उत्तराखंड के हरिद्वार नगर निगम जमीन घोटाले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर बड़ा प्रशासनिक एक्शन लिया गया है, जिसमें अब तक 2 IAS, 1 PCS सहित कुल 10 अधिकारियों को निलंबित और 2 अधिकारियों की सेवा समाप्त की जा चुकी है। आइए विस्तार से समझते हैं कि ये घोटाला क्या है और कार्रवाई क्यों हुई:
क्या है हरिद्वार नगर निगम जमीन घोटाला?
- हरिद्वार के द्यारा ग्राम सराय इलाके में 2.3070 हेक्टेयर अनुपयुक्त जमीन जो कि कूड़े के ढेर के पास स्थित थी, उसे कई करोड़ रुपये में खरीदा गया।
- आरोप है कि इस जमीन की मार्केट वैल्यू के मुकाबले अत्यधिक कीमत पर खरीद की गई और इसमें अधिकारियों की मिलीभगत सामने आई।
- यह लेनदेन नगर निगम हरिद्वार द्वारा हुआ, जिस पर सवाल उठने के बाद मुख्यमंत्री ने जांच के आदेश दिए।
कैसे सामने आया मामला?
- जांच की जिम्मेदारी सचिव रणवीर सिंह चौहान को दी गई थी।
- उन्होंने 29 मई 2025 को जांच रिपोर्ट शासन को सौंपी।
- रिपोर्ट में कई बड़े अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठाए गए, जिसके आधार पर कार्मिक एवं सतर्कता विभाग ने कार्रवाई की।
अब तक की प्रशासनिक कार्रवाई:
✅ 7 नए अधिकारी निलंबित (03 जून को आदेश जारी):
अधिकारी का नाम | पद |
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कर्मेन्द्र सिंह | जिलाधिकारी (DM) एवं तत्कालीन प्रशासक नगर निगम हरिद्वार |
वरुण चौधरी | तत्कालीन नगर आयुक्त |
अजयवीर सिंह | तत्कालीन SDM, हरिद्वार |
निकिता बिष्ट | वरिष्ठ वित्त अधिकारी |
विक्की | वरिष्ठ वैयक्तिक सहायक |
राजेश कुमार | रजिस्ट्रार कानूनगो |
कमलदास | मुख्य प्रशासनिक अधिकारी, तहसील हरिद्वार |
✅ पहले से की गई कार्रवाई:
अधिकारी | कार्रवाई |
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आनंद सिंह मिश्रवाण | प्रभारी अधिशासी अभियंता – निलंबित |
लक्ष्मी कांत भट्ट | कर एवं राजस्व अधीक्षक – निलंबित |
दिनेश चंद्र कांडपाल | अवर अभियंता – निलंबित |
रविंद्र कुमार दयाल | प्रभारी सहायक नगर आयुक्त – सेवा समाप्त |
वेदपाल | सम्पत्ति लिपिक – सेवा विस्तार समाप्त |
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का सख्त संदेश:
“हमारी सरकार ने पहले दिन से ही स्पष्ट किया है कि पद नहीं, कर्तव्य और जवाबदेही महत्वपूर्ण है। चाहे अधिकारी कितना भी वरिष्ठ हो, अगर वह जनहित और नियमों की अवहेलना करेगा तो कार्रवाई तय है। उत्तराखंड में भ्रष्टाचार मुक्त कार्यसंस्कृति ही हमारी प्राथमिकता है।”
महत्वपूर्ण बिंदु:
- ये एक हाई-प्रोफाइल घोटाला माना जा रहा है जिसमें वरिष्ठ IAS और PCS स्तर के अधिकारी फंसे हैं।
- मुख्यमंत्री के नेतृत्व में यह कदम राज्य में भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति को दर्शाता है।
- संभव है कि मामले में आर्थिक अपराध शाखा (EOW) या सीबीआई जैसी एजेंसी से भी जांच करवाई जाए।