पश्चिम बंगाल के 25,000 शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की भर्ती से संबंधित ‘घोटाले’ में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (19 दिसंबर 2024) को कहा कि उम्मीदवारों के चयन में बहुत सारी खामियाँ हैं। बंगाल सरकार और भर्ती करने वाली SSC को लताड़ लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब भर्ती में गड़बड़ी का पता राज्य सरकार को चल चुका था तो शिक्षकों की अतिरिक्त पद पर नियुक्ति क्यों की गई।
यह घोटाला सामने आने के बाद कलकत्ता हाई कोर्ट ने शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति रद्द करने का आदेश दिया था। इस आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। मामले पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट ने इस आधार पर भर्ती रद्द कर दी थी, क्योंकि दागी और बेदाग उम्मीदवारों को अलग नहीं किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट में यह मामला एक साल से अधिक समय तक लंबित रहने के बाद सुनवाई शुरू हुई। शीर्ष न्यायालय की खंडपीठ ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नेतृत्व वाली तृणमूल कॉन्ग्रेस की सरकार से पूछा, “अतिरिक्त पद बनाने का उद्देश्य क्या था? गड़बड़ी का पता लगने के बावजूद आपने दागी उम्मीदवारों को बाहर क्यों नहीं किया? दाल में कुछ काला है या सब कुछ काला है?”
पीठ ने कहा कि दागी उम्मीदवारों को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। जैसे कि अयोग्य या जिनके रैंक में हेरफेर करके उन्हें चयन सूची में लाया गया, जिनके अंकों में हेरफेर करके उन्हें योग्य उम्मीदवारों से आगे कर दिया गया, ओएमआर में हेरफेर (जिनमें से कुछ खाली थे) और जो मेरिट सूची में नहीं थे उन्हें नियुक्त किया गया आदि।
बेंच ने कहा कि भर्ती में ‘घोटाले’ का पता जस्टिस रंजीत कुमार बाग आयोग ने लगाया था और सीबीआई ने इसकी पुष्टि की थी। यहाँ तक कि एसएससी ने भी अनियमितताओं को स्वीकार किया था। 25,000 पदों के लिए 22 लाख उम्मीदवारों ने हिस्सा लिया था, लेकिन साल 2020 में एसएससी ने उन सबकी उत्तर पुस्तिकाएँ नष्ट कर दी थीं। इस आधार पर हाई कोर्ट ने नियुक्तियों को रद्द किया था।
एसएससी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने कहा कि सीबीआई ने दागी उम्मीदवारों की पहचान की है और यह संख्या एसएससी द्वारा पहचाने गए उम्मीदवारों से कमोबेश मेल खाती है। उन्होंने तर्क दिया कि दागी उम्मीदवारों की नियुक्तियों को रद्द किया जा सकता है। अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि हजारों शिक्षकों की नियुक्ति रद्द करने से कक्षा 9 से 12 तक के छात्रों की पढ़ाई पर असर पड़ेगा।
इस तर्क को सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने खारिज कर दिया और कहा, “हम ऐसी दलीलें स्वीकार नहीं करेंगे।” हालाँकि, पीठ ने यह भी कहा कि वह उन विभागीय उम्मीदवारों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेगी जो बेदाग हैं और इस भर्ती प्रक्रिया के माध्यम से शिक्षक के रूप में नियुक्त होने से पहले लंबे समय तक काम कर चुके हैं। कोर्ट ने कहा, “हम उन्हें पहले के कैडर में वापस जाने की अनुमति देने पर विचार करेंगे।”
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 7 जनवरी 2025 को करने का आदेश दिया है। कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय ने ‘घोटाले’ की पहचान करते हुए न्यायमूर्ति बाग आयोग के माध्यम से जाँच कराई थी। न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय ने बाद में जज के पद से इस्तीफा देकर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और सांसद बन गए।
दरअसल, साल 2016 में पश्चिम बंगाल के स्कूल सेवा आयोग की शिक्षक भर्ती में गड़बड़ी के आरोप लगे थे। कहा गया था कि 5 लाख से 15 लाख रुपए तक घूस लेकर नौकरी दी गई। इस मामले में CBI ने राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी, उनकी करीबी मॉडल अर्पिता मुखर्जी और SSC के कुछ अधिकारियों को गिरफ्तार किया था। इनके ठिकानों पर ED ने छापेमारी भी की थी।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने 22 अप्रैल को राज्य सरकार और सहायता प्राप्त स्कूलों में 25,753 शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति रद्द कर दी थी। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिका डाली गई। सुप्रीम कोर्ट ने 29 अप्रैल को हटाए गए शिक्षकों के खिलाफ CBI जाँच पर रोक लगा दी थी।