बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों, खासकर इस्कॉन (ISKCON) से जुड़े सदस्यों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार और अत्याचार के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। हाल की घटनाएं इन समुदायों के खिलाफ बढ़ती असहिष्णुता और धार्मिक दमन को दर्शाती हैं।
मुख्य बिंदु
- इस्कॉन सदस्यों को सीमा पर रोका गया:
- ISKCON के दर्जनों संत और सदस्य, जिनके पास सभी वैध दस्तावेज थे, भारत में प्रवेश की अनुमति लेने बेनापोल सीमा पर पहुंचे।
- बांग्लादेशी पुलिस ने उन्हें सीमा पर रोक दिया और उच्च अधिकारियों से अनुमति न मिलने का हवाला देकर वापस लौटा दिया।
- चिन्मय प्रभु की गिरफ्तारी:
- ISKCON के मुख्य पुजारी चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी ने इस संगठन को और अधिक निशाना बनाए जाने का संकेत दिया।
- उनके समर्थकों के बैंक खाते फ्रीज किए गए हैं, जिससे इस्कॉन के कार्यों और उनके अनुयायियों की सुरक्षा पर संकट बढ़ा है।
- बांग्लादेश प्रशासन का रवैया:
- बेनापोल इमिग्रेशन पुलिस के अधिकारी इम्तियाज अहसानुल कादर भुइयां ने स्वीकार किया कि आला अधिकारियों से निर्देश मिलने के बाद ISKCON सदस्यों को रोकने का फैसला लिया गया।
- यह दर्शाता है कि यह निर्णय निचले स्तर का नहीं था, बल्कि उच्च प्रशासनिक स्तर से लिया गया।
पृष्ठभूमि में बढ़ता अत्याचार
- हिंदुओं पर हमले और गिरफ्तारी:
- बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों को लगातार धार्मिक हिंसा और उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है।
- इस्कॉन जैसे धार्मिक संगठनों को विशेष रूप से निशाना बनाया जा रहा है, जो उनकी धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया की आवश्यकता:
- बांग्लादेश में धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के मामलों पर अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और भारत सरकार को सख्त रुख अपनाने की जरूरत है।
- संयुक्त राष्ट्र और अन्य मानवाधिकार संगठनों को इन घटनाओं की जांच करनी चाहिए।
भारत की भूमिका और आवश्यक कदम
- कूटनीतिक हस्तक्षेप:
- भारत सरकार को बांग्लादेश से इन घटनाओं पर स्पष्टीकरण मांगना चाहिए और हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर जोर देना चाहिए।
- कूटनीतिक माध्यम से ISKCON के सदस्यों की सुरक्षा की गारंटी मांगी जानी चाहिए।
- हिंदू अल्पसंख्यकों के लिए सहायता:
- भारत को उन हिंदू परिवारों और धार्मिक संगठनों की मदद करनी चाहिए, जो बांग्लादेश में उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं।
- उनके पुनर्वास और शरणार्थी सहायता के लिए नीतियां बनाई जानी चाहिए।
- अंतर्राष्ट्रीय मंच पर मुद्दा उठाना:
- बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों की स्थिति को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उठाने की आवश्यकता है।
- यह बांग्लादेश सरकार पर दबाव बना सकता है कि वह अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए प्रभावी कदम उठाए।
सरकारी अनुमति का बनाया बहाना
अहसानुल कादर का दावा है कि ISKCON के सदस्यों के पास वैध पासपोर्ट और वीजा तो थे, लेकिन उनके पास यात्रा के लिए जरूरी स्पेशल सरकारी अनुमति नहीं थी. कादर ने कहा,’सरकारी अनुमति के बिना वे लोग आगे नहीं बढ़ सकते. बता दें कि अलग-अलग जिलों से आए ISKCON भक्तों सहित 54 लोग शनिवार रात और रविवार सुबह बांग्लादेश की चेक पोस्ट पर पहुंचे थे. हालांकि, अनुमति के लिए घंटों इंतजार करने के बाद भी उन्हें बताया गया कि उनकी यात्रा अधिकृत नहीं है.
बांग्लादेश की बॉर्डर पर क्यों रोका?
ISKCON के जिन सदस्यों को भारत में दाखिल होने से रोका गया, उनमें से एक तपंदर चेली ने बताया,’हम भारत में हो रहे एक धार्मिक समारोह में भाग लेने आए थे, लेकिन आव्रजन अधिकारियों ने सरकारी अनुमति न होने का हवाला देते हुए हमें रोक दिया.’
बैंक खाते भी फ्रीज करने के आदेश
यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है, जब हिंदू नेता चिन्मय प्रभु को राजद्रोह के मामले में गिरफ्तार कर लिया गया है. बांग्लादेश के अधिकारियों ने चिन्मय प्रभु सहित ISKCON के 17 सहयोगियों के बैंक खातों को 30 दिनों के लिए फ्रीज करने का आदेश दिया है.