सुप्रीम कोर्ट ने रामनवमी के दौरान पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा की जांच एनआईए से कराने के कलकत्ता हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने हाई कोर्ट के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया।
सुनवाई के दौरान एनआईए की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस मामले में दर्ज छह एफआईआर रामनवमी की घटना से जुड़ी हैँ या नहीं, हमने उसकी जांच की। पहली एफआईआर हावड़ा में दर्ज की गई है, उसमें विस्फोटक जैसी चीजों के इस्तेमाल किए जाने का जिक्र किया गया है। इसके अलावा दूसरी एफआईआर की भी जांच की गई, जिसमें राज्य पुलिस ने जानबूझ कर विस्फोटकों का जिक्र नहीं किया जबकि उस घटना में लोगों को गंभीर चोट आई। एनआईए की ओर से कहा गया कि हाई कोर्ट के फैसले के बाद भी राज्य सरकार ने एनआईए को अभी भी डाक्यूमेंट्स नहीं मुहैया कराये हैं।
पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से वकील गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि यह आरोप दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम किसी को बचा रहे हैं। गिरफ्तार किए गए आरोपित हर समुदाय के हैं। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि क्या इस बात से इनकार किया जा सकता है कि वहां विस्फोटकों के इस्तेमाल का आरोप है। तब पश्चिम बंगाल सरकार ने कहा कि कोर्ट को य़ह देखना चाहिए कि अगर वहां विस्फोटक इस्तेमाल हुए तो कितना नुक़सान हुआ। राज्य के अधिकारियों की जांच पर भरोसा ना करना दुर्भाग्यपूर्ण है।
पश्चिम बंगाल सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देकर कहा है कि हिंसा की छिटपुट घटनाओं की एनआईए से जांच की कोई जरूरत नहीं है। हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता भाजपा नेता सुवेंद अधिकारी की ओर से पेश वकील पीएस पटवालिया ने कहा कि एनआईए ने खुद ही एफआईआर दर्ज की थी। हाई कोर्ट ने इस बात पर गौर किया था कि पश्चिम बंगाल में अप्रैल, 2021 से लेकर अब तक रैली और धार्मिक समारोहों में करीब एक दर्जन हिंसा के मामले दर्ज हुए हैं। हिंसा की इन घटनाओं में बम फेंके जाने की घटनाएं भी हुई हैं।