सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज भारत के महान अमर सेनानियों में एक ऐसा नाम, जिन्हें सुनते ही हर सच्चे भारतीयों की धमनियों में खून फड़कने लगता है। कौन ऐसा भारतीय होगा, जो छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप, गुरु गोविंद सिंह जी महराज के नाम से अपने अंतःकरण में राष्ट्रभक्ति की भावना से ओतप्रोत न हो सकता हो। यह असामान्य महापुरुष थे। इन महापुरुषों ने वही कार्य आगे बढ़ाया था, जो त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने उस कालखंड में प्रस्तुत किया था।
यह बातें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार को हिंदवी स्वराज के 350वें वर्ष पर लखनऊ में छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन पर आधारित महानाट्य ‘जाणता राजा’ के शुभारंभ अवसर पर कहीं। सीएम ने राष्ट्रवाद की असीम प्रेरणा के पुंज इस नाट्य श्रृंखला के लिए दिव्य प्रेम सेवा मिशन व नाटक के निर्माताओं को बधाई दी। उन्होंने विश्वास जताया कि राष्ट्रवाद के इस धरोहर को परिवार-समाज, गांव व क्षेत्र में भी ले जाने का कार्य करेंगे। सीएम ने छत्रपति शिवाजी की आरती भी उतारी। कुछ शब्द हमारे लिए मंत्र बन जाते हैं। जब दंडकारण्य राक्षसी आतंक से आतंकित था, तब प्रभु श्रीराम को भी कहना पड़ा था
‘निसिचर हीन करो महि, भुज उठाई प्रण कीन्ह’ यह एक ऐसा संकल्प था, जिसने विजयादशमी जैसा पर्व दिया। यही कार्य द्वापर में श्रीकृष्ण ने किया था ‘परित्राणाय साधुनां, विनाशाय च दुष्कृताम्’।
तिथियां, काल, उद्घोष की शब्दावली में अंतर आया होगा, लेकिन भाव-भावना एक जैसी थी। हम सज्जनों का संरक्षण करेंगे और दुर्जनों का विनाश करने में भी संकोच नहीं करेंगे। मध्यकाल में जब देश व सनातन धर्म के बारे में कहा जाता था कि अब इसका नाम शेष भी नहीं रहेगा। लोग इसे नष्ट कर डालेंगे तो कभी महाराणा प्रताप, कभी छत्रपति शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह के नाम पर यह ज्योतिपुंज के रूप में उभरकर समाज का मार्गदर्शन करते रहे हैं। हम सबके लिए प्रेरणा बनते रहे हैं। सनातन धर्मावलंबी उन्हें प्रेरणा व प्रकाशपुंज मानकर उन चुनौतियों से जूझने की सामर्थ्य व शक्ति प्राप्त करता था।
सीएम ने कहा कि कोई कालखंड ऐसा नहीं था, जब हम ऐसी दिव्य विभूतियों से वंचित रहे हों। आजादी की लड़ाई के दौरान भी देखा होगा कि 1857 के प्रथम स्वातंत्र्य समर में रानी लक्ष्मीबाई उद्घोष करती हैं कि “झांसी हरगिज नहीं दूंगी”। उस समय अंग्रेज झांसी पर कब्जा नहीं कर पाए। अंग्रेजों को झांसी छोड़नी पड़ी थी। रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी पर अपना शासन स्थापित किया था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के वाक्य ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा’ भारत की आजादी का उद्घोष बन गया था। लखनऊ से तिलक जी ने उद्घोष किया था “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, इसे मैं लेकर रहूंगा”। कुछ ही वर्षों के बाद भारत को स्वतंत्रता मिलने में देर न लगी। इन महापुरुषों का उद्घोष हमारे लिए सदैव मंत्र बना है।
सीएम ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी 350 वर्ष पहले औरंगजेब जैसे बर्बर आततायी शासक के सामने हिंदवी साम्राज्य की स्थापना की थी। एक तरफ औरंगजेब भारत की पहचान को सांस्कृतिक व आध्यात्मिक पहचान नष्ट करने के लिए उतावला दिख रहा था। उसे प्रतिदिन सनातन धर्मावलंबियों की कटी चोटी व जनेऊ दिखनी चाहिए थी, लेकिन दूसरी तरफ छत्रपति शिवाजी महाराज उसकी छाती पर चढ़कर हिंदवी साम्राज्य का उद्घोष कर रहे थे। यह असामान्य घटना थी। समझौते के बहाने एक आततायी छत्रपति शिवाजी को मृत्यु के चंगुल में भेजना चाहता था। दुश्मन सबल हो पाता, उसके पहले शिवाजी ने उसका काम तमाम कर दिया। जब भी भारतीय समाज यह युक्ति अपनाएगा, कभी भी वह परेशान या अपमानित नहीं हो पाएगा। अपनी सुरक्षा, सम्मान व स्वाभिमान को बचाने में वह सफल होगा। ‘जाणता राजा’ उसकी झलक हमारे सामने प्रस्तुत करेगा।