उत्तराखंड सरकार द्वारा अवैध रूप से संचालित मदरसों पर की जा रही कार्रवाई को लेकर नैनीताल हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है।
नैनीताल हाई कोर्ट का आदेश:
बिना मान्यता के कोई भी मदरसा संचालित नहीं होगा।
देहरादून के विकासनगर स्थित इनामुल उलूम सोसाइटी को अंतरिम राहत मिली—सरकार को उसकी सील खोली जानी होगी।
कोर्ट की शर्त: सोसाइटी बिना सरकारी मान्यता के मदरसा संचालित नहीं करेगी।
राज्य सरकार का पक्ष: महाधिवक्ता एस.एन. बाबुलकर ने कहा कि याचिकाकर्ता बिना मान्यता के नियमों का उल्लंघन कर रहा था।
अगली सुनवाई: 11 जून 2025।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई:
जमीयत उलेमा ए हिंद ने उत्तराखंड सरकार की कार्रवाई के खिलाफ याचिका दाखिल की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को अन्य राज्यों के मदरसों से जुड़े मामलों के साथ जोड़ दिया।
जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस राजेश बिंदल की बेंच ने कहा कि मदरसों की शिक्षा, उनकी फंडिंग और शिक्षा के अधिकार कानून को लेकर जानकारी मांगना गलत नहीं।
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने 2024 में यूपी के मदरसों पर आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया, जिसमें गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को स्कूलों में ट्रांसफर करने पर रोक लगी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के मामले को मुख्य याचिका के साथ सुनने का निर्णय लिया।
उत्तराखंड सरकार की कार्रवाई और विवाद
उत्तराखंड सरकार बिना मान्यता के चल रहे मदरसों को बंद कर रही है।
यह कार्रवाई राज्य सरकार की शिक्षा में सुधार और मदरसों के विनियमन की नीति के तहत हो रही है।
विपक्ष और मुस्लिम संगठनों ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ बताया, जबकि सरकार इसे शिक्षा की गुणवत्ता और कानूनी प्रक्रिया के तहत लिया गया निर्णय बता रही है।
निष्कर्ष:
हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की कार्रवाई को सही ठहराया लेकिन एक मदरसा को अंतरिम राहत दी।
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के मामले को राष्ट्रीय स्तर के मदरसा मामलों के साथ जोड़ दिया।
अब इस मुद्दे पर कानूनी लड़ाई लंबी चलने की संभावना है, लेकिन बिना मान्यता के मदरसे बंद करने की उत्तराखंड सरकार की नीति जारी रहेगी।