रूस और चीन को सदाबहार मित्र माना जाता है। पर ऐसा लगता है कि अब दोनों के संबंधों में पुरानी गर्मजोशी नहीं रही। पहले चीन ने अपने नए नक्शे में रूस के द्वीप को शामिल किया। अब मॉस्को ने इस नक्शे को खारिज कर दिया है।
अपने काल्पनिक नक्शे में चीन ने भारत को कुछ हिस्सों पर दावा दिखाया था। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इसे चीन की पुरानी आदत बताते हुए कहा था कि बेतुके दावों से किसी दूसरे का क्षेत्र आपका नहीं हो जाता। इसी तरह इंडोनेशिया, फिलीपींस, मलेशिया, नेपाल और ताइवान भी चीन के नए नक्शे का विरोध कर चुके हैं।
चीन के नए नक़्शे में किए दावे पर ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ वू ने भी एतराज जताया था। उन्होंने कहा, ”ताइवान को डराने, धमकाने के लिए चीन अपनी सैन्य शक्ति बढ़ा रहा है।” वहीं वियतनाम ने कहा था कि यह नक्शा स्प्रैटली और पारासेल द्वीपों पर उसकी संप्रभुता और उसके जल क्षेत्र पर अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन करता है।
फिलीपींस ने भी इस मुद्दे पर कड़ा बयान जारी कर विरोध जताया था। फिलीपींस ने बयान में कहा था, “फिलीपींस के समुद्री क्षेत्रों पर चीन की कथित संप्रभुता और अधिकार क्षेत्र को वैध बनाने के इस नवीनतम प्रयास का अंतरराष्ट्रीय कानून, विशेष रूप से समुद्र के कानून पर 1982 के संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (यूएनसीएलओएस) के तहत कोई आधार नहीं है।”
दक्षिण चीन सागर के अपने इलाकों पर चीनी अधिकार दिखाने के बाद मलेशिया ने प्रोटेस्ट नोट भेजने की बात कही थी। इस सागर पर चीन के दावे को ताइवान, फिलीपीन्स, वियतनाम, मलेशिया के साथ ही ब्रूनेई भी ख़ारिज करता है। यही वजह है कि अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर में अमेरिकी नौसेना के पोत लगा रखे हैं, ताकि अंतरराष्ट्रीय समुद्री रास्ते में आवाजाही की आजादी बनी रहे।