15 अगस्त 2023 को भारत के पड़ोसी देश अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता संभालने के दो वर्ष पूरे हो गए हैं। आज जब भारत में स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा है और महिलाएं आजादी में सांस ले रही हैं, तो वहीं समय यह देखने का भी है कि पड़ोसी देश में महिलाएं किस हाल में हैं? तालिबान के सत्ता अधिग्रहण के बाद जिस प्रकार की आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं, क्या वही आशंकाएं सत्य हुई हैं या फिर नया तालिबान का नारा देकर मीडिया में प्रशंसा पाए तालिबान के शासन में महिलाओं की स्थिति में सुधार आया है।
जब तालिबान के शासन के दो वर्ष पूरे हो रहे हैं, उस समय अफगानी विश्वविद्यालयों ने कहा है कि वह लड़कियों के लिए पढ़ाई जारी रखना चाहते हैं, मगर उसके लिए उन्हें तालिबान की अनुमति चाहिए। तालिबान के सत्ता ग्रहण के दो वर्षों पर महिलाएं वहां पर आन्दोलन कर रही हैं। यह विरोध प्रदर्शन उन जुल्मों के खिलाफ किया जा रहा है, जो उनके साथ पिछले दो वर्षों से हो रहे हैं।
आज जब वह लोग ब्यूटीपार्लर्स तक जैसे काम से बाहर हो चुकी हैं, तो यह भी देखना आवश्यक है कि वह आखिर कहाँ पर उपस्थित हैं? जैसे विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, वह यह दिखा रहे हैं कि वह आजादी चाहती हैं, परन्तु क्या उन्हें अपने मन से कहीं जाने की, मन से बाहर घूमने की या पढ़ाई तक करने की आजादी है? परन्तु यह भी बात पूरी तरह से सत्य है कि आज तालिबान जिस राजनीतिक स्थिति में हैं, उसमें कोई भी शक्ति ऐसी नहीं है जो उन्हें सत्ता से बाहर कर सके। तो क्या यह माना जाए कि महिलाओं की स्थिति भी ऐसी रहेगी, जिसमें कई प्रान्तों में कक्षा तीन अर्थात 9-10 वर्ष की उम्र के बाद ही लड़कियों की पढ़ाई बंद करा दी गयी है। वैसे कक्षा 5 के बाद लड़कियों के लिए वहां पर शिक्षा की मनाही है। लड़कियां पढ़ नहीं सकती हैं, हालांकि वह पढ़ना चाहती हैं, परन्तु तालिबान के एक प्रवक्ता का वायरल वीडियो इस बात की पुष्टि करता है कि तालिबान के नेताओं को यह लगता है कि जो पढ़ाया जा रहा है, उसके चलते लड़कियां उनके विरोध में हो जाएंगी।
यह तो पढ़ाई की बात है। परन्तु यह भी बात सत्य है कि सत्ता संभालने के साथ ही उन तमाम लड़कियों की हत्याएं हो गयी थीं, जो तालिबान के विचारों के अनुसार नहीं थीं। सत्ता संभालने के तुरंत बाद बुर्के और पर्दे से परे एक जो घटना सबसे जघन्य सामने आई थी वह थी अफगानी महिला वॉलीबॉल खिलाड़ी की सिर काटकर हत्या कर दी थी। महजबीन नामक खिलाड़ी अफगानिस्तान में अशरफ गनी सरकार के गिरने से पहले काबुल के नगर पालिका वॉलीबॉल क्लब के लिए खेलती थीं। वह क्लब की शानदार खिलाड़ियों में शामिल थीं। जब सोशल मीडिया पर उनकी सिर कटी तस्वीरें वायरल हुईं थी, तो लोगों को इस घटना के बारे में पता चला था।
इसके साथ ही वह हजारा समुदाय से आती थीं, जिनके साथ तालिबान का रवैया वैसे ही बहुत बुरा बताया जाता है। कई महिला खिलाड़ी तालिबान के सत्ता संभालने के दौरान ही देश छोड़कर चली गई थीं। क्योंकि उन्हें संभवतया इसी का भय होगा कि वह जीवित नहीं रहेंगी। यह हत्या थी जो दिखी! परन्तु उन्हें विमर्श से तो क्या सार्वजनिक जीवन से गायब कर दिया है। मीडिया में महिलाओं के लिए बुर्का अनिवार्य कर दिया गया था। महिलाओं को पुरुषों के साथ पार्क आदि जाने पर रोक है और इतना ही नहीं अब तो उनके रोजगार का सबसे बड़ा माध्यम अर्थात ब्यूटी पार्लर तक बंद हो चुका है। पिछले ही माह यह आदेश जारी किए गए कि ब्यूटी पार्लर बंद कर दिए जाएं। यद्यपि महिलाओं द्वारा विरोध प्रदर्शन किए गए, परन्तु उनका निर्णय दृढ रहा और उन्होंने अपना निर्णय नहीं बदला।
हालांकि यह ही नहीं था, बल्कि बघलान एवं ताखर नामक दो प्रान्तों में महिलाओं के ईद समारोहों में शामिल होने पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। हेरात के खुले लॉन वाले रेस्टोरेंट में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगा दी गयी थी, क्योंकि ऐसी शिकायतें आई थीं कि इन स्थानों पर महिलाएं और पुरुष एक साथ होते हैं और महिलाएं हिजाब नहीं पहनती हैं। फिर इन स्थानों पर महिलाओं के लिए पर्दे की व्यवस्था नहीं है।
गर्भनिरोधक गोलियों पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया है, क्योंकि उनके अनुसार आबादी को नियंत्रित नहीं किया जाना चाहिए। इनके साथ छोटे-छोटे अपराधों पर कोड़े आदि मारना भी आम है। कई वीडियो सामने आ रहे हैं, जिनमें मुस्लिम महिलाओं को कोड़े से भी मारा जा रहा है। यह बहुत ही हैरान करने वाली बात है कि धीरे-धीरे करके दो वर्षों में अफगानिस्तान में महिलाओं को कैद कर दिया जा रहा है और कहीं पर भी चर्चा नहीं हो रही है। क्या प्रचलित यह बात मान ली जाए कि जो महिलाएं विरोध कर रही हैं, वह ऐसी कोई राजनीतिक शक्ति नहीं हैं जो विश्व के किसी विमर्श को प्रभावित कर सकें या फिर जिनकी बात उठाने पर किसी भी प्रकार का लाभ हो सके? इसलिए उनका विरोध अनदेखा किया जा रहा है, उनकी पीड़ा अनदेखी की जा रही है क्योंकि उनपर तमाम पाबंदियां इस्लाम के नाम पर लगाई जा रही हैं।
क्या वैश्विक विमर्श को यह भय है कि यदि मजहब के नाम पर अपने पर हो रही तमाम पाबंदियों का विरोध कर रही महिलाओं के पक्ष में खड़े होते हैं तो वह इस्लामोफोबिक घोषित कर दिए जाएंगे? कारण जो भी हो, मीडिया, अस्पताल, पार्क, और सबसे आवश्यक स्कूल से बाहर होकर महिलाओं को बुर्के के दायरे में केवल घर तक ही तालिबान की सत्ता में विगत दो वर्षों में कैद कर दिया है और विमर्श में उनकी पीड़ा का शतांश भी हिस्सा नहीं बन सका है।