मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा सेतु आयोग की नीति समीक्षा बैठक में प्रस्तुत किए गए विचार और दिशा-निर्देश उत्तराखंड के सुनियोजित, सतत और समावेशी विकास के लिए एक महत्वपूर्ण रोडमैप की नींव रखते हैं। यह पहल राज्य को स्वर्ण जयंती वर्ष 2050 तक एक विकसित और आत्मनिर्भर उत्तराखंड बनाने की दिशा में निर्णायक साबित हो सकती है।
सचिवालय में सेतु आयोग की नीतिगत निकाय की प्रथम बैठक में अधिकारियों को राज्य स्थापना की 50वीं वर्षगांठ (2050) तक का विजन डॉक्यूमेंट तैयार करने एवं राज्य में विभिन्न क्षेत्रों की संभावनाओं पर विषय विशेषज्ञों द्वारा संक्षिप्त रिपोर्ट तैयार कर योजनाओं को आंकड़ों और वास्तविक… pic.twitter.com/IDA3AWUMlc
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) April 7, 2025
मुख्य बिंदु और दिशा-निर्देशों का सारांश:
1. विजन डॉक्यूमेंट 2050:
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उत्तराखंड की स्वर्ण जयंती (2050) को ध्यान में रखते हुए सेतु आयोग को एक दीर्घकालिक विजन डॉक्यूमेंट तैयार करने का निर्देश।
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2 वर्ष की अल्पकालिक, 10 वर्ष की मध्यमकालिक, और 25 वर्ष की दीर्घकालिक योजना का खाका तैयार करने पर जोर।
मुख्य लक्ष्य:
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सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय संतुलन के साथ राज्य का विकास।
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प्रवासी उत्तराखंडियों को राज्य से जोड़ना और निवेश के लिए प्रोत्साहित करना।
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युवाओं का कौशल विकास, तकनीकी प्रशिक्षण और स्थानीय रोज़गार सृजन।
2. सेतु आयोग की भूमिका:
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नीतिगत उत्प्रेरक (Catalyst) के रूप में विभागों के बीच समन्वयक की भूमिका।
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नीतियों का विश्लेषण, सुझाव, सुधार, और निगरानी प्रणाली स्थापित करना।
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विभागीय योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन में सहायता।
3. उदाहरणतः प्राथमिक क्षेत्र:
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कृषि, बागवानी, डेयरी, और औषधीय उत्पाद — राज्य की स्थानीय ताकत।
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पर्यटन, ऊर्जा, IT, उद्योग — नवीन विकास की धुरी।
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क्लस्टर खेती और सप्लाई चेन — कृषि उत्पादों की बाज़ार तक पहुंच बेहतर बनाने हेतु।
4. साझेदारी और सहयोग:
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टाटा ट्रस्ट, बिल गेट्स फाउंडेशन, नैस्कॉम, ITC, महिंद्रा जैसे संस्थानों के साथ साझेदारी।
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टेक्नोलॉजी और नवाचार का अधिकतम उपयोग।
सार्थक दिशा में उठाए गए कदम:
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मुख्य कार्यकारी अधिकारी शत्रुघ्न सिंह ने बताया कि आयोग का संचालन संगठित और लक्षित रूप से किया जा रहा है।
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आयोग की रणनीतियां जल्द धरातल पर देखने को मिलेंगी।
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ईकोनॉमी और ईकोलॉजी के संतुलन को बनाए रखने पर विशेष ज़ोर।
मुख्यमंत्री धामी की यह रणनीति उत्तराखंड को सिर्फ “देवभूमि” नहीं, बल्कि “विकासभूमि” बनाने की ओर एक ठोस कदम है। यदि यह विजन जनसहभागिता, पारदर्शिता और संस्थागत समन्वय के साथ लागू किया जाता है, तो यह राज्य को भारत के अग्रणी राज्यों की पंक्ति में ला सकता है।