नेपाल में एक बार फिर से हिंदू राष्ट्र की मांग तेज हो गई है। राजधानी काठमांडू की सड़कों पर सैकड़ों प्रदर्शनकारी इसके लिए नारे लगा रहे हैं। वे देश में फिर से राजशाही लागू करने की मांग कर रहे हैं। बुधवार को सैकड़ों प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरे। वे प्रधानमंत्री ऑफिस और दूसरी सरकारी कार्यालयों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे थे।
इस दौरान उनकी पुलिस के साथ झड़प भी हुई। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए बांस-बल्लों, आंसू गैस और पानी की बौछारों का इस्तेमाल किया। यह प्रदर्शन नेपाल की राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के नेतृत्व में हो रहा था। इस दौरान लोगों ने नारे लगाते हुए कहा, “हम अपने देश और राजा से अपनी जान से ज्यादा प्यार करते हैं। गणतंत्र को खत्म कर राजशाही की देश में वापसी होनी चाहिए।”
मंगलवार को, आरपीपी अध्यक्ष और पूर्व उप प्रधानमंत्री राजेंद्र लिंगदेन जो प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व कर रहे थे, उन्हें प्रतिबंधित क्षेत्र में आने से रोक दिया गया. वह निषेधाज्ञा का उल्लंघन करते हुए सेना मुख्यालय के पास भद्रकाली मंदिर के पास पहुंच गए थे. इसके बाद उनके समर्थकों ने दो जगहों पर सुरक्षा बलों पर हमला कर दिया और फिर फरार हो गए. पुलिस की मोर्चाबंदी राजशाही समर्थकों का सामना नहीं कर सकी. ये सभी प्रदर्शनकारी राजशाही की बहाली और नेपाल को हिंदू राज्य घोषित करने की मांग को लेकर सड़क पर उतरे थे.
आरपीपी ने बुलाया था विरोध प्रदर्शन
आरपीपी द्वारा मंगलवार को यह विरोध प्रदर्शन प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल को अपना 40 सूत्रीय मांगों का चार्टर सौंपने के एक महीने बाद बुलाया गया था. 9 फरवरी को राजशाही की बहाली और हिंदू राष्ट्र की बहाली के अभियान की घोषणा करते हुए आरपीपी ने 9 अप्रैल (मंगलवार) को एक बड़े विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था. संभावित तनाव और हिंसा के मद्देनजर, नेपाल पुलिस के विशेष कार्य बल (एसटीएफ) और सशस्त्र पुलिस बल (एपीएफ) सहित लगभग 7 हजार पुलिसकर्मियों को विरोध स्थल और उसके आसपास तैनात किया गया था.
नेपाल 2007 में बना धर्मनिरपेक्ष देश, 2008 में खत्म हुई राजशाही
इससे पहले प्रजातंत्र पार्टी ने फरवरी में 40 पॉइंट का एक मैमोरैंडम भी PM ऑफिस को भेजा था। इसमें भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की मांग की गई थी। दरअसल, नेपाल में साल 2006 में राजशाही के खिलाफ विद्रोह तेज हो गया था। कई हफ्तों तक चले विरोध प्रदर्शन के बाद तत्कालीन राजा ज्ञानेंद्र को शासन छोड़कर सभी ताकत संसद को सौंपनी पड़ी।
साल 2007 में नेपाल को हिंदू से धर्मनिरपेक्ष देश घोषित कर दिया गया। इसके अगले साल आधिकारिक तौर पर राजशाही खत्म कर चुनाव कराए गए। इसी के साथ वहां 240 साल से चली आ रही राजशाही का अंत हो गया। तब से लेकर अब तक नेपाल में 13 सरकारें रह चुकी हैं। नेपाल नें पिछले कुछ समय से राजनीतिक तौर पर काफी अस्थिरता रही है।
PM प्रचंड ने चीन समर्थक ओली के साथ नया गठबंधन बनाया था
हाल ही में नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने नेपाली कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ लिया था। उन्होंने केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (UML) के साथ मिलकर नई सरकार बनाई, जिसका रुख चीन समर्थक कहा जाता है।
इन सबके बीच राजशाही से जुड़े कई गुट देश की प्रमुख पार्टियों पर भ्रष्टाचार और खराब गवर्नेंस का आरोप लगा रहे हैं। उनका दावा है कि देश की जनता अब राजनेताओं से परेशान हो चुकी हैं।
2001 में नेपाल के राजा की हत्या के बाद ज्ञानेंद्र शाह को मिली थी गद्दी
नेपाल के आखिरी राजा ज्ञानेंद्र शाह 76 साल के हैं। वे ज्यादातर सार्वजनिक जगहों पर जाने से बचते हैं। साल 2001 में नेपाल के नारायणहिती पैलेस में तत्कालीन राजा बिरेंद्र बीर बिक्रम शाह और उनके परिवार की हत्या कर दी गई थी।
इसके बाद बिरेंद्र के छोटे भाई ज्ञानेंद्र को नेपाल की गद्दी पर बैठाया गया था। राजशाही जाने के बाद से ज्ञानेंद्र एक आम नागरिक की तरह रहते हैं। उनके पास कोई विशेषाधिकार या सुरक्षा व्यवस्था नहीं है। हालांकि, नेपाल के कुछ समुदायों के लोग और पार्टियां अब भी उनका समर्थन करती हैं।
नेपाल के शाही परिवार में बेटे ने ही पिता और पूरे परिवार की हत्या की
1 जून 2001 को नेपाल के नारायणहिती पैलेस में पार्टी चल रही थी। नेपाल के राजपरिवार में हर सप्ताह ऐसी पार्टियां होती थीं। पार्टी में राजपरिवार के सभी मेंबर्स थे। इसमें से एक राजकुमार दीपेंद्र भी थे। वो शाम 6 बजकर 45 मिनट पर ही पार्टी में पहुंच चुके थे और पास ही एक कमरे में बिलियर्ड्स खेल रहे थे।
थोड़ी देर में महारानी एश्वर्या तीन ननदों के साथ पहुंचीं। महाराजा बीरेंद्र भी एक पत्रिका को इंटरव्यू देकर थोड़ी देर से पहुंच गए। दीपेंद्र के चचेरे भाई राजकुमार पारस भी मां और पत्नी के साथ पहुंचे हुए थे। इस बीच राजकुमार दीपेंद्र ने इतनी ज्यादा शराब पी ली थी कि ठीक से खड़े भी नहीं हो पा रहे थे। नशे में लड़खड़ा कर गिरे तो उनके छोटे भाई निराजन और चचेरे भाई पारस ने कुछ लोगों की मदद से उन्हें उनके कमरे में पहुंचाया।
थोड़ी देर बाद दीपेंद्र आर्मी की वर्दी पहनकर कमरे से बाहर निकले। उनके एक हाथ में जर्मन मशीन गन MP5K थी और दूसरे हाथ में कोल्ट M16 राइफल थी। एक 9MM पिस्टल भी उनकी पैंट में लगी थी। इसके बाद दीपेंद्र आगे बढ़े और पिता बीरेंद्र शाह पर मशीन गन तानकर ट्रिगर दबा दिया।
दीपेंद्र के चाचा उन्हें रोकने के लिए बढ़े, लेकिन दीपेंद्र ने पॉइंट ब्लैक रेंज से उनके सिर में गोली मार दी। गोली उनके सिर को छेदते हुए पार कर गई। इसके बाद दीपेंद्र गार्डन गए। वहां उसने पहले अपनी मां और फिर भाई निराजन को भी गोली से छलनी कर दिया।
3 से 4 मिनट में दीपेंद्र 12 लोगों पर गोली चला चुके थे। आखिर में गार्डन से होते हुए बाहर तालाब पर बने ब्रिज पर खड़े हुए और जोर-जोर से चीखने लगे। फिर खुद को भी सिर में गोली मार ली। दीपेंद्र ने अपने परिवार की हत्या क्यों की, इसे लेकर कई थ्योरी हैं, लेकिन ठोस वजह अब तक सामने नहीं आ पाई है।