दुबई में क्लाइमेट समिट से इतर पीएम मोदी ने कई द्विपक्षीय बैठकें की हैं. ऐसी ही एक मुलाकात में पीएम मोदी ने मालदीव के नए राष्ट्रपति और चीन के करीबी मोहम्मद मुइज्जू से बात मुलाकात की. इस दौरान भारत और मालदीव अपनी साझेदारी को और मजबूत करने के लिए एक कोर समूह बनाने पर सहमत हुए हैं. इस दौरान दोनों देशों के बीच मित्रता बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा हुई. बैठक के बाद पीएम मोदी ने सोशल मीडिया पर लिखी अपनी पोस्ट में कहा, ‘राष्ट्रपति मुइज्जू के साथ एक सार्थक बैठक हुई. हमने विभिन्न क्षेत्रों में भारत मालदीव मित्रता को बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा की. हम अपने लोगों के लाभ के लिए सहयोग को मजबूत करने के लिए एक साथ मिलकर काम करने को उत्सुक हैं.’
मुइज्जू मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के करीबी सहयोगी हैं. यामीन ने 2013 से 2018 तक राष्ट्रपति पद पर रहते हुए चीन से करीबी रिश्ते बनाए. मुइज्जू ने बीते सितंबर में हुए राष्ट्रपति चुनाव में भारत से दोस्ती के समर्थक इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को हराया था. हालांकि मोदी ने मालदीव के राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभालने पर मुइज्जू को शुक्रवार को व्यक्तिगत रूप से बधाई दी थी. उनके शपथ ग्रहण समारोह में मोदी कैबिनेट के मंत्री गए थे. जबकि 2018 में मोहम्मद सोलिह को जीत की बधाई देने पीएम मोदी खुद मालदीव गए थे.
ރައީސް @MMuizzu އާއި އެކު މިއަދު ކާމިޔާބު ބައްދަލުވުމެއް ވަނީ ކުރިއަށްގޮސްފައިއެވެ.
އިންޑިއާއާއި ރާއްޖޭގެ އެކުވެރިކަން ފުޅާކުރެވޭނެ ތަފާތު ދާއިރާތަކާއި ބެހޭގޮތުން މަޝްވަރާކުރެވުނެވެ.އަޅުގަނޑުމެންގެ އުއްމީދަކީ ދެ ޤައުމުގެ ރައްޔިތުންގެ ލާބައަށްޓަކައި އެއްބާރުލުން އިތުރުކޮށް… pic.twitter.com/j0KiIZ1fzq
— Narendra Modi (@narendramodi) December 1, 2023
मोदी और मुइज्जू के बीच हुई इस अहम बैठक की टाइमिंग को समझने की जरूरत है. दरअसल इस बार राष्ट्रपति चुनाव जीतते ही मुइज्जू के ऑफिस ने भारत से अपने 77 सैन्य कर्मियों को वापस बुलाने का अनुरोध किया था. उसी आदेश की कॉपी आने के बाद उन्होंने दोनों देशों के बीच 100 से अधिक द्विपक्षीय समझौतों की समीक्षा करने का फैसला किया था. मुइज्जू की ओर से भारत से ये आग्रह तब किया गया जब केंद्रीय मंत्री किरेन रीजीजू ने 18 नवंबर को नये राष्ट्रपति से उनके दफ्तर में शिष्टाचार भेंट की थी.
मालदीव, हिंद महासागर क्षेत्र में भारत का प्रमुख समुद्री पड़ोसी है. इस समुद्री क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए मालदीव पर भारत का फोकस बहुत पुराना है. वहीं पीएम सागर (क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास) और नेबर फर्स्ट पॉलिसी यानी (पड़ोसी सबसे पहले की नीति) के नजरिए से भी मालदीव भारत के लिए खास अहमियत रखता है.
आपको बताते चलें कि मालदीव में भारत की सैन्य उपस्थिति है. चीन उसे पूरी तरह से हटवाकर वहां खुद की सेना तैनात करना चाहता है. मोइज्जू , भारत सरकार से अपने सैन्य उपस्थिति कम करने को कह चुके हैं. ऐसे में अब सबकी निगाहें इस ओर लगी हैं कि क्या पीएम मोदी से मुलाकात के बाद उनके रुख में कुछ बदलाव आएगा या वो जिद पर अड़े रहेंगे.
जियोपॉलिटिक्स के जानकारों का मानना है कि चीन समर्थक पार्टी के नेता होने के बावजूद, ब्रिटेन से डिग्री ले चुके मुइज्जू इस बार कुछ अधिक माइक्रो पॉलिसी का पालन कर सकते हैं. दरअसल मालदीव आज की परिस्थितियों में भारत की ताकत की अनदेखा नहीं कर सकता है. मालदीव खुद परेशान है. कोरोमा महामारी ने उसकी इकोनॉमी पर असर डाला है. वो अभी तक अनिश्चित अर्थव्यवस्था का सामना कर रहा है, उसे कई लोन चुकाने हैं. मुइज्जू लाख चीन के सपोर्टर हों लेकिन वो श्रीलंका और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की वर्तमान हालत और उसकी वजह न जानते हों ऐसा नहीं हो सकता.