उत्तर प्रदेश में अगले साल अप्रैल-मई में प्रस्तावित त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं। पार्टी इसे 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल मानकर देख रही है। इसी रणनीति के तहत बीजेपी ने परिसीमन और मतदाता सूची के पुनरीक्षण को प्राथमिकता दी है। चूंकि हाल के वर्षों में कई ग्राम पंचायतों को नगर निकायों में शामिल किया गया है, जिससे पंचायतों का भौगोलिक स्वरूप बिगड़ गया है, इसलिए सरकार पहले पंचायतों का परिसीमन कराने जा रही है। यह प्रक्रिया पंचायत चुनाव से पहले पूरी की जाएगी, ताकि चुनाव निष्पक्ष और व्यवस्थित रूप से हो सकें।
राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो ये चुनाव भले ही पार्टी चिह्नों पर न हों, लेकिन बीजेपी इन्हें संगठन विस्तार और जमीनी पकड़ मजबूत करने के अवसर के रूप में देख रही है। पार्टी ने मंडल और जिला स्तर पर टीमों के गठन की योजना बनाई है जो मतदाता सूची के पुनरीक्षण और परिसीमन पर नजर रखेंगी। मंडल स्तर पर तीन और जिला स्तर पर चार सदस्यीय टीमें बनाई जाएंगी, जिनका उद्देश्य फर्जी नामों को हटाना और नए मतदाताओं को सूची में जोड़ना होगा। इसके अलावा बीजेपी समर्थित उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारकर गांवों, ब्लॉकों और जिलों में अपनी राजनीतिक मौजूदगी को और मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रही है। पार्टी का यह भी प्रयास रहेगा कि इन चुनावों के जरिए ज्यादा से ज्यादा युवाओं को आगे लाया जाए, ताकि भविष्य में नए नेतृत्व को उभार मिल सके।
हालांकि बीजेपी को अपने सहयोगी दलों की वजह से कुछ असहज स्थिति का सामना भी करना पड़ सकता है। उत्तर प्रदेश में निषाद पार्टी, अपना दल (एस) और सुभासपा एनडीए के घटक दल हैं, लेकिन इन दलों ने पहले ही संकेत दे दिए हैं कि वे पंचायत चुनाव अपने बलबूते पर लड़ेंगे। हाल ही में लखनऊ दौरे पर आईं अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने पार्टी कार्यकर्ताओं से पंचायत चुनाव की तैयारियों में जुट जाने को कहा और स्पष्ट किया कि एनडीए के भीतर इस चुनाव को लेकर अभी तक कोई औपचारिक रणनीति नहीं बनी है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि यदि गठबंधन में कोई समझ बनती है, तो पार्टी उस पर विचार करेगी। घटक दलों का अलग-अलग चुनाव लड़ना, खासतौर पर बिना समन्वय के, बीजेपी के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि इससे वोटों का विभाजन हो सकता है और विपक्ष को फायदा मिल सकता है।
अगर 2021 के पंचायत चुनाव की बात करें तो उस समय भी चुनाव पार्टी चिह्नों पर नहीं हुए थे। लेकिन तब जिला पंचायत सदस्य की कुल 3050 सीटों में से बीजेपी ने 543, सपा ने 699, बसपा ने 357 और निर्दलीयों ने 1061 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसके बावजूद बीजेपी ने अपने बेहतर राजनीतिक प्रबंधन के जरिए 75 में से 67 जिला पंचायत अध्यक्ष की सीटें जीत ली थीं। वहीं सपा, अधिक सदस्य जीतने के बावजूद, केवल 4 जिलों में ही अपने प्रमुख बनवा सकी थी। रालोद ने एक जिला जीता था और बाकी सीटें अन्य दलों या निर्दलीयों के खाते में गई थीं।
इस पृष्ठभूमि को देखते हुए बीजेपी एक बार फिर पंचायत चुनाव को राजनीतिक दृष्टि से गंभीरता से ले रही है। पार्टी जानती है कि इस चुनाव में संगठनात्मक शक्ति, मतदाता सूची की सटीकता, स्थानीय उम्मीदवारों की लोकप्रियता और सहयोगियों के साथ बेहतर तालमेल, आने वाले विधानसभा चुनावों के लिए आधार तैयार कर सकते हैं। यदि सहयोगी दल अलग राह चलते हैं तो यह बीजेपी की रणनीति को चुनौती दे सकता है, जिससे पार्टी को अपने समर्थन आधार को सुरक्षित रखने और विपक्षी दलों की रणनीति का मुकाबला करने के लिए अतिरिक्त सतर्कता बरतनी होगी।