उत्तराखंड में अवैध मदरसों के खिलाफ हो रही इस कार्रवाई से राज्य सरकार के शिक्षा और प्रशासनिक सुधारों की मंशा साफ झलकती है। गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों को लेकर सरकार की चिंता यह है कि वे बिना किसी निगरानी के चलते हैं और इनमें पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम पर कोई आधिकारिक नियंत्रण नहीं होता।
सरकार की कार्रवाई क्यों जरूरी?
- राज्य में शिक्षा को एक समान स्तर पर लाने और सभी बच्चों को मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ने का प्रयास।
- मदरसों को कानूनी रूप से पंजीकृत कराना ताकि वे सरकारी नियमों का पालन करें।
- कुछ मदरसों पर कट्टरपंथी विचारधारा फैलाने के आरोप भी लगते रहे हैं, जिससे प्रशासन सतर्क है।
हालांकि, मुस्लिम संगठनों का यह तर्क है कि मदरसे धार्मिक संस्थान हैं और उन्हें सरकारी मान्यता की जरूरत नहीं होनी चाहिए। लेकिन जब ये संस्थान बिना किसी पंजीकरण के चलते हैं, तो सरकारी निगरानी से बाहर हो जाते हैं, जिससे कई सामाजिक और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ उठती हैं।
उत्तराखंड सरकार की आगे की योजना:
- पहले चरण में अवैध मदरसों की पहचान कर उन्हें सील करना।
- इच्छुक मदरसों को सरकार से मान्यता लेने के लिए आवेदन करने का अवसर देना।
- पंजीकृत मदरसों को आधुनिक शिक्षा से जोड़ना और एनसीईआरटी आधारित पाठ्यक्रम लागू करना।
मान्यता प्राप्त मदरसा और गैर-मान्यता प्राप्त मदरसा
मान्यता प्राप्त मदरसे शिक्षा के लिए राज्य बोर्ड के अंतर्गत आते हैं जबकि गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे बड़े मदरसों जैसे दारुल उलूम नदवतुल उलमा और दारुल उलूम देवबंद द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार पढ़ाई कराते हैं। अब उत्तराखंड सरकार ऐसे गैर मान्यता प्राप्त मदरसों पर कार्रवाई इसलिए कर रही है ताकि हर छात्र को मुख्यधारा से जोड़ा जा सके, बच्चों को आधुनिकता की जानकारी हो, वह NCERT का सिलेबस पढ़ें और नई चीजें सीख सकें।