डॉ. कृष्ण गोपाल जी का बयान भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर एक महत्वपूर्ण विचार है, जिसमें उन्होंने आज की शिक्षा की एकांगी प्रकृति और उसके भौतिकवादी दृष्टिकोण की आलोचना की। उनका कहना है कि भारतीय ज्ञान परंपरा में शिक्षा का उद्देश्य केवल सैद्धांतिक ज्ञान प्राप्ति तक सीमित नहीं था, बल्कि यह जीवन के हर पहलू में सामंजस्य और संतुलन के सिद्धांत पर आधारित थी। आज की शिक्षा प्रणाली, जिसमें मोटी फीस और व्यापारिक दृष्टिकोण का दबाव है, ने इस पारंपरिक दृष्टिकोण से बहुत हद तक हटा दिया है।
‘ज्ञान महाकुंभ’ का आयोजन
इस कार्यक्रम में, जो ‘ज्ञान महाकुंभ’ के रूप में महाकुंभ मेला क्षेत्र के सेक्टर-8 में आयोजित हुआ, भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनः जागृत करने की कोशिश की जा रही है। इसके उद्घाटन समारोह में, डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने स्पष्ट किया कि हमें शिक्षा में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक तत्वों को फिर से समाहित करना होगा। उनका उद्धरण “न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते” इस बात की ओर इशारा करता है कि ज्ञान सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण तत्व है, और हमें इसे केवल शैक्षिक स्तर तक सीमित न रखते हुए, इसे जीवन के हर पहलू में लागू करना चाहिए।
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का योगदान
प्रो. डीपी सिंह ने शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की सराहना की, जो भारतीय शिक्षा व्यवस्था में आध्यात्मिकता और ज्ञान के मिश्रण को पुनः स्थापित करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है। उन्होंने इस आयोजन को एक बड़ा मंच बताते हुए, भारतीय विद्वत समाज के लिए इसके महत्व को रेखांकित किया। डॉ. पंकज मित्तल और डॉ. अतुल कोठारी ने भी इस आयोजन की महत्ता पर प्रकाश डाला और कहा कि यह कार्यक्रम भारतीय शिक्षा की दिशा में एक सकारात्मक बदलाव का प्रतीक बनेगा।
आध्यात्म और शिक्षा का मिश्रण
इस मंच के माध्यम से यह संदेश दिया गया कि भारतीय शिक्षा का आदर्श केवल जानकारी प्रदान करने तक सीमित नहीं था, बल्कि यह आत्मा की शुद्धता, संस्कृति और समाज के उत्थान से भी जुड़ा हुआ था। कार्यक्रम में शामिल अन्य वक्ताओं ने भी इस विचार को साझा किया कि भारतीय ज्ञान परंपरा का बल आध्यात्मिक विद्या पर है, जो सभी अन्य विद्याओं में सर्वोत्तम मानी जाती है।
यह आयोजन भारतीय समाज के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जो शिक्षा के व्यावसायिक पक्ष से बाहर निकल कर उसे संस्कृति, समाज और आध्यात्मिकता से जोड़ने की दिशा में प्रयासरत है। इस तरह के मंच भारतीय शिक्षा व्यवस्था में एक नई चेतना का संचार कर सकते हैं।