कलकत्ता हाई कोर्ट की रजिस्ट्रार जनरल चैताली चट्टोपाध्याय ने सोमवार (28 अगस्त) को एक बड़ी अधिसूचना जारी की। चट्टोपाध्याय ने अधिसूचना में कहा, “राज्य के सभी पुलिस स्टेशन आईपीसी की धारा 498 (ए) के तहत आरोपी व्यक्तियों की महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा में तत्काल और गैर-जरूरी गिरफ्तारी के बारे में सावधान रहें।
रजिस्ट्रार जनरल द्वारा जारी की गई यह अधिसूचना मंगलवार को कलकत्ता हाई कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड कर दी गई। बता दें कि इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया आदेश का उल्लेख किया गया है, जिसमें संबंधित पुलिस अधिकारियों को ऐसे मामले में मानदंडों के उल्लंघन करने पर सजा देने की चेतावनी दी गई है।
ऐसे में आरोपी को हिरासत में लिया जा सकता है
अधिसूचना के मुताबिक, आईपीसी की धारा 498 (ए) के तहत किसी केस की जांच करने वाले पुलिस अधिकारी को पहले किसी विशेष केस में इस धारा के तहत दायर शिकायत की योग्यता की पूरी तरह से जांच करनी चाहिए। अगर जांच अधिकारी को शिकायत में सच्चाई मिलती है तो उसे उन आधारों की एक चेकलिस्ट तैयार करनी होगी जिसके तहत आरोपी को हिरासत में लिया जा सकता है।
आखिरी फैसला न्यायिक मजिस्ट्रेट के हाथ में
इसके बाद जांच अधिकारी को संबंधित मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) को एक प्रस्तुति देनी होगी, जो आखिर में फैसला करेगा कि आरोपी को हिरासत लेना है या नहीं। अगर संबंधित जांच अधिकारी को इस धारा के तहत दर्ज की गई शिकायत में ज्यादा सच्चाई नहीं मिलती है, तो उसे शिकायत के दो दिनों के भीतर संबंधित पुलिस अधीक्षक (SP) को एक रिपोर्ट के साथ सूचित करना होगा कि किसी विशेष केस में गिरफ्तारी क्यों नहीं की जानी चाहिए।
कोर्ट के फैसले का स्वागत
कलकत्ता हाई कोर्ट के निर्देश में कहा गया है कि आरोपी से प्रारंभिक पूछताछ भी एक अवधि के भीतर पूरी करनी होगी। इस कदम का स्वागत करते हुए, हाई कोर्ट के सीनियर वकील कौशिक गुप्ता ने कहा कि यह आदेश इतना सामयिक है कि शिकायतकर्ताओं द्वारा धारा 498 (ए) का घोर दुरुपयोग किया गया है, क्योंकि जैसे ही शिकायत दर्ज की जाती है, इस धारा के तहत जल्द से जल्द गिरफ्तारी का प्रावधान है। किसी भी सभ्य समाज में केस से पहले सजा नहीं दी जा सकती। इसलिए यह कलकत्ता हाई कोर्ट का समय पर उठाया गया कदम है।