फ्रांस के आम चुनावों में फेरबदल देखने को मिल रहा है। इस बार चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला है। वामपंथी न्यू पॉपुलर फ्रंट (एनएफपी) चुनाव के बाद नेशनल असेंबली में प्रमुख ताकत के रूप में उभरा। नतीजे सामने आने के बाद से फ्रांस में हिंसा बढ़ गई है।
इस चुनाव में धुर दक्षिणपंथी पार्टी के बहुमत हासिल करने की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पार्टी की उम्मीदों पर पानी फिर गया और देश में त्रिशंकु सरकार की स्थिति बन गई।
इमैनुएल मैक्रों को झटका
नतीजों ने राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को करारा झटका दिया और यूरो क्षेत्र की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को अधर में छोड़ दिया, जिससे पेरिस में ओलंपिक खेलों की मेजबानी से कुछ हफ्ते पहले राजनीतिक अस्थिरता का दौर शुरू हो गया। मैक्रों की संसद खंडित हो गई, जिससे यूरोपीय संघ और उससे आगे फ्रांस की भूमिका कमजोर हो जाएगी और किसी के लिए भी घरेलू एजेंडे को आगे बढ़ाना मुश्किल हो जाएगा।
सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारी
वामपंथी गठबंधन को ज्यादा सीटें मिलने के बाद से प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए और हिंसा शुरू कर दी। झड़पों के बीच कई जगह पर पुलिस ने आंसू गैस का इस्तेमाल किया है।
प्रधानमंत्री गेब्रियल अटाल देंगे इस्तीफा
मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि वामपंथियों ने 182 सीटें जीतीं, मैक्रों के मध्यमार्गी गठबंधन ने 168 और ले पेन की नेशनल रैली (आरएन) और सहयोगियों ने 143 सीटें जीतीं। इसके बाद प्रधान मंत्री गेब्रियल अटाल ने कहा कि वह अपना इस्तीफा दे देंगे, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार बनाने के कठिन काम को देखते हुए राष्ट्रपति इसे तुरंत स्वीकार करेंगे या नहीं। अटल ने कहा कि वह कार्यवाहक भूमिका में बने रहने को तैयार हैं।
क्या लेफ्ट के साथ मिलकर सरकार बनाएगें मैक्रों?
फ्रांस में पहले दौर के संसदीय चुनाव में इस बार रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग हुई। बताया जा रहा है इस बार यहां 60 फीसदी से अधिक वोटिंग हुई। फिलहाल फ्रांस में क्या मैक्रों की पार्टी लेफ्ट के साथ मिलकर सरकार बनाएगी, इसको लेकर भी चर्चा जोरों पर है।