उत्तराखंड में गैर पंजीकृत मदरसों की भरमार होती जा रही है, इस्लामिक संस्थाएं इन्हें फंडिंग कर रही हैं। खास बात ये है कि इन मदरसों में बाहरी राज्यों से मुस्लिम बच्चे लाकर तालीम दी जा रही है, सूत्र बताते हैं कि इनमें बंग्लादेशी और रोहिंग्या बच्चे भी हैं। यूपी सरकार द्वारा मदरसों के खिलाफ चलाए गए अभियान के बाद मदरसों के संचालकों ने उत्तराखंड का रुख कर लिया है। उत्तराखंड मदरसा बोर्ड अपने यहां 416 मदरसों के पंजीकरण होने का जिक्र करता आया है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि उत्तराखंड में करीब चार सौ मदरसे गैर कानूनी रूप से चल रहे हैं, इन्हें कहां से फंडिंग मिल रही है? क्या इन्हें विदेशों से फंडिंग मिल रही है? यहां तालीम लेने वाले बच्चे क्या पढ़ रहे हैं? यहां पढ़ने वाले बच्चे कहां से लाए जाते हैं ? क्या इन मदरसों को मिलने वाले चंदे की कोई ऑडिट हो रही है? इनके बैंक खाते किसके नाम से चल रहे हैं? इन मदरसों की जमीन भवन का स्टेट्स क्या है? क्या सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण करके बनाए गए है? ऐसे कई सवाल सामने आ रहे हैं।
कुछ माह पहले राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग दोनों ने अपने अपने सर्वे रिपोर्ट में उत्तराखंड शासन प्रशासन का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराया था कि पंजीकृत मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए जो गाइड लाइन जारी की हुई है उसके अनुसार यहां सुविधाएं नहीं हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने हरिद्वार जिले में मदरसों में हिंदू बच्चों के पढ़ने और उनका आरटीई के जरिए एडमिशन कराने का मामला शासन के समक्ष रखते हुए जवाब तलब किया था। आयोग ने सभी जिला अधिकारियों को भी दिल्ली तलब करते हुए उनसे मदरसों की स्थिति के बारे में जानकारी भी मांगी थी, जिसमें उनके द्वारा पंजीकृत मदरसों की तो जानकारी दी गई, लेकिन फर्जी मदरसों की सूचना उन्होंने साझा नहीं की। उस दौरान आयोग ने 749 हिंदू बच्चों के मदरसों में पढ़ाई करने पर भी सवाल उठाए थे, जिसके बाद प्रशासन हरकत में आया और 576 हिंदू बच्चे वहां से निकाल कर प्रशासन ने सरकारी स्कूलों में भेजे, अभी भी 176 हिंदू बच्चों के लिए सरकारी या निजी स्कूल नहीं खोजा जा सका है।
पिछले छ: माह में जो जानकारी सामने आई है कि उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के पास गैर पंजीकृत मदरसों के बारे में भी कोई जानकारी नहीं है यदि जानकारी है तो वो देना नहीं चाहता, जिनकी अनुमानित संख्या चार सौ से अधिक बताई जाती है। जानकारी के मुताबिक, जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में वन गुज्जरों के डेरे में भी देवबंद के मौलवी जाकर मदरसे खोल आए जब स्थानीय रुद्रसेना ने इसका विरोध किया तो ये मदरसे बंद हुए, इसी तरह नैनीताल जिले में भवाली में एक गैर मान्यता प्राप्त मदरसे के खिलाफ डीएम को कार्रवाई करनी पड़ी। तराई क्षेत्र के टांडा के जंगलों में वन गुज्जरों के यहां भी फर्जी मदरसे चलाने वाले मौलवी पहुंच गए और अवैध कब्जे कर लिए यहां वन विभाग को कार्रवाई करनी पड़ी।
तीन माह पूर्व देहरादून ने आज़ाद कॉलोनी का फर्जी मदरसा चलाने वाले मौलवी के खिलाफ देहरादून पुलिस ने एफआईआर दर्ज की थी। इस मदरसे की जांच पड़ताल की गई तो जानकारी मिली कि यहां दूसरे राज्यों के बच्चे लाकर पढ़ाए जा रहे हैं और मदरसा संचालक के बैंक खातों में इस्लामिक देशों के संस्थाएं भी फंडिंग हो रही है, बावजूद इसके मदरसे को बंद नहीं कराया गया। रुद्रपुर के मनसा में फर्जी मदरसे में छोटी-छोटी बच्चियों के साथ अश्लील हरकते करने वाले मौलवी को उधम सिंह नगर पुलिस ने गिरफ्तार करके जेल भेजा।
ऐसे कई मामले इन मदरसों में अपराधिक गतिविधियां के सामने आ रहे हैं। हल्द्वानी बनभूलपुरा हिंसा के पीछे कारण, अतिक्रमण कारियों द्वारा बनाया गया फर्जी मदरसा ही था जिसे बाद में मस्जिद बताते हुए प्रचारित किया गया और इस घटना को सांप्रदायिक रंग दिए जाने लगा। बड़ा सवाल आखिर ये है कि आखिरकार राज्य का अल्पसंख्यक मंत्रालय इन फर्जी मदरसों के खिलाफ कारवाई करने में क्यों संकोच कर रहा है? दूसरी ओर उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश असम जैसे बीजेपी शासित राज्यों में गैर मान्यता प्राप्त मदरसे, सरकार ने बंद करवा दिए हैं, जो मान्यता प्राप्त चल रहे हैं उनका स्लेबस सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है।
बीजेपी शासित राज्यों में मदरसों के खिलाफ कार्रवाई के बाद भी बहुत से नए मदरसे उत्तराखंड में खुल गए, ऐसी जानकारी है कि यूपी से भगाए गए मौलवी अब उत्तराखंड सीमा में आकर अपने मदरसे चला रहे हैं, हरिद्वार उधम सिंह नगर और देहरादून जिलों में ही फर्जी मदरसों की बाढ़ सी आ गई है और इनमें बाहरी राज्यो के अलावा बंग्लादेशी रोहिंग्या मूल के बच्चे भी लाकर पढ़ाए जा रहे हैं, कल यही बच्चे यहां के प्रमाणपत्रों के आधार पर स्थाई निवासी होने का दावा करेंगे और इनके आधार कार्ड बन जायेंगे। ऐसे मदरसों का सबूत देहरादून आजाद कॉलोनी का गैर पंजीकृत मदरसा है जहां बिहार झारखंड के 52 बच्चे मिले इनका कोई सत्यापन नहीं करवाया गया। ये बच्चे कल उत्तराखंड के नागरिक बन जायेंगे। सहसपुर का विशाल मदरसा पिछले दिनों, पानी की टंकी और लाउडस्पीकर की वजह से चर्चा में आया। इस मदरसे ने नदी की तरफ सरकारी जमीन पर कब्जा किया हुआ है। इस पर जांच भी करवाई गई, लेकिन उसके बाद प्रशासन ने खामोशी की चादर ओढ़ ली।
देहरादून जिले में बड़े-बड़े मदरसे बिना सरकारी अनुमति से खड़े हो गए हैं। यदि ये प्राधिकरण या जिला प्रशासन से नक्शा स्वीकृति लेकर अपना निर्माण करवाते तो इनकी पोल पट्टी खुल जानी थी, क्योंकि इन मदरसा संचालकों के पास भूमि भवन संबंधी कोई दस्तावेज है हीं नहीं ज्यादातर सरकारी जमीनों पर कब्जे करके ही बनाए गए हैं। इन मदरसों में मस्जिदें भी बन गई है। खबर है कि हरिद्वार जिले में शिकोहाबाद, तिलकपुर, भगवानपुर, ज्वालापुर, देहरादून में पछुवा दून,उधम सिंह नगर जिले में यूपी से लगे बॉर्डर एरिया में अवैध मदरसों की भरमार हो गई है। बहरहाल देवभूमि उत्तराखंड में अवैध मदरसों की बाढ़ सी आ गई है, शासन प्रशासन को इस पर अंकुश लगाने की दिशा में सख्ती करनी होगी, अन्यथा ये एक न एक दिन प्रशासन के लिए ही सिरदर्द साबित हो जाएंगे।
सीएम पुष्कर धामी का बयान
राज्य में मदरसों की जांच करने के आदेश पूर्व में दिए जा चुके हैं, इनकी रिपोर्ट की समीक्षा करने को कहा गया है साथ ही साथ गैर कानूनी रूप से चल रहे मदरसों की भी आख्या मांगी गई है, गैर पंजीकृत मदरसे बंद करने पर विचार किया जा रहा है। देव भूमि में इस तरह की हरकतें सहन नहीं की जाएंगी।