उत्तराखंड सरकार ने बुधवार (22 जनवरी 2025) को समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी। यह कानून व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी शादियों, तलाक, संपत्ति उत्तराधिकार और विरासत जैसे मामलों में स्पष्टता और समानता लाने का काम करेगा। उत्तराखंड ऐसा करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है।
सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि यह कानून राज्य के सभी निवासियों पर लागू होगा, चाहे वे राज्य के अंदर रह रहे हों या बाहर। हालाँकि, संविधान के अनुच्छेद 342 और 366 (25) के तहत अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों और संरक्षित प्राधिकृत व्यक्तियों तथा समुदायों को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया है।
समान नागरिक संहिता अधिनियम- 2024, व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा और सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लागू किया गया है। इसके तहत शादी सिर्फ उन्हीं व्यक्तियों के बीच हो सकती है जिनमें से किसी का भी जीवनसाथी जीवित न हो, दोनों मानसिक रूप से सक्षम हों, पुरुष की उम्र 21 वर्ष और महिला की उम्र 18 वर्ष पूरी हो चुकी हो और वे प्रतिबंधित संबंधों की श्रेणी में न आते हों।
शादी किसी भी धार्मिक रीति-रिवाज या कानूनी प्रक्रिया के तहत की जा सकती है, लेकिन इसे लागू होने के 60 दिनों के भीतर रजिस्टर कराना अनिवार्य है। जिनकी शादी 26 मार्च, 2010 से लागू होने की तिथि तक हुई है, उन्हें 6 महीने के भीतर रजिस्ट्रेशन कराना होगा। हालाँकि, पहले से रजिस्टर्ड शादियों को दोबारा रजिस्टर करने की जरूरत नहीं है, लेकिन पहले किए गए रजिस्ट्रेशन का सत्यापन जरूरी है।
जो शादियाँ 26 मार्च, 2010 से पहले या राज्य से बाहर हुई हैं और जहाँ दोनों पक्ष तब से साथ रह रहे हैं और सभी कानूनी योग्यता पूरी करते हैं, वे भी (हालाँकि यह अनिवार्य नहीं है) इस अधिनियम के लागू होने के 6 महीने के भीतर रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं।
अधिनियम के तहत शादी का रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीके से किया जा सकता है। आवेदन करने के बाद उप-पंजीयक को 15 दिनों के भीतर निर्णय लेना होगा। अगर तय समय सीमा में निर्णय नहीं होता है, तो आवेदन अपने आप रजिस्ट्रार के पास चला जाएगा।
रजिस्ट्रेशन आवेदन को खारिज किए जाने पर अपील की पारदर्शी प्रक्रिया भी उपलब्ध है। झूठी जानकारी देने पर जुर्माने का प्रावधान किया गया है, लेकिन रजिस्ट्रेशन न होने पर शादी को अवैध नहीं माना जाएगा।
उत्तराखंड सरकार इस अधिनियम को लागू करने के लिए रजिस्ट्रार जनरल, पंजीकरण और उप-पंजीयक की नियुक्ति करेगी। यह अधिकारी संबंधित रिकॉर्ड्स का रखरखाव और निगरानी सुनिश्चित करेंगे।
उत्तराखंड सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को लागू करने की घोषणा ऐतिहासिक कदम है। यह निर्णय भारत के संवैधानिक ढांचे में समता, सामाजिक न्याय और समान अधिकारों को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा बदलाव है। इसके मुख्य बिंदु और संभावित प्रभाव इस प्रकार हैं:
समान नागरिक संहिता के प्रमुख बिंदु
- व्यक्तिगत मामलों में समानता:
- शादी, तलाक, संपत्ति उत्तराधिकार, और विरासत के मामलों में एक समान कानूनी ढांचा।
- धर्म, जाति, या लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं।
- कानून का दायरा:
- राज्य के सभी निवासियों पर लागू, चाहे वे राज्य के भीतर या बाहर रह रहे हों।
- अनुसूचित जनजातियों और संरक्षित प्राधिकृत व्यक्तियों को इससे छूट।
- शादी के नियम:
- शादी के लिए न्यूनतम उम्र: पुरुषों के लिए 21 वर्ष, महिलाओं के लिए 18 वर्ष।
- शादी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य, चाहे धार्मिक रीति-रिवाज या कानूनी प्रक्रिया के तहत हुई हो।
- रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया:
- ऑनलाइन और ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन की सुविधा।
- रजिस्ट्रेशन के लिए 15 दिनों की समयसीमा, समय पर निर्णय न होने पर आवेदन रजिस्ट्रार को स्वतः चला जाएगा।
- झूठी जानकारी देने पर जुर्माने का प्रावधान।
- अपील और पारदर्शिता:
- रजिस्ट्रेशन खारिज होने पर अपील का प्रावधान।
- पारदर्शी प्रक्रिया के तहत रजिस्ट्रेशन सुनिश्चित करने के लिए अधिकारी नियुक्त होंगे।
समाज पर प्रभाव
- समानता और न्याय:
- यह कानून विभिन्न समुदायों के बीच समानता सुनिश्चित करेगा।
- महिलाओं और कमजोर वर्गों के अधिकारों की सुरक्षा होगी।
- सामाजिक सामंजस्य:
- एक समान कानूनी ढांचा सामाजिक भेदभाव को कम करेगा।
- अलग-अलग धार्मिक कानूनों के कारण होने वाले विवादों में कमी आएगी।
- लॉजिस्टिक चुनौतियां:
- सभी शादियों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करने से प्रशासनिक चुनौतियां बढ़ सकती हैं।
- अधिसूचना को प्रभावी बनाने के लिए जागरूकता और बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होगी।
संविधान और कानूनी दृष्टिकोण
- संविधान का अनुच्छेद 44:
यह भारत के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता को बढ़ावा देने की बात करता है। उत्तराखंड सरकार ने इस दिशा में पहला ठोस कदम उठाया है। - धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता:
अनुसूचित जनजातियों और संरक्षित समुदायों को अधिनियम से बाहर रखना उनके सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा का संकेत है।
चुनौतियां और आलोचना
- धार्मिक और सांस्कृतिक असंतोष:
- कुछ समुदाय इसे अपनी धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप मान सकते हैं।
- व्यवहारिक अड़चनें:
- कानून का सफल क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन को व्यापक तैयारी करनी होगी।
- कानूनी विवाद:
- इसे अदालत में चुनौती दिए जाने की संभावना हो सकती है।
उत्तराखंड का यह कदम अन्य राज्यों के लिए एक मिसाल पेश करेगा और समान नागरिक संहिता के राष्ट्रीय स्तर पर लागू होने की संभावना को बल देगा। हालांकि, इसे प्रभावी और समावेशी बनाने के लिए सरकार को व्यापक जन-जागरूकता, संवाद, और प्रशासनिक तैयारियों पर ध्यान देना होगा।