बांग्लादेश में शेख हसीना की सत्ता से विदाई के बाद अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ बढ़ी सांप्रदायिक हिंसा एक गंभीर मुद्दा बन गया है। मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने इन घटनाओं को स्वीकार किया है, लेकिन इनकी वास्तविकता सरकारी आंकड़ों से कहीं अधिक प्रतीत होती है।
घटनाओं के आधिकारिक आँकड़े:
- 5 अगस्त से 22 अक्टूबर 2024 के बीच अल्पसंख्यकों के खिलाफ 88 घटनाओं की रिपोर्ट।
- इन घटनाओं में अब तक 70 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
- सुनामगंज, गाजीपुर, और अन्य क्षेत्रों में हिंसा की नई घटनाएँ सामने आई हैं।
हालांकि, बांग्लादेश सरकार का कहना है कि इन घटनाओं में से कुछ राजनीतिक या व्यक्तिगत लड़ाई का परिणाम हैं, लेकिन यह दावा संदिग्ध है।
हकीकत और हालात:
- बांग्लादेश में रहने वाले हिंदुओं का कहना है कि उनका जीवन बेहद कठिन हो गया है।
- सामाजिक भेदभाव और हिंसा:
- हिंदुओं को उनकी धार्मिक आस्था के कारण नियमित रूप से निशाना बनाया जाता है।
- ओवरटेक करने जैसी साधारण घटनाओं पर भी उन्हें हिंसा का सामना करना पड़ता है।
- सुरक्षा और पहचान की चिंता:
- ढाका में उद्यमी संजीव जैन ने बताया कि उन्हें बांग्लादेश में अपनी सुरक्षा के लिए दाढ़ी बढ़ानी पड़ी।
- हिंदुओं को सामाजिक रूप से दबाव और अपमान सहना पड़ता है।
भारत की प्रतिक्रिया:
- भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री ने हाल ही में बांग्लादेश का दौरा किया और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही हिंसा पर अपनी चिंता व्यक्त की।
- इसके बाद बांग्लादेश सरकार ने घटनाओं की जानकारी साझा की, लेकिन यह स्पष्ट है कि भारत का दबाव ही इन घटनाओं को स्वीकारने का मुख्य कारण था।
निष्कर्ष:
बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा एक गंभीर मानवाधिकार समस्या है। मोहम्मद यूनुस की सरकार की घटनाओं को कम करके दिखाने की कोशिश उनकी अंतरराष्ट्रीय छवि बचाने का प्रयास हो सकता है, लेकिन ज़मीनी हकीकत कहीं अधिक चिंताजनक है। भारत को इस मुद्दे पर अपनी सक्रियता बनाए रखनी होगी और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दबाव डालना होगा।