बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रहे उत्पीड़न में न केवल चरमपंथी ताकतें बल्कि राज्य का न्यायिक और प्रशासनिक ढांचा भी गहराई से संलिप्त हो चुका है। ISKCON संत चिन्मय कृष्ण दास का मामला इसका ताजा और चौंकाने वाला उदाहरण है, जो न सिर्फ धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे अन्याय को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि अब वहाँ हिंदुओं के पक्ष में बोलने भर से व्यक्ति को “अपराधी” बना दिया जा रहा है।
मामले की मुख्य बातें:
✳️ चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी:
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तारीख: 25 अक्टूबर 2024 — हिंदुओं की शांतिपूर्ण रैली का नेतृत्व किया था।
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स्थान: लाल दीघी मैदान, चटगाँव — ऐतिहासिक रूप से भी संवेदनशील इलाका माना जाता है।
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कारण: हिंदुओं पर हमलों के विरोध में रैली; रैली में भगवा झंडा राष्ट्रीय ध्वज से ऊँचा दिखने का आरोप लगाया गया।
⚖️ मौजूदा कानूनी स्थिति (मई 2025):
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जमानत रद्द: हाई कोर्ट द्वारा दी गई जमानत को सुप्रीम कोर्ट ने 30 अप्रैल को रद्द कर दिया।
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अब एक वकील की हत्या के केस में चिन्मय दास को आरोपित बनाया जा रहा है, जबकि यह हत्या उनकी गिरफ्तारी के बाद प्रदर्शन के दौरान हुई थी।
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चटगाँव कोर्ट के जज SM अलाउद्दीन ने नई गिरफ्तारी का आदेश दिया है।
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पुलिस ने 3 और मामलों में उन्हें गिरफ्तार दिखाने की मांग की है।
🔺 सरकार की मंशा पर सवाल:
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यह घटनाक्रम स्पष्ट रूप से राजनीतिक और धार्मिक प्रतिशोध की भावना से प्रेरित दिखता है।
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चिन्मय दास जैसे शांतिपूर्ण संत को बार-बार नए मामलों में फँसाकर जेल में बनाए रखना बताता है कि बांग्लादेश का राज्यतंत्र इस्लामी कट्टरपंथियों के दबाव में काम कर रहा है।
बड़ी तस्वीर: बांग्लादेश में हिंदू उत्पीड़न
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2013 के बाद से रुझान: हर वर्ष दुर्गा पूजा, राम नवमी, या हिंदू रैलियों के दौरान हिंसा में बढ़ोतरी।
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हजारों मंदिरों, मूर्तियों और घरों पर हमले, जिनमें पुलिस अक्सर मूकदर्शक बनी रही है।
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‘डिजिटल सिक्योरिटी एक्ट’ जैसे कानूनों का दुरुपयोग, हिन्दुओं की सोशल मीडिया पोस्ट पर जेल में डालना।
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भूमि हथियाने के लिए धार्मिक दंगे भड़काना, खासकर ग्रामीण इलाकों में।
भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका
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यह अत्यंत आवश्यक हो गया है कि भारत सरकार:
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इस विषय को सार्वजनिक और कूटनीतिक मंचों पर उठाए।
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संयुक्त राष्ट्र, OIC, और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं के माध्यम से बांग्लादेश पर दबाव डाले।
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ISKCON और वैश्विक हिंदू संगठनों को चाहिए कि वे चिन्मय दास के लिए अंतरराष्ट्रीय कानूनी सहायता और जनसंपर्क अभियान शुरू करें।
निष्कर्ष:
चिन्मय कृष्ण दास का मामला अब केवल एक व्यक्ति की गिरफ्तारी नहीं है, यह बांग्लादेश के हिंदू समुदाय की सामूहिक आवाज को दबाने की संगठित साजिश है। यदि ऐसे मामलों में चुप्पी बनी रही, तो अल्पसंख्यकों के लिए अस्तित्व का संकट खड़ा हो सकता है।