास 96 बीघे जमीन पर लम्बे समय से विवाद था। मुस्लिम समुदाय के लोग इस पर कब्ज़ा जमाए हुए थे। एक स्थानीय निवासी सैयद नियाज अशरफ अली विवादित जमीन को अलाउद्दीन खिलजी के समय से जोड़ कर बयानबाजी करते थे। बकौल नियाज अशरफ वह भूमि अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में ख्वाजा कड़क शाह के नाम से माफीनामा पर दर्ज है।
नियाज अशरफ ने 1945 में दीवानी अदालत में मुकदमा दायर किया, जिसमें उन्होंने जमीन को वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज करने की माँग की। हालाँकि, लम्बी सुनवाई के बाद अदालत ने इस दावे को खारिज कर दिया और जमीन को वक्फ संपत्ति मानने से इंकार कर दिया। इसके बाद, 1952 में इस जमीन को आधिकारिक तौर पर ग्राम समाज के नाम पर दर्ज कर दिया गया।
करीब 24 साल की खामोशी के बाद, 1974 में नियाज अशरफ ने फिर से अदालत का दरवाजा खटखटाया। इस बार भी अदालत ने सुनवाई के बाद जमीन को वक्फ संपत्ति मानने से इंकार कर दिया। यह दूसरा मौका था जब नियाज अशरफ का दावा खारिज कर दिया गया।
अदालत में 2 बार हारने के बावजूद नियाज़ ने हार नहीं मानी और वो कोशिशों में लगे रहे। साल 1979 में तत्कालीन चकबंदी अधिकारी ने इस जमीन को वक्फ की संपत्ति घोषित कर दिया। चकबंदी अधिकारी के फैसले से नाखुश कई स्थानीय निवासियों ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने कौशाम्बी जिले के अपर जिला मजिस्ट्रेट (ADM न्यायिक) को मामले की सुनवाई करने का आदेश दिया। सुनवाई के दौरान एडीएम ने दोनों पक्षों से सबूत तलब किए।
आखिरकार मजिस्ट्रेट ने जमीन के वक्फ संपत्ति होने वाले दावों को निराधार पाया। वक्फ बोर्ड इस केस में कोई भी ठोस सबूत पेश नहीं कर पाया। आखिरकार 2 दिसंबर 2022 को एडीएम (न्यायिक) ने वक्फ द्वारा काबिज़ इस भूमि को ग्राम सभा में दर्ज करने का आदेश दे दिया था।
इस आदेश के बाद भी कानूनी औपचारिकताएँ पूरी करने में प्रशासन को लगभग डेढ़ साल का समय लगा। अंततः 2024 में प्रशासन ने सभी प्रक्रियाओं को पूरा कर लिया और जमीन को वक्फ बोर्ड के कब्जे से मुक्त करवा दिया। इस फैसले के बाद, जमीन अब आधिकारिक तौर पर ग्राम समाज के नाम पर दर्ज हो गई है।
इस महत्वपूर्ण निर्णय के बाद, कौशाम्बी के जिला शासकीय अधिवक्ता शिवमूर्ति द्विवेदी ने उत्तर प्रदेश शासन को एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट में उन्होंने जमीन को वक्फ बोर्ड के कब्जे से मुक्त कराने की पुष्टि की और शासन को कुछ महत्वपूर्ण सुझाव भी भेजे। उनके अधिकांश सुझावों को शासन ने स्वीकार कर लिया है।
इस प्रकरण की सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि वक्फ बोर्ड ने इस भूमि पर कब्जा बनाए रखने के लिए बार-बार अदालत का सहारा लिया, लेकिन हर बार उन्हें असफलता का सामना करना पड़ा। 1945 में पहला मुकदमा दायर किया गया, जिसमें अदालत ने भूमि को वक्फ संपत्ति मानने से इंकार कर दिया। इसके बाद 1974 में फिर से मामला उठाया गया और फिर से वक्फ बोर्ड की हार हुई। बावजूद इसके, 1979 में चकबंदी अधिकारी ने इसे वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया, लेकिन स्थानीय निवासियों के विरोध के बाद यह निर्णय भी पलट दिया गया और अंतत: ये जमीन खाली करा ली गई है।
कड़ा धाम का धार्मिक महत्व
कड़ा धाम हिन्दुओं के लिए एक पवित्र स्थल है, जो प्राचीन काल से धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता प्राप्त है। इस मंदिर में हर साल लाखों भक्त आते हैं और यह क्षेत्र धार्मिक पर्यटन का एक प्रमुख केंद्र है। इसलिए, मंदिर के पास स्थित भूमि को लेकर विवाद ने न केवल कानूनी बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व भी हासिल किया।
कौशाम्बी जिले में 96 बीघा जमीन के विवाद को सुलझाना प्रशासन के लिए एक बड़ी जीत मानी जा रही है। यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से भी इसका बड़ा प्रभाव है। वक्फ बोर्ड की लगातार हार और जमीन को ग्राम समाज के नाम पर दर्ज किए जाने से यह स्पष्ट हो गया है कि न्यायालय ने सभी तथ्यों और प्रमाणों की गहन जांच के बाद निष्पक्ष निर्णय लिया।