उत्तर प्रदेश के संभल जिले में 1978 में हुए दंगों की जांच फिर से शुरू करने का निर्णय लिया गया है, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान के बाद। 47 साल पहले 29 मार्च 1978 को होली के बाद हुए इन दंगों में 184 लोगों की हत्या हुई थी और करीब 30 दिनों तक कर्फ्यू लागू था।
हालिया घटनाक्रम:
- 8 जनवरी 2025 को, मुरादाबाद के कमिश्नर अंजनेय सिंह ने संभल के जिलाधिकारी, डॉ. राजेंद्र पेंसिया को दंगों से संबंधित सभी रिकॉर्ड सौंपने का निर्देश दिया।
- इस आदेश के बाद, संभल के एसपी केके बिश्नोई ने 7 जनवरी को एक पत्र लिखा था, जिसमें उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य श्रीचंद्र शर्मा ने दंगों की नए सिरे से जांच की मांग की थी।
- उत्तर प्रदेश गृह विभाग के उप सचिव सतेन्द्र प्रताप सिंह ने भी इस मामले में एक सप्ताह के भीतर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।
- कमिश्नर अंजनेय सिंह ने इस मामले की गहन समीक्षा और जांच के लिए बैठक भी बुलाई है, जिससे यह संकेत मिलता है कि मामले की पुनः जांच हो सकती है।
दंगों की पृष्ठभूमि और घटनाएँ:
- 1978 के दंगे संभल में सबसे बड़े दंगों में से एक थे। इस दौरान हिंदू परिवारों ने भय के कारण अपने घर छोड़ने को मजबूर हुए।
- दंगों के बाद, संभल में हिंदू समुदाय की संख्या में गिरावट आई है। 1947 में हिंदुओं की आबादी 45% थी, जो अब घटकर 15-20% रह गई है, जबकि मुस्लिम आबादी अब 80-85% हो गई है।
- दंगों में कई हिंदू परिवारों को गंभीर नुकसान उठाना पड़ा। हिंदू शिक्षक की बेटी का बलात्कार और उसकी पत्नी का किडनैप भी दंगे के दौरान हुआ।
एक प्रमुख घटना:
- बनवारी लाल गोयल को मुस्लिम दंगाइयों ने पकड़ लिया और हाथ, पैर काटकर उनकी गर्दन काट दी। वह दंगे को शांत करने के लिए प्रभावित इलाके में जा रहे थे, लेकिन दंगाइयों ने उन्हें बेरहमी से मार डाला।
- इस घटना के गवाह हरद्वारी लाल शर्मा और सुभाष चंद्र रस्तोगी थे, जिन्होंने बाद में अपनी जान बचाने के लिए ड्रम में छिपकर शरण ली।
- इसके बावजूद, इस मामले में गवाहों की कमी और दबाव के कारण 2010 में केस बंद कर दिया गया था।
दंगों के बाद की स्थिति:
- बनवारी लाल के परिवार और कई अन्य हिंदू परिवारों ने संभल छोड़ दिया। बनवारी लाल के बेटे विनीत गोयल ने बताया कि उनके पिता समेत अन्य हिंदुओं को हत्या के बाद इस तरह जलाया गया था कि उनकी अस्थियाँ तक नहीं मिल सकी।
संभल दंगे पर अब तक की स्थिति:
- कमिश्नर अंजनेय सिंह की बैठक और डीएम राजेंद्र पेंसिया द्वारा रिकॉर्ड सौंपने के बाद इस मामले में गहन जांच हो सकती है। यह कार्रवाई 1978 के दंगों की पुनरावलोकन के साथ-साथ दंगे के शिकार लोगों के परिवारों के लिए न्याय दिलाने का एक प्रयास हो सकता है।
- पुलिस और प्रशासन पर दबाव था, जिससे मामले की जांच पूरी तरह से नहीं हो पाई। अब देखना होगा कि नए सिरे से जांच के बाद क्या नए तथ्य सामने आते हैं और क्या न्याय दिलवाया जा सकेगा।