भारत-पाकिस्तान सिंधु जल संधि विवाद पर विस्तृत विवरण (पैरा में):
भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया तनाव, विशेष रूप से पहलगाम आतंकी हमले के बाद, और उसके पश्चात हुए सैन्य संघर्ष ने द्विपक्षीय रिश्तों को गहरा प्रभावित किया है। इस बीच भारत ने 1960 में हुए सिंधु जल संधि को रद्द करने का निर्णय लिया, जिसने पाकिस्तान को गहरे संकट में डाल दिया। पाकिस्तान ने इस फैसले को पलटवाने के लिए भारत को एक के बाद एक चार पत्र लिखे, जिनमें गुहार लगाई गई कि संधि को बहाल किया जाए। हालांकि भारत ने इन सभी आग्रहों को सख्ती से खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते” और “ट्रेड और टेरर साथ नहीं चल सकते।” भारत का मानना है कि पाकिस्तान ने इस संधि की मूल भावना—दोस्ती और सद्भाव—का उल्लंघन करते हुए सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा दिया है।
भारत अब सिंधु जल का बेहतर उपयोग करने की दिशा में योजनाएं बना रहा है। इसमें ब्यास नदी का पानी रोककर अपने क्षेत्रों में उपयोग के लिए 130 किलोमीटर लंबी नहर का निर्माण शामिल है, जो गंग नहर से जुड़ेगी। इस परियोजना में 12 किलोमीटर की सुरंग और भविष्य में इसे यमुना से जोड़ने का भी प्रस्ताव है, जिससे दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान जैसे राज्यों को लाभ पहुंचेगा।
पाकिस्तान में सिंधु जल संधि पर रोक के बाद रबी की फसल और पेयजल आपूर्ति पर गंभीर असर पड़ने की आशंका है, जिससे वहां की जनता पर संकट गहरा सकता है। भारत ने स्पष्ट किया है कि वह अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन नहीं करेगा, लेकिन अपने हिस्से का पानी जरूर लेगा। यह संधि अपने समय—पचास और साठ के दशक—की इंजीनियरिंग और जरूरतों पर आधारित थी, लेकिन आज के बदलते जलवायु, जनसंख्या और ऊर्जा आवश्यकताओं को देखते हुए इसका पुनर्मूल्यांकन आवश्यक है। भारत अब इसे फिर से बातचीत के जरिए अपने हितों के अनुसार ढालने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, और पाकिस्तान के अड़ंगे अब इसमें बाधा नहीं बन पाएंगे।