अरिहा शाह का मामला आपको याद होगा. 28 महीने की बच्ची जिसे कथित रूप से उसके मां-बाप ने प्रताड़ित किया, इलाज के लिए अस्पताल ले गए, लेकिन बच्ची वापस नहीं मिली और अभी जर्मन यूथ सर्विस की कस्टडी में है. मामला जर्मनी की एक अदालत में चल रहा था. अदालत ने फैसला सुनाया और बच्ची की कस्टडी माता-पिता को देने से इनकार कर दिया. कोर्ट के इस अहम् फैसले के बाद बच्ची यूथ सर्विस की कस्टडी में ही रहेगी. इस बीच उसके माता-पिता बच्ची की कस्टडी लेने की तमाम कोशिशों में जुटे हैं.
धारा और भावेश शाह की बच्ची को सीधे उन्हें वापस करने या कम से कम किसी तीसरे पक्ष, भारतीय कल्याण सेवाओं को सौंपने के आवेदन को खारिज करते हुए, अदालत ने अरिहा की हिरासत को जुगेंदमट (जर्मन यूथ केयर) को सौंप दिया और फैसला सुनाया कि माता पिता को बच्ची के बारे में फैसले लेने का कोई अधिकार नहीं है. इस मामले में विदेश मंत्रालय ने भी जर्मन अधिकारियों को चिट्ठी लिखी थी.
3 जून को, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने अरिहा को एक भारतीय नागरिक होने के नाते जल्द से जल्द भारत भेजे, जो कि बच्ची का अधिकार है. इससे पहले बीजेपी, कांग्रेस समेत 19 दलों के 59 सांसदों ने भारत में जर्मन राजदूत फिलिप एकरमैन को एक जॉइंट लेटर लिखा था. मांग की गई थी कि अरिहा को भारत वापस लाने के लिए हर संभव कोशिश की जाए. कोर्ट ने जर्मनी के सेंट्रल यूथ वेलफेयर ऑफिस को बच्ची का प्रोविजनल गार्जियन घोषित किया है. बच्ची पर आखिरी फैसला अब इसी अथॉरिटी को करना है.
अरिहा के माता-पिता धारा और भावेश ने अरिहा की कस्टडी के लिए अदालत में अर्जी दी थी, लेकिन बाद में वापस ले लिया था. फिर उन्होंने एक अर्जी दी और मांग की कि बच्ची की कस्टडी कम से कम इडियन वेलफेयर सर्विसेज को सौंप दी जाए. इसके अलावा उन्होंने कोर्ट से बच्ची की पैरेंटल कस्टडी रीस्टोर करने की मांग की थी और बताया था कि अरिहा को अहमदाबाद में अशोक जैन द्वारा चलाए जा रहे फोस्टर होम में रखा जाएगा. परिवार का प्लान था कि वे बच्ची के साथ स्वदेश लौट जाएंगे.
कोर्ट ने माना की बच्ची अप्रैल 2021 में नहाने के दौरान बच्ची के सिर और पीठ में चोट आई थी. बाद में सितंबर में बच्ची के प्राइवेट पार्ट में चोट के निशान मिले थे. इसी के बाद धारा और भावेश उसे अस्पताल ले गए, लेकिन अस्पताल ने चाइल्ड वेलफेयर को इसकी जानकारी दी और फिर इसी चाइल्ड केयर सेंटर ने बच्ची को अपनी कस्टडी में ले लिया. कोर्ट को आशंका है कि अगर बच्ची की कस्टडी माता-पिता को दी जाती है, तो उसे फिर प्रताड़ना का सामना करन पड़ सकता है. इस बीच तीन साल की होने तक कोर्ट ने महीने में दो बार उन्हें बच्ची से मिलने की इजाजत दी है.