बांग्लादेश में 5 अगस्त 2024 को प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार का तख्तापलट हुआ, जिसके बाद से देश में इस्लामी कट्टरपंथ तेजी से बढ़ रहा है। तख्तापलट के तुरंत बाद, 4 अगस्त 2024 को हुए हिंसक हमलों में 14 पुलिसकर्मियों सहित 90 से अधिक लोग मारे गए और 300 से अधिक घायल हुए थे।
तख्तापलट के बाद, मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के दौरान कट्टरपंथी तत्वों को बढ़ावा मिला है। इस्लामी कट्टरपंथियों ने महिलाओं के फुटबॉल मैचों पर हमले किए, जिससे महिला खिलाड़ियों को भागकर शरण लेनी पड़ी। कट्टरपंथियों का दावा है कि खेलों में महिलाओं की भागीदारी से वे बेपर्दा होती हैं, जो इस्लामी मान्यताओं के खिलाफ है।
साहित्यिक स्वतंत्रता पर भी हमले बढ़े हैं। 13 फरवरी 2025 को, कवि सोहेल हसन ग़ालिब को इस्लामी कट्टरपंथी संगठन ‘तौहीदी जनता’ के खिलाफ कविता लिखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। उन पर ईशनिंदा का आरोप लगाया गया और कोर्ट ने उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया।
अल्पसंख्यक समुदाय, विशेषकर हिंदुओं, पर हमले बढ़े हैं। तख्तापलट के तीन दिनों के भीतर ही 200 से अधिक हमले हिंदू मंदिरों और दुकानों पर हुए। भारतीय विदेश मंत्रालय ने 7 फरवरी 2025 को संसद में बताया कि अगस्त 2024 के बाद से बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर 1200 से अधिक हमले हुए हैं, जिनमें 150 से अधिक मंदिरों पर हमले शामिल हैं।
संविधान में भी परिवर्तन की तैयारी है। बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल असदुज्ज्माँ ने कोर्ट में कहा कि संविधान से ‘सेक्युलर’ और ‘समाजवादी’ शब्द हटाए जाने चाहिए। यह परिवर्तन देश को इस्लामी राष्ट्र की ओर ले जाने का संकेत देता है।
इन घटनाओं से स्पष्ट है कि बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद इस्लामी कट्टरपंथ का प्रभाव बढ़ा है, जिससे महिलाओं, साहित्यकारों और अल्पसंख्यकों के लिए चुनौतियाँ बढ़ी हैं।