‘प्रोजेक्ट कुशा’: भारत का स्वदेशी S-500, वायु रक्षा में क्रांतिकारी कदम
भारत ने अपनी वायु रक्षा क्षमताओं को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने के लिए ‘प्रोजेक्ट कुशा’ की शुरुआत की है। यह अत्याधुनिक स्वदेशी लॉन्ग-रेंज एयर डिफेंस सिस्टम न केवल रूस के S-400 की बराबरी करेगा, बल्कि S-500 जैसी उन्नत प्रणालियों को भी चुनौती देगा।
क्या है ‘प्रोजेक्ट कुशा’?
- पूरा नाम: Extended Range Air Defence System (ERADS) / Programme for Generation of Long Range SAM (PGLRSAM)
- लक्ष्य: MR-SAM (80 किमी) और S-400 (400 किमी) के बीच की दूरी को भरना
- डिज़ाइन व विकास: DRDO
- सैन्य अंगों का उपयोग: भारतीय वायुसेना और नौसेना (2028-2029 तक शामिल होने का लक्ष्य)
प्रमुख क्षमताएं और तकनीक
- इंटरसेप्टर मिसाइलें:
- M1 – 150 किमी (निर्माणाधीन)
- M2 – 250 किमी (विकासाधीन)
- M3 – 350 किमी (विकासाधीन)
- विशेषताएं:
- ड्यूल-पल्स मोटर और थ्रस्ट वेक्टर कंट्रोल
- M3 में 85% (सिंगल) और 98.5% (साल्वो मोड) किल प्रॉबेबिलिटी
- हाइपरसोनिक, स्टील्थ, ड्रोन, स्मार्ट बम और क्रूज़ मिसाइल जैसे खतरों से निपटने की क्षमता
- 500–600 किमी तक निगरानी करने वाला AI आधारित लॉन्ग रेंज रडार
क्यों है यह महत्वपूर्ण?
- चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की बैलिस्टिक क्षमताओं से मुकाबला
- S-400 से सस्ता विकल्प:
- S-400 (5 यूनिट): ₹43,000 करोड़
- कुशा (5 स्क्वाड्रन): ₹21,700 करोड़
- आत्मनिर्भर भारत मिशन को बढ़ावा
- जॉइंट एयर डिफेंस नेटवर्क का निर्माण (आकाश, बराक-8, S-400 आदि के साथ समन्वय)
वर्तमान स्थिति और अगला चरण
- M1 मिसाइल का निर्माण जारी – जल्द परीक्षण की तैयारी
- DRDO ने 20 एयरफ्रेम, 20 रॉकेट मोटर और 50 किल व्हीकल का ऑर्डर जारी किया है
- फेज-2 में 400+ किमी रेंज वाले इंटरसेप्टर और 1500 किमी ट्रैकिंग क्षमता वाला रडार शामिल
‘प्रोजेक्ट कुशा’ भारत के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण से एक बड़ा गेमचेंजर साबित हो सकता है। यह सिर्फ एक रक्षा प्रणाली नहीं, बल्कि स्वदेशी तकनीक, आत्मनिर्भरता, और वैश्विक प्रतिस्पर्धा की ओर बढ़ाया गया एक निर्णायक कदम है।