डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ट्रैवल बैन की नई घोषणा से संबंधित है, जो उन्होंने अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए की है। यह कदम उनके पूर्ववर्ती फैसलों की ही एक व्यापक और आक्रामक पुनरावृत्ति है।
पूरी तरह से प्रतिबंधित 12 देश
इन देशों के नागरिकों का अमेरिका में प्रवेश पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया है:
- अफगानिस्तान
- म्यांमार
- चाड
- कांगो
- इक्वेटोरियल गिनी
- इरिट्रिया
- हैती
- ईरान
- लीबिया
- सोमालिया
- सूडान
- यमन
📌 प्रभावी तिथि: सोमवार, सुबह 12:01 बजे से (स्थानीय समय अनुसार)
आंशिक प्रतिबंधित 7 देश
इन देशों के नागरिकों पर विशेष शर्तें और कड़ी जांच लागू होंगी:
- बुरुंडी
- क्यूबा
- लाओस
- सिएरा लियोन
- टोगो
- तुर्कमेनिस्तान
- वेनेजुएला
प्रमुख कारण:
- सुरक्षा जांच में विफलता: इन देशों की सरकारें वीज़ा आवेदकों की पृष्ठभूमि जांच, बायोमेट्रिक्स साझा करने, वीज़ा ओवरस्टे पर रोक लगाने जैसी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पा रही हैं।
- उच्च वीज़ा ओवरस्टे दर: जैसे चाड (49.54%) और इरिट्रिया (55.43%) में वीज़ा धारकों की तय समय से अधिक रुकने की दर अत्यधिक है।
- आतंकवाद से जुड़ी चिंताएं: ईरान, क्यूबा जैसे देश अमेरिका की सूची में “राज्य प्रायोजित आतंकवाद” से जुड़े माने जाते हैं।
- तालिबान नियंत्रण: अफगानिस्तान में कट्टरपंथी शासन और सुरक्षा संकट।
प्रभावित वीज़ा श्रेणियां:
- आव्रजन वीज़ा (Immigrant Visas)
- गैर-आव्रजन वीज़ा (Non-Immigrant Visas):
- B-1 (बिजनेस)
- B-2 (पर्यटन)
- F (स्टूडेंट)
- M (वोकेशनल)
- J (एक्सचेंज प्रोग्राम)
ट्रंप का बयान:
“मैं अमेरिका की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हूं। हम फिर से ट्रैवल बैन लागू करेंगे ताकि कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवादियों को अमेरिका में आने से रोका जा सके। सुप्रीम कोर्ट पहले ही हमारे इस रुख को वैध बता चुका है।”
पृष्ठभूमि: ट्रंप का पुराना ट्रैवल बैन
- 2017 में ट्रंप ने राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभालते ही 7 मुस्लिम-बहुल देशों पर यात्रा प्रतिबंध लगाया था।
- उस निर्णय को कड़ी आलोचना और कानूनी चुनौती के बाद 2018 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने वैध ठहराया था।
- अब वह नीति और भी कड़ी और व्यापक रूप में सामने लाई गई है।
राजनीतिक संदर्भ:
- ट्रंप 2024 के चुनाव अभियान के दौरान “America First” और सुरक्षा केंद्रित एजेंडे को दोबारा जोर दे रहे हैं।
- यह कदम उनके कोर वोटबेस (रूढ़िवादी, राष्ट्रवादी) को संदेश देने और इमिग्रेशन मुद्दे को चुनावी बहस का केंद्र बनाने का प्रयास भी माना जा रहा है।