इजरायल और हमास के बीच युद्धविराम समझौता एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है, जो 15 महीनों से चल रहे संघर्ष को रोकने और शांति की दिशा में एक कदम माना जा रहा है। इस समझौते की प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं:
युद्धविराम और बंधकों की रिहाई
- समझौते की अवधि:
- यह समझौता 19 जनवरी 2025 से 1 मार्च 2025 तक लागू रहेगा।
- युद्धविराम की अवधि 6 सप्ताह की है।
- बंधकों की अदला-बदली:
- समझौते के तहत तीन चरणों में बंधकों और कैदियों की रिहाई होगी।
- पहले चरण में हमास द्वारा बंधक बनाए गए 33 इजरायली नागरिकों की रिहाई की जाएगी।
- इसके बदले में इजरायल सरकार 95 फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा करेगी, जिनमें महिलाएँ, नाबालिग और पुरुष शामिल हैं।
- इजरायली सेना की स्थिति:
- इजरायली सेना गाजा सीमा से 700 मीटर पीछे हटेगी।
- आगे के चरण:
- यदि पहला चरण सफल होता है, तो दूसरा चरण 3 फरवरी 2025 को लागू होगा।
- दूसरे चरण में स्थायी युद्धविराम पर विचार किया जाएगा।
- कुल रिहाई:
- समझौते के तहत, इजरायल कुल 735 फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा करेगा।
- इनमें कुछ कुख्यात आतंकी और हत्या के दोषी भी शामिल हैं।
समझौते की मध्यस्थता
- इस समझौते में मिस्र, कतर और अमेरिका ने मध्यस्थता की है।
- समझौते का जी-7 देशों ने स्वागत किया और इजरायल की सुरक्षा को महत्वपूर्ण बताया।
पृष्ठभूमि
- हमास का हमला (7 अक्टूबर 2023):
- हमास ने इजरायल पर हमला कर 1,200 लोगों की हत्या की थी और 250 लोगों को बंधक बना लिया था।
- वर्तमान में हमास के पास लगभग 100 बंधक हैं।
- इजरायल की कार्रवाई:
- हमास के हमले के बाद, इजरायल ने 15 महीने तक इस्लामी आतंकी समूहों पर बड़े पैमाने पर कार्रवाई की।
विरोध और समर्थन
- इजरायल सरकार का निर्णय:
- प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की कैबिनेट ने इस समझौते को 24 सदस्यों के समर्थन से मंजूरी दी।
- कुछ धुर दक्षिणपंथी मंत्रियों ने समझौते का कड़ा विरोध किया और इसके खिलाफ मतदान किया।
- इजरायली जनता और राजनीतिक प्रभाव:
- इस समझौते को लेकर इजरायल में मिश्रित प्रतिक्रियाएँ हैं।
- बंधकों की रिहाई के बदले आतंकी कैदियों की रिहाई पर सुरक्षा चिंताएँ उठाई जा रही हैं।
भविष्य की दिशा
- यदि समझौते के चरण सफलतापूर्वक लागू होते हैं, तो यह संघर्ष को समाप्त करने में एक स्थायी समाधान का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
- हालाँकि, यदि कोई पक्ष समझौते का उल्लंघन करता है, तो यह तनाव को फिर से बढ़ा सकता है।
यह समझौता क्षेत्रीय शांति के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है, लेकिन इसकी सफलता पूरी तरह से दोनों पक्षों की प्रतिबद्धता और विश्वास पर निर्भर करेगी।